महाराष्ट्र की राजानीति में बीते 5 साल से जैसी सियासी हलचल मची है, शायद ही वैसी किसी राज्य में मची हो। पुराने दोस्तों की दोस्ती अचानक से टूटी, रिश्तों में बगावती तेवर नजर आए, सरकार गिरी, सरकार बनी। महाराष्ट्र में वह सबकुछ हुआ, जिसके लिए मायानगरी जानी जाती है। पुरानी शिवसेना के सबसे भरोसेमंद सिपाही रहे एकनाथ शिंदे, अपने बॉस उद्धव ठाकरे की पार्टी लेकर ही अलग राह पकड़ लेते हैं और बीजेपी के साथ गठबंधन कर लेते हैं। अजित पवार, अपने चाचा शरद पवार की पार्टी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) को दो फाड़ कर देते हैं। वे पुरानी एनसीपी में भी चाचा की राय से अलग जाकर देवेंद्र फडणवीस के साथ शपथ ले चुके हैं बस बात बन नहीं पाई। एकनाथ शिंदे अब मुख्यमंत्री हैं, अजित पवार डिप्टी सीएम हैं। कभी मुख्यमंत्री रहे बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस अब डिप्टी सीएम हैं।
महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर एक ही चरण में 20 नवंबर 2024 को वोटिंग है। चुनाव के नतीजे 23 नवंबर 2024 को घोषित किए जाएंगे। महाराष्ट्र की राजनीति के सत्ताधारी दलों का फिलहाल परिचय इतना सा ही है। लेकिन इनसे इतर जनता के लिए मुद्दे क्या हैं, आइए जानते हैं।
गद्दार, पार्टियों का विभाजन लोगों के लिए बना मुद्दा
महाराष्ट्र की राजनीति पर मजबूत पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनोज खांडेकर बताते हैं कि महाराष्ट्र के इस चुनाव में असली मुद्दे कम, भावनात्मक मुद्दे ज्यादा छाए हुए हैं। एक मुद्दा, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी भी भुनाने की कोशिश कर रही है, वह है गद्दार का मुद्दा। पार्टी तोड़कर, गठबंधन छोड़कर, बीजेपी से दोस्ती करने वाले नेता एकनाथ शिंदे और अजित पवार को पुरानी शिवसेना और एनसीपी गद्दार बता रही हैं।
उनका कहना है कि जनता, गद्दारों को माफ नहीं करेगी। एकनाथ शिंदे, उद्धव ठाकरे पर बाल साहेब ठाकरे की विचारधारा से गद्दारी करने वाला बताते हैं। उनका तर्क है कि जिस कांग्रेस और एनसीपी की राजनीति से बाला साहेब को चिढ़ थी, उद्धव ठाकरे वही राजनीति कर रहे हैं। अजित पवार, इस चुनाव में थोड़े से भ्रमित हैं, कई बार उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ है कि उन्हें पार्टी में राजनीति नहीं करनी थी।
मराठा आरक्षण भी है जनता के लिए मुद्दा
मराठाओं की मांग है कि उन्हें आरक्षण मिले। महाराष्ट्र की राज्य सरकार भी मराठा समुदाय को आरक्षण देने का ऐलान कर चुकी है। 20 फरवरी को राज्य सरकार ने एक विशेष सत्र आयोजित किया, जिसमें 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले विधेयक को मंजूरी मिल गई है। मराठा आरक्षण, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया गया लेकिन उसे रद्द कर दिया गया। मराठा आरक्षण की असली अग्नि परीक्षा कोर्ट में अटकती है। मनोज जरांगे पाटिल ओबीसी आरक्षण की मांग कर रहे हैं। वह आए दिन धरने पर बैठते हैं। महाराष्ट्र के लोगों के लिए यह भी एक चुनावी मुद्दा है।
किसान आत्महत्या, आखिर थमेगी कब?
पत्रकार मनोज खांडेकर बताते हैं कि महाराष्ट्र के अमवरावती संभाग में किसानों की आत्महत्या बड़ा मुद्दा है। यह दशकों से चल रहा है, इसका कोई समाधान, कोई सरकार नहीं निकाल पाई है। साल 2024 के जनवरी से जून महीने तक अमरावती, अकोला, बुलढाणा, वाशिम और यवतमाल जिले में अमरावती संभागीय आयुक्तालय की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 557 किसानों ने आत्महत्या की है। 170 आत्महत्याएं सिर्फ अमारवती में हुई हैं। यवतमाल में 150, बुलढाणा में 111, अकोला में 92 और वाशिम में 34 किसानों ने आत्महत्या की है।
किसानों की आत्महत्या का एक कारण है कि उन पर स्थानीय साहूकारों और बैंकों का कर्ज है। वे कर्ज के दलदल में फंसकर, उत्पीड़न का शिकार होकर आत्महत्या कर रहे हैं। पत्रकार मनोज खांडेकर बताते हैं कि फसलों का नुकसान, बारिश की कमी, कर्ज का बोझ किसानों की आत्महत्या की प्रमुख वजह है। इस चुनाव में यह भी एक मुद्दा है लेकिन इस पर चर्चा कम हो रही है।
ये मुद्दे भी हैं कतार में
महाराष्ट्र की सामाजिक कार्यकर्ता रंजना शर्मा बताती हैं कि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त बस यात्रा, मुफ्त बिजली, लोन माफी अहम मुद्दा है। महाराष्ट्र की 28 लोकसभा सीटों में साल 2024 में हुए चुनावों में बीजेपी के पास सिर्फ 9 सीटें हैं। मराठवाड़ा क्षेत्र में 8 सीटों से एक सीट भी नहीं मिल पाई हैं। महाराष्ट्र में ट्रैफिक जाम भी एक समस्या बन गई है। मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे शहरों में ये समस्या हद से ज्यादा बढ़ गई है। स्लम इलाकों का पुनर्विकास भी जनता के लिए एक मुद्दा है। रोजगार भी महाराष्ट्र के लिए एक बड़ा मुद्दा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि महाराष्ट्र की राजनीति में जनता मुद्दों पर वोट करेगी या भावनाओं पर।
क्या हिंदुत्व और मराठा अस्मिता है महाराष्ट्र में है मुद्दा?
सामाजिक कार्यकर्ता रंजना शर्मा बताती हैं कि हिंदुत्व और मराठा अस्मिता भी मुद्दा है। महाराष्ट्र की राजनीति भावनात्मक ज्यादा रही है। शिवसेना का उभार ही भावनात्मक आधार पर था। त्योहारों के दिनों में अमरावती, नांदेड़ और मालेगांव में आए दिन सांप्रदायिक तनाव की स्थितियां पैदा होती हैं। महाराष्ट्र में हिंदुत्व भी एक अहम मुद्दा है लेकिन ये मुद्दा वोट में बदलता है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में जब छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति गिरी थी, तब राज्य में इसे लेकर सत्तारूढ़ सरकार पर जमकर लोग भड़के थे। खुद महायुति की सहयोगी पार्टी एनसीपी (अजित गुट) के नेता भी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन पर उतर आए थे।