राजस्थान की सात सीटों पर उप चुनाव हो रहा है, जिसका प्रचार अभियान थम गया है। सात सीटों के लिए 13 नवंबर को मतदाता वोट करेंगे। इन सातों सीटों पर खड़े 84 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला बुधवार को एवीएम में बंद हो जाएगा।
उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने हैविवेट नेताओं की फैज उतार दी। नेताओं ने जनता से बड़े-बड़े वादे किए। लेकिन इस उपचुनाव में मुद्दों पर कम चर्चा हुई, जबकि चुनाव चेहरों और जातियों में फंसा रह गया।
चुनाव चेहरों और जातियों के के उपर
हालांकि, राजस्थान की सात सीटों पर उप चुनाव के प्रचार से यह साबित हो गया है कि यह उप चुनाव चेहरों और जातियों के गठबंधन पर लड़ा जा रहा है। चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस हो या निर्दलीय, प्रचार वाले मुद्दे, विकास, विचारधारा सब पीछे छूट गए। सभी दल अपने-अपने जातिगत गणित बिठाते दिखे। सभी पार्टियों ने आबादी में जातियों के बाहुलता के हिसाब से ही प्रत्याशियों पर दांव खेला है।
दौसा में मीणा प्रत्याशी
एक राजनीतिक विश्लेषक द्वारा जुटाए गए जातिगत आंकड़ों (खबरगांव इसकी पुष्टि नहीं करता) के अनुसार दौसा में सर्वाधिक 63 हजार मीणा, 34 हजार ब्राह्मण और 28 हजार कोवा मतदाता हैं। गुर्जर व मालियों को संख्या भी ठीक-ठाक है। यहां प्रमुख प्रत्याशी भी मीणा और बैरवा हैं।
मोगा और गुर्जर मुख्य प्रत्याशी
ऐसे ही देवली-उनियारा विधानसभा में 67 हजार मोगा, 35 हजार गुर्जर और 26 हजार बैरवा चोट हैं। यहां प्रमुख प्रत्याशी मोगा और गुर्जर हैं। खींवसर में सबसे ज्यादा 80 हजार जाट, 30 हजार राजपूत, 12 हजार ब्राह्मण हैं। ऐसे में यहां सभी प्रमुख प्रत्याशी जाट समाज से हैं।
वहीं, झुंझुनूं में सबसे ज्यादा 62 हजार जाट, 54 हजार मुस्लिम, 24 हजार मेघवाल वोटर हैं। यहां दो जाट व एक राजपूत (निर्दलीय) में टक्कर है। चौरासी में सबसे ज्यादा 1.98 लाख आदिवासी वोट हैं तो तीनों प्रमुख पत्याशी भी आदिवासी ही हैं। ऐसे में ये तो समय ही बताएगा कि किस दल को किस जाति ने साथ दिया।