महाराष्ट्र की राजनीति में 1972 का चुनाव आते-आते कई बदलाव हो चुके थे। कभी पत्रकार और कार्टूनिस्ट रहे बाल ठाकरे ने साल 1966 में ही शिवसेना का गठन कर लिया था और अब वह प्रदेश को एक अलग दिशा में खींचने की कोशिश कर रहे थे। उधर कांग्रेस अपनी सरकार के काम गिनवाती और वसंतराव नाइक के चेहरे को आगे करती थी।
हालांकि, कांग्रस दो धड़े में बंट गई थी। भारतीय क्रांति दल, शिवसेना, अखिल भारतीय हिंदू महासभा और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे दल भी दम भर रहे थे। इस चुनाव में भी विधानसभा की सीटें 1967 जितनी ही थीं। कुल 279 में से 239 अनारक्षित, 15 SC के लिए और 16 ST के लिए आरक्षित थीं।
कांग्रेस ने रचा इतिहास जो आज तक नहीं टूटा
वसंतराव नाइक की अगुवाई में उतरी कांग्रेस यानी इंडियन नेशनल कांग्रेस ने 270 में से 222 सीटों पर जीत हासिल करके इतिहास रच दिया। भारतीय जनसंघ ने 122 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत सिर्फ 5 पर मिली। कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर पर रही PWP को सिर्फ 7 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, आरपीई को दो, SOP को 3, सीपीआई को दो और एफबीएल को 2 सीटों पर जीत मिली थी। इस चुनाव में 23 निर्दलीय विधायक चुने गए थे। यानी किसी भी दूसरी विपक्षी पार्टी से ज्यादा संख्या तो निर्दलीय विधायकों की ही थी।
इस चुनाव तक कुल मतदाताओं की संख्या 2.58 करोड़ तक पहुंच गई थी। 64.69 पर्सेंट लोगों यानी 1.56 करोड़ ने वोट डाला था। इसमें से कांग्रेस को 56.36 पर्सेंट वोट मिली थे और वह एकतरफा विजेता बनी थी।
1972 के विधानसभा चुनाव में बाल ठाकरे की शिवसेना ने कुल 26 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उसे सिर्फ एक ही सीट पर जीत हासिल हुई। हालांकि, मुंबई नगर निगम में उसकी धाक जम चुकी थी।