साल 1960 में नया महाराष्ट्र बनने के बाद मुख्य पार्टी कांग्रेस ही थी। हालांकि, समय के साथ-साथ राजनीति भी बदली। मुंबई में मिलों के स्थापित होने के साथ ही कम्युनिस्ट भी हावी होने लगे थे। ऐसे में जब 1967 में विधानसभा के चुनाव हुए तो इन चुनावों में भी लेफ्ट का असर दिखा। हालांकि, यह असर कांग्रेस की सरकार को हिलाने या फिर वसंतराव नाइक को रोक पाने में समर्थ नहीं था।

 

साल 1962 में बनी पहली ही सरकार में मारोतराव कन्नमवार और पी के सावंत को मुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस ने वसंतराव नाइक को आगे किया था।1963 के आखिर में मुख्यमंत्री बने वसंतराव नाइक न सिर्फ 11 साल तक सीएम रहे बल्कि ऐसे सीएम भी बने जिनकी अगुवाई में किसी पार्टी ने दो-दो विधानसभा चुनाव जीतकर वापसी की। वसंतराव नाइक के अलावा आज तक किसी सीएम ने सत्ता में वापसी नहीं की है। वसंतराव नाइक के बाद देवेंद्र फडणवीस ही ऐसे सीएम थे जिनका कार्यकाल पूरा हो पाया। 

महाराष्ट्र में बरकरार रहा जलवा

 

कांग्रेस ने वसंत राव नाइक को आगे करके ही साल 1967 का विधानसभा चुनाव लड़ा। लोकसभा चुनाव भी तब साथ ही हुए। कांग्रेस को कई राज्यों में झटका लगा था लेकिन वह महाराष्ट्र को बचाने में कामयाब हुई थी। हालांकि, भारतीय जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और स्वतंत्र पार्टी जैसे दल अब देशभर में कांग्रेस के लिए चुनौती बनने लगे थे।

 

1967 में कुल 270 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव कराए गए। इसमें से 15 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 16 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थीं। कुल 239 सीटें अनारक्षित थीं। इस साल मतदाताओं की कुल संख्या 2.21 करोड़ थी, जिसमें से 69.21 पर्सेंट यानी 1.43 करोड़ लोगों ने अपने वोट डाले।

वसंतराव नाइक ने रचा इतिहास

 

कांग्रेस ने फिर से अपने बलबूते सरकार बनाई। उसने सभी 270 सीटों पर चुनाव लड़ा और 203 सीटों पर जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर रही पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी जिसे 19 सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं, सीपीआई को 10, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 8, रिपब्लिकन पार्टी को 5, जनसंघ और एसएसपी को 4-4 और सीपीएम को 1 सीट पर जीत हासिल हुई। कुल 16 निर्दलीय विधायक भी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।

 

कांग्रेस ने वसंतराव नाइक को नेता बनाकर चुनाव लड़ा था तो फिर से उन्हें ही मुख्यमंत्री भी बनाया और उन्होंने पूरे पांच साल सरकार चलाई। वसंतराव की सरकार ने गरीबों के हित में कई अहम फैसले लिए। वसंतराव ही थे जिन्होंने महाराष्ट्र में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरुआत की थी। यही वह योजना थी जिसको योजना आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर मंजूरी दी और आगे चलकर यह MNREGA की शक्ल में सामने आई।