1970 के दशक का एक लड़का, जो अचानक उभरा और छा गया। गांव की सरंपचई से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री तक बनने का सफर उसने ऐसे पूरा किया कि किसी को यकीन ही नहीं हुआ। कानून की पढ़ाई करने वाला लड़का, जो बोलने में जरा सुस्त था। मतलब लोग उसकी बातें सुनकर तालियां बजाने लगें, ऐसा नहीं होता था। वह मासूम था और इसी मासूमियत में उसने वकील बाबू का दर्जा भी हासिल कर लिया। वकील बना तो कोर्ट में जूनियर वकील जैसा ही रहा। सरल और संकोची। 

होनी को कुछ और मंजूर था। जब वह लातूर जिले के बभलगांव का साल 1974 से लेकर 1980 के बीच सरपंच बना तो किस्मत चमक गई। यह कहानी, किसी और की नहीं, महाराष्ट्र के 2 बार के मुख्यमंत्री रहे, विलासराव देशमुख की है।

विलासराव देशमुख के बारे में ILS लॉ कॉलेज के एक रिटार्यड प्रोफेसर ने पुणे मिरर के साथ बातचीत में जो कहा, उसे सुनकर आपको यकीन नहीं होगा। जिस नेता के भाषण शैली की लोग तारीफ करते थे, वह बेहद शर्मिला था। लेक्चरर केआर सिन्हा ने उन्हें याद करते हुए 2012 में पुणे मिरर के साथ बातचीत में कहा था, 'विलास बहुत शर्मीला था। वह छात्र जीवन में अच्छा वक्ता नहीं था। वह जूनियर वकील के तौर पर भी बहुत अच्छा नहीं था। लेकिन जैसे ही लातूर में वह राजनीति में शामिल हुआ, सबकुछ पूरी तरह से बदल गया।'

कैसा रहा विलासराव देशमुख का सियासी सफर?
विलासराव देशमुख सरपंच रहे, उस्मानाबाद के जिला परिषद रहे, लातूर तालुका पंचायत समिति के डिप्टी चेयरमैन रहे। वे इसी दौरान उस्मानाबाद जिले के यूथ प्रेसीडेंट बने। साल 1980 से 1995 तक वे विधायक बने। राज्य सरकार में वे मंत्री भी बने। राज्य के कई अहम विभागों को उन्होंने संभाला। साल 1995 में वे 35000 वोटों से चुनाव हार गए। वे फिर लातूर विधानसभा से साल 1999 में चुनाव जीते। 18 अक्तूबर 1999 को वे पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 17 जनवरी 2003 को उनकी सरकार गिर गई, वजह कांग्रेस पार्टी में बिखराव था। वे गठबंधन सरकार में थे और शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी एनसीपी के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन था। उनसे इस्तीफा मांग लिया गया। 

सोनिया को दिखाया था तल्ख तेवर

राज्य कांग्रेस में विद्रोह की स्थिति पैदा हो गई थी। उन्होंने राज्य के हलात पर सोनिया गांधी से चर्चा की। उन्होंने कहा कि उनके साथ विधायकों का समर्थन है, वे इस्तीफा नहीं देंगे। उन्होंने बार-बार ये बात कही लेकिन उनकी सुनी नहीं गई। उनसे इस्तीफा मांगा गया। उनकी जगह सुशीलकुमार शिंदे मुख्यमंत्री बने। अक्तूबर 2004 में वे एक बार फिर विधायक बने। 1 नवंबर 2004 को फिर से मुख्यमंत्री बने। पर उनके दोनों टर्म अधूरे ही रहे। वे 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इस बार उनके सिर पर बड़ा कलंक लगा। 

और फिर लगा देश पर कलंक

यह कंलक, सिर्फ उन पर ही नहीं, तत्कालीन यूपीए सरकार पर भी लगा। विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री थे और 26 नवंबर 2008 को मुंबई में आतंकी हमला हो गया। विलासराव देशमुख पर आरोप लगे कि वे इतने मुश्किल हालात को संभाल नहीं पाए।  विलासराव देशमुख, फिल्म डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा और अपने बेटे रितेश देशमुख के साथ ताज होटल देखने गए थे। पूरे देश के लोग 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले को लेकर आक्रोशित थे। कांग्रेस पार्टी के सहयोगी दलों ने एक सुर में उनकी निंदा की थी। राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी और समाजवादी पार्टी ने मुखर होकर विरोध जताया था। कांग्रेस सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही थी। 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे, राज्य में आक्रोश की लहर थी। 


हर बार अधूरा ही रहा कार्यकाल

विलासराव देशमुख ने मुंबई हमले को रोकने में नाकाम होने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 5 दिसंबर 2008 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनकी राजनीति खत्म हो गई। वे साल 2009 से 2011 के दौरान राज्यसभा सदस्य रहे। उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। उनके पास उद्योग से लेकर विज्ञान जैसे अहम मंत्रालय रहे। साल 2011 में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े। 24 अगस्त 2012 को 67 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
 

और ऐसे डूब गया महाराष्ट्र का चमकता सितारा
साल था 2011। राजनीति और दुनिया को अलविदा कहने का वक्त आ गया था। उन्हें पता चला कि लिवर सिरोसिस हो गया है। इसे शुरुआती दिनों में छिपाने की कोशिश हुई लेकिन तब तक मामला ज्यादा बिगड़ गया था। जिंदगी के आखिरी दिनों में उनके एक्टर बेटे रितेश देशमुख की शादी हुई, धीरज की शादी हुई।  अगस्त 2012 में उनकी तबीयत खराब हुई तो मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, तभी किडनी और लिवर डैमेज होने लगे।  उन्हें आनन-फानन में एयरलिफ्ट करके चेन्नई पहुंचाया गया। जिस मेडिकली मृत व्यक्ति का लिवर, उन्हें ट्रांसप्लांट होने वाला था, उसकी एक दिन पहले मौत हो गई थी। 14 अगस्त 2012 को विलासराव देशमुख के शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया और उनकी मौत हो गई। विलासराव देशमुख की राजनीतिक विरासत, उनके बेटे अनिल देशमुख और धीरज देशमुख संभाल रहे हैं। रितेश देशमुख, देश के जाने-माने अभिनेता हैं और मराठी फिल्मों को प्रोड्यूस भी करते हैं।