बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में आने वाली यह विधानसभा सीट नंबर के हिसाब से तीसरी सीट है। कुछ समय पहले ही नरकटियागंज रेलवे स्टेशन को अमृत भारत योजना के तहत विकसित करने के लिए चुना गया है। मौजूदा समय में अपने अभिनय से मोहने वाले अभिनेता मनोज वाजपेयी इसी क्षेत्र से आते हैं।। यह क्षेत्र अपनी विशेष पहचान हर वक्त में छोड़ता रहा है। यहां की राजनीति में वर्मा राजपरिवार आज भी सबसे अहम गिना जाता है।
नरकटियागंज का संबंध चाणक्य और नंद वंश से भी है। यहां आज भी चाणक्य के बनवाए महलों के अवशेष टीलों के रूप में मौजूद हैं। इस क्षेत्र के लोग मुख्य रूप से खेती पर निर्भर हैं। गन्ना, धान और आम जैसी चीजें कमाई का साधन बनती हैं। जातिगत संतुलन होने की वजह से यहां कोई एक जाति चुनाव में निर्णायक साबित नहीं होती है।
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स्थानीय स्तर पर कई इलाकों में जल निकासी की समस्या, मूलभूत सुविधाओं की कमी और खेती के मौसम में खाद की कमी यहां के प्रमुख मुद्दें हैं। इनके अलावा, समूचे बिहार की तरह यह क्षेत्र भी पलायन और बेरोजगारी से जूझता रहा है।
मौजूदा समीकरण
एक बार बगावत करने वाली रश्मि वर्मा बीजेपी की ओर से टिकट की प्रबल दावेदार हैं। पश्चिमी चंपारण में कांग्रेस के प्रभाव को देखते हुए उम्मीद है कि कांग्रेस ही फिर से इस सीट को अपने कब्जे में रखना चाहेगी। ऐसे में एक बार फिर से यहां रश्मि वर्मा और उनके जेठ विनय वर्मा का मुकाबला हो सकता है। हालांकि, इस बार रश्मि वर्मा की मुश्किल यह है कि कई स्थानीय नेताओं ने उनका विरोध किया है। इन नेताओं ने सार्वजनिक रूप से पार्टी नेतृत्व से अपील की है कि इस बार रश्मि वर्मा को टिकट न दिया जाए।
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इन नेताओं का कहना है कि रश्मि वर्मा अपने कार्यकर्ताओं को ही झूठे मुकदमे में फंसाने की साजिश रचती हैं और उनका साथ नहीं देतीं। गोविंदगंज के पूर्व विधायक रहे राजन तिवारी ने कुछ महीने पहले ऐलान किया था कि वह नरकटियागंज से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में रश्मि वर्मा की चिंताएं और बढ़ सकती हैं।
2020 में क्या हुआ था?
2014 के उपचुनाव में बीजेपी की विधायक चुनी गईं रश्मी वर्मा के निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने से 2015 में बीजेपी यह सीट हार गई थी। 2020 में उसने अपनी यह गलती सुधारी और 2020 में फिर से उन्हें ही उम्मीदवार बनाया। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने 2015 में विधायक बने विनय वर्मा को एक बार फिर मौका दिया। इस बार रेनू देवी निर्दलीय चुनाव लड़ गईं। यह वही रेनू देवी हैं जिन्हें 2015 में बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया था।
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रश्मि वर्मा का प्रभाव कितना है, वह चुनाव के नतीजों में दिखा। 2015 में निर्दलीय लड़कर 39 हजार वोट पाने वाली रश्मि वर्मा ने इस बार बीजेपी के फैसले को सही साबित किया। रश्मि वर्मा को 75 हजार से ज्यादा वोट मिले और कांग्रेस के विनय वर्मा 54 हजार वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे। यह विनय वर्मा कोई और नहीं बल्कि रश्मि वर्मा के पति आलोक प्रसाद वर्मा के भाई यानी रश्मि के जेठ हैं। रेनू देवी को सिर्फ 7674 वोट मिले और वह तीसरे नंबर पर रहीं।
विधायक का परिचय
रश्मि वर्मा की गिनती बिहार की पढ़ी-लिखी महिला विधायकों में होती है। वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस से फिलोसोफी में ग्रेजुएट हैं। उनकी शादी आलोक प्रसाद वर्मा से हुई थी। आलोक प्रसाद वर्मा 2010 में इसी सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन बीजेपी के सतीश चंद्र दुबे से चुनाव हार गए थे। वही सतीश चंद्र वर्मा जो मौजूदा समय में वाल्मीकि नगर के लोकसभा सांसद और केंद्र सरकार में राज्यमंत्री हैं। लगभग डेढ़ करोड़ रुपये की घोषित संपत्ति वाली रश्मि वर्मा अक्सर चर्चा में रहती हैं।
कभी रश्मि वर्मा पर खुद के घर में बम रखवाने का आरोप लगा, कभी उनकी तस्वीरें वायरल हुईं तो कभी उन्होंने बीजेपी छोड़ने का ही ऐलान कर दिया था। साल 2022 में वह अचानक इस्तीफा देने की वजह से भी चर्चा में आई थीं। हालांकि, बाद में बीजेपी ने उन्हें मना लिया था। साल 2023 में आपत्तिजनक फोटो वायरल होने को लेकर भी रश्मि चर्चा में आई थीं। इस फोटो को लेकर रश्मि वर्मा ने कहा था कि फोटो एडिटेड है और उन्हें बदनाम करने के लिए यह हरकत की गई है।
विधानसभा सीट का इतिहास
2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई यह विधानसभा सीट पिछले कुछ समय से रश्मि वर्मा की वजह से चर्चा में रही है। अब तक के कुल 4 में 2 चुनाव रश्मि वर्मा ने जीते हैं और एक चुनाव में उनकी बगावत ने बीजेपी को हराया है।
2010- सतीश चंद्र दुबे-बीजेपी
2014- रश्मि वर्मा-बीजेपी (उपचुनाव)
2015- विनय वर्मा- कांग्रेस
2020- रश्मि वर्मा- बीजेपी