महाराष्ट्र में 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनाव प्रचार का काम थम चुका है. अब सारे नेता बुधवार को वोटिंग के बाद 23 नवंबर को घोषित होने वाले रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में कुछ सीटें ऐसी हैं जो काफी बड़े चेहरों की साख दांव पर लगी हुई है।

1. बारामती

 बारामती विधानसभा सीट पवार परिवार का गढ़ मानी जाती रही है। चार बार के महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार इस सीट से विधायक रहे हैं। लेकिन 1991 में उन्होंने यह विधानसभा सीट अपने भतीजे अजित पवार को सौंप दी। तब से लेकर पिछले विधानसभा चुनाव तक अजित पवार यहां से विधायक रहे हैं। लेकिन इस बार एनसीपी में टूट के बाद इस सीट पर सभी लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं।

 

दरअसल एनसीपी के दो धड़ों में बंटने के बाद अब शरद पवार के पर-पोते युगेंद्र पवार और अजित पवार आमने-सामने हैं। यह सीट अजित पवार और शरद पवार दोनों के लिए नाक का सवाल बनी हुई है। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में जनता ने शरद पवार की पार्टी का साथ दिया था और उनकी बेटी सुप्रिया सुले को यहां से सांसद चुनकर भेजा था। लेकिन, इस आधार पर कुछ भी अनुमान लगाना मुश्किल है कि किसकी जीत होगी क्योंकि विधानसभा और लोकसभा के समीकरण काफी अलग होते हैं।

 

इस सीट पर जहां एक तरफ शरद पवार प्रचार के लिए आए तो दूसरी तरफ शरद पवार की मां भी प्रचार के लिए आईं। इस सीट की जीत यह तय करेगी कि जनता किसे वास्तविक एनसीपी मानती है।

 

वहीं युगेंद्र शरद पवार से गुरुमंत्र लेकर अपनी राजनीतिक शुरुआत कर रहे हैं। हालांकि, उन्होंने इसके पहले उन्होंने सुप्रिया सुले के चुनाव को मैनेज करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह शरद पवार के द्वारा स्थापित किए गए शैक्षणिक संस्थान विद्या प्रतिष्ठान में कोषाध्यक्ष भी हैं।

2. वर्ली

दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण सीट है वर्ली जिस पर तीन बड़े नेता चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट से एकनाथ शिंद की शिवसेना से मिलिंद देवरा, शिवसेना (यूबीटी) से उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता संदीप देशपांडे.

 

दक्षिण मुंबई के पूर्व सांसद मिलिंद देवरा शहरी मिडिल क्लास में अच्छी पैठ है. यूपीए -2 में वह सूचना व संचार और जहाजरानी मंत्री थे.

 

वहीं आदित्य ठाकरे वर्ली से मौजूदा विधायक हैं। 2019 में अपने पहले ही चुनाव में उन्होंने यहां से भारी मतों से जीत हासिल की थी। इन्हें 89,248 वोट मिले थे जबकि एनसीपी के सुरेश माने को सिर्फ 21,821 वोट मिले थे। ठाकरे को कोविड के दौरान कोविड-पॉजिटिव लोगों की सहायता करने के लिए काफी सराहा गया था। इसलिए जनता में इनकी भी काफी पैठ है। साथ ही बाल ठाकरे के पोते होने की विरासत तो इनके साथ है ही।

 

बात करें महाराष्ट्र निवनिर्माण सेना कैंडीडेट संदीप देशपांडे की तो भले ही एमएनएस का इस सीट पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं है लेकिन संदीप देशपांडे ने व्यक्तिगत रूप से इन्फ्रास्ट्रक्चर और हाउसिंग को लेकर काफी काम किया है, जिससे जनता में उनकी पॉपुलरिटी काफी है। सिविक मामलों में उनके काम ने मराठी बोलेने वाले लोगों में उन्हें काफी पॉपुलर बना दिया है। 

3. बांद्रा पूर्व

 बांद्रा पूर्व से एनसीपी के जीशान सिद्दीकी और शिवसेना (यूबीटी) के वरुण सरदेसाई के बीच टक्कर है। जीशान कांग्रेस पार्टी से यहीं है विधायक हैं। जीशान बाबा सिद्दीकी के बेटे हैं, जिनका कथित तौर पर हाल ही में लॉरेंस बिश्नोई गैंग के गुर्गों ने हत्या कर दी थी। वहीं वरुण देसाई आदित्य ठाकरे के मौसेरे भाई हैं।

 

जीशान की युवाओं और मुसलमानों में अच्छी पकड़ है. इसके अलावा स्थानीय मुद्दों को लेकर भी वह काफी सक्रिय रहते हैं। सोशल मीडिया के जरिए उनका लोगों से काफी जुड़ाव रहता है। उन्हें लोगों का सिम्पैथी वोट भी मिल सकता है।

 

हालांकि, वरुण सरदेसाई उद्धव ठाकरे के काफी करीबी माने जाते हैं और शिवसेना में टूट के दौरान वह उद्धव के साथ काफी मज़बूती के साथ खड़े रहे थे। उद्धव के परंपरागत वोटर्स से उन्हें अच्छा समर्थन मिलेगा। 

 4. नागपुर दक्षिण पश्चिम

नागपुर दक्षिण पश्चिम में बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस और कांग्रेस के देवेंदे गुडधे के बीच मुकाबला है। महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की यहां पर काफी अच्छी पैठ है। वह साल 2009 से इस सीट से लगातार विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने 49000 के अंतर से जीत हासिल की थी।

 

वहीं प्रफुल्ल गुडढे को भी ज़मीनी नेता माना जाता है। स्थानीय मुद्दों को उठाने में भी वे सक्रिय रहे हैं। उन्हें सरकार के प्रति असंतोष का फायदा मिल सकता है। साथ ही इस बार शिवसेना में टूट की वजह से जनता में जो कन्फ्यूजन है उसका भी लाभ वह पा सकते हैं।

कोपरी-पचपखड़ी

इस सीट पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर उनका मुकाबला केदार दिघे से होगा जो कि शिंदे के राजनीतिक गुरु आनंद दिघे के भतीजे हैं।

 

शिंदे खुद कई बार इस बात को कह चुके हैं कि आनंद दिघे उनके राजनीतिक गुरु रह चुके हैं। यहां तक मराठी फिल्म धर्मवीर 2 बनाने के लिए उन्होंने वित्तीय सहायता भी की थी।