शरद पवार का जन्म आजादी से पहले हुआ था, आजादी के दशकों बाद भी वे देश की राजनीति में सक्रिय हैं और महाराष्ट्र की राजनीतिक धुरी को अपने इशारे पर नचाते हैं। वे राजनीतिक रूप से उतने ही सक्रिय हैं, जितने उनसे उम्र में दशकों छोटे और उनकी सहयोगी पार्टी के कर्ता-धर्ता कहे जाने वाले शिवसेना की नई पीढ़ी के युवा चेहरे आदित्य ठाकरे। वे मीडिया से बात करते हैं, चुनावी माहौल में लोगों को इंटरव्यू देते हैं, रैलियां करते हैं और पार्टी तोड़ने वालों को करारी शिकस्त भी देते हैं।
साल 2024 में हुए लोकसभा चुनावों को याद कर लीजिए। जिस भतीजे अजित पवार ने उनसे अलग होकर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (अजित गुट) बनाई, उनसे उनकी पार्टी का निशान तक छीन लिया, उसी भतीजे की पत्नी को उन्होंने एक दांव से चुनाव में बुरी तरह हराया। सीट थी बारामती, सुनेत्रा पवार के खिलाफ उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को उतारा था और जब नतीजे आए तो अजित पवार को अपनी गलती का एहसास हो गया। यह दम एक 84 साल के राजनेता का था, जिससे बगावत, अजित पवार को भारी पड़ी। वे डिप्टी सीएम तो बन गए लेकिन पार्टी के तौर पर बेहद कमजोर भी हो गए।
हर साल मजबूत होती जाती है शरद पवार की राजनीति
शरद पवार का जन्म 12 दिसंबर 1940 को महाराष्ट्र के बारामती जिले में हुआ था। वे महाराष्ट्र के 4 बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वे केंद्रीय मंत्री रहे, रक्षा से लेकर कृषि मंत्रालय तक की उन्हें जिम्मेदारी मिली। नाम के साथ-साथ आलोचनाएं भी मिलीं लेकिन उनका सियासी कद साल-दर-साल बढ़ता गया। अब उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसी छाप छोड़ दी है कि वे ही सबसे अहम हो गए हैं।
वे पीवी नरसिम्हा राव से लेकर मनमोहन सिंह तक की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हैं। वे नेशनिस्ट कांग्रेस पार्टी के संस्थापक रहे हैं। साल 1999 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के अलग हटकर अपनी सियासी पार्टी बना ली थी, जिसे उनके भतीजे ने तोड़कर दो हिस्सों में बांट दिया। एक एनसीपी शरद गुट की है, दूसरी अजित गुट की। शरद पवार, उद्योगपति भी हैं और क्रिकेट बोर्ड पर भी मजबूत पकड़ रखते हैं। वे बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया (BCCI) के अध्यक्ष भी साल 2005 से 2008 के दौरान रहे हैं। वे मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। उन्हें साल 2017 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
कैसा रहा है राजनीतिक करियर?
शरद पवार छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हैं। उन्होने प्रवरनगर में गांव स्वतंत्रता नाम से एक मुहिम साल 1956 में चलाई थी। शरद पवार साल 1958 तक यूथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वे पूना जिले के अध्यक्ष बन गए थे। साल 1964 तक शरद पवार महाराष्ट्र के सचिव स्तर तक पहुंच गए और बड़े दिग्गजों के साथ उनकी बातचीत होने लगी। शरद पवार, यशवंतराव चह्वाण के राजनीतिक शिष्य थे। जब शरद पवार महज 27 साल के थे, तभी उन्हें बारामती से चुनावी मैदान में उतार दिया गया। शरद पवार 1967 से लेकर 1990 तक इस सीट से चुनाव जीतते रहे। साल 1977 में कांग्रेस आपातकाल के बाद दो गुटे में बंट गई थी।
इंदिरा कांग्रेस और रेड्डी कांग्रेस। यशवंतराव के साथ शरद पवार रेड्डी कांग्रेस में गए थे। 1978 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ीं, जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन अल्पमत में रही। दोनों कांग्रेस पार्टी साथ आईं और वसंतदादा पाटिल सीएम बने। शरद पवार, 40 विधायकों के साथ सरकार से बाहर चले गए और सरकार गिर गई। जुलाई 1978 में शरद पवार महज 38 साल की उम्र में प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से सीएम बने। इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार ही बर्खास्त करवा दी।
1980 तक वे सत्ता से बहुत दूर रहे। राजीव गांधी कांग्रेस में लौटे तो शरद पवार से उन्होंने बातचीत की। 1984 में वे बारामती से चुनकर सांसद बने। वे महाराष्ट्र लौटे। शिवसेना के खिलाफ वही एक बड़े चेहरे थे, जिस पर कांग्रेस भरोसा कर सकती थी। शरद पवार अपनी सोशलिस्ट कांग्रेस को मजबूत करने में जुट गए थे। शरद पवार ने साल 1986 में यह तय किया कि वे कांग्रेस में लौटेंगे। 1988 में राजीव गांधी ने शंकरराव चह्वाण को केंद्रीय मंत्री बनाया और शरद पवार को सीएम बनाया। जब 1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई तो महाराष्ट्र के राजनेता यह मांग करने लगे कि शरद कांग्रेस पार्टी संभालें। राजीव गांधी की हत्या के बाद जो चुनाव हुआ, उसमें कांग्रेस बहुमत से दूर थी। शरद पीएम रेस में थे लेकिन बाजी पीवी नरसिम्हा वार मार ले गए।
6 दिसंबर 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद मुंबई में भी सांप्रदायिक दंगे भड़के और जमकर हिंसा हुई। 1993 में तीसरी बार शरद पवार ने महाराष्ट्र के सीएम की कमान संभाली। जहां वे पीएम बनने वाले थे, उन्हें सीएम बनना पड़ा। साल 1995 में शरद पवार एक बार फिर केंद्रीय नेतृत्व में आए। 1996 में गठबंधन की राजनीति में उनका नाम आगे किया जाने लगा। सोनिया गांधी से उनकी बनी नहीं, इसलिए वे हाशिए पर रहे। साल 1999 में सोनिया के अपमान से नाराज होकर उन्होंने अपनी पार्टी ही बना ली। नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी। साल 2004 के लोकसभा चुनावों के नतीजे जब आए तो एनसीपी भी यूपीए गठबंधन का हिस्सा बनी। शरद यूपीए 1 और 2 दोनों में कृषि मंत्री रहे। उन्हें जमकर आलोचना झेलनी पड़ी। कहा जाता है कि अगर वे अलग पार्टी में न होते तो ऐसा हो सकता था कि मनमोहन सिंह नहीं, प्रधानमंत्री शरद पवार बन सकते थे।
महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री रह चुके हैं पवार
शरद पवार ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 1960 में की थी। साल 1978 में वे महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे। 1988 में वे दूसरी बार कांग्रेस के सीएम बने, 1993 में तीसरी बार सीएम बने। साल 1996 तक शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति से आगे जाकर केंद्रीय राजनीति में दखल देने लगे। साल 1999 में सोनिया गांधी से वे नाराज हो गए, उनके विदेशी मूल को लेकर उन्होंने सवाल उठाए और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन कर दिया।
2014 के बाद कैसी है उनकी राजनीति
साल 2014 में प्रचंड बहुमत से मोदी सरकार बनी। शरद पवार, एनडीए के विरोधी नेताओं में शुमार रहे, ऐसे में उन्हें सत्ता से दूर रहना ही था। उन्होंने ऐलान भी किया था कि वे लोकसभा चुनाव अब नहीं लड़ेंगे। वे राज्यसभा पहुंचे। साल 2019 के महाराष्ट्र चुनावों के बाद शरद पवार, एक बार फिर अपने पुराने दौर में ही पहुंच गए। जीत तो बीजेपी और एनडीए गठबंधन की हुई थी लेकिन उद्धव ठाकरे सीएम बनने के लिए अड़ गए थे। शरद पवार ने एनसीपी और शिवसेना और कांग्रेस का नया गठबंधन बनाकर दिखा दिया। महाविकास अघाड़ी (MVA) की ओर से उद्धव ठाके को सीएम पद का ऑफर दिया, शिवसेना ने एनडीए से रिश्ता ही तोड़ लिया।
जब तक हैं बीजेपी के लिए मुश्किल महाराष्ट्र का चुनाव
अजित पवार दांव खेलकर गए थे देवेंद्र फडणवीस के साथ सीएम बनने, महज 84 घंटे में उनकी विदाई हो गई। अजित दबे मन से एनसीपी में वापस लौटे। 28 नवंबर 2019 को उद्धव ठाकरे सीएम बन गए। अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार की पार्टी तोड़कर 40 विधायकों के साथ एनडीए गठबंधन में चले गए थे। शरद पवार ने लोकसभा चुनाव 2019 में दांव चला। अजित पवार की पार्टी जहां सिर्फ 1 लोकसभा सीट जीत पाई, वहीं शरद गुट की एनसीपी ने 8 सीटें जीत लीं। शिवसेना (उद्धव गुट) ने 9 सीटें जीतीं, एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 7। बीजेपी महाराष्ट्र में दहाई से नीचे सिमट गई। लोग कहते हैं कि महाविकास अघाड़ी को मिली ये ताकत, शरद पवार की देन थी। शरद पवार अब भी राजनीति में सक्रिय हैं और अपने सहोयोगी दलों की ताकत बढ़ा रहे हैं। बीजेपी के लिए यह चुनाव भी बेहद आसान नहीं साबित होने वाला है।