उत्तर प्रदेश की 9 सीटों पर 20 नवंबर को उपचुनाव होने वाले हैं. ऐसे में देश के सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य में राजनीतिक गहमा-गहमी शुरू हो गई है. यूपी में लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस के सामने खराब प्रदर्शन करने के बाद होने वाला ये उपचुनाव बीजेपी के लिए नाक का सवाल बनी हुई हैं. हालांकि, लोकसभा और विधानसभा चुनाव के समीकरण अलग-अलग होते हैं फिर भी बीजेपी ने अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. सपा भी अपनी जीत की रफ्तार को बनाए रखने के लिए पूरे दम-खम के साथ राजनीतिक मैदान में उतरी है.

 

किन सीटों पर होने हैं चुनाव

 

यूपी में जिन 9 सीटों पर उपचुनाव होंने हैं उनमें कानपुर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, मैनपुरी की करहल, मिर्जापुर की मझवां, अंबेडकरनगर की कटेहरी, गाजियाबाद सदर, अलीगढ़ की खैर, मुरादाबाद की कुंदरकी और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट शामिल है.

 

बीजेपी का 'अष्टभुजा' बनाम सपा का '7 प्लान'

 

उपचुनाव जीतने के लिए जहां बीजेपी 'अष्टभुजा' प्लान लेकर आई है जिसके तहत बीजेपी पार्टी और उसके सहयोगियों के बीच तालमेल बैठाने के साथ-साथ चुनावी टीम और संगठन के बीच समन्वय पर भी फोकस कर ही है. इस प्लान के तहत नेताओं को अपने अपने जातियों के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की जिम्मेदारी दी गई है. इसके अलावा चौपाल के जरिए भी समस्याओं का समाधान किया जाएगा और ब्लॉक प्रमुख व पन्ना प्रमुखों के घरों पर चुनावी बैठक करने का भी इंतजाम किया गया है. 

 

वहीं इसके जवाब में अखिलेश के 'प्लान 7' में अनुसूचित जाति के मतदाताओं व महिला मतदाताओं पर फोकस के साथ अन्य चीजों पर भी फोकस किया जाएगा. जैसे कि 'एक बूथ 20 यूथ' की रणनीति और बीजेपी के हिंदुत्व के कार्ड के खिलाफ पीडीए के कार्ड पर फोकस. इसके अलावा जमीनी प्रचार के साथ पोस्टर और सोशल मीडिया पर फोकस किया जाएगा.

 

सभी सीटों पर क्या है समीकरण

राजनीतिक जानकारों से बात करने के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि 9 में से 7 सीटों पर बीजेपी और सहयोगी दल मजबूत दिख रहे हैं जबकि दो सीटों पर सपा का दबदबा रहने की संभावना है. हालांकि,  जिन सीटों पर एनडीए मजबूत है उनमें भी तीन पर माहौल बदल सकता है. सीटों के आधार पर विश्लेषण करें तो कुछ ऐसा है समीकरण-

 

फूलपुर

 

फूलपुर सीट पर 43 फीसदी ओबीसी, 24 प्रतिशत जनरल, 14 प्रतिशत मुस्लिम और 12 प्रतिशत एससी हैं. करीब 4 लाख वोटर्स वाली फूलपुर विधानसभा सीट पर ओबीसी वोटर्स काफी महत्त्वपूर्ण हैं. ओबीसी में भी सबसे ज्यादा संख्या यादवों की है उसके बाद पटेल की है. सपा ने यहां से मुस्लिम कैंडीडेट मुस्तफा सिद्दीकी को टिकट दिया है तो बीजेपी ने पूर्व सांसद केशरी देवी पटेल के बेटे दीपक पटेल को टिकट दिया है.

 

समाजवादी पार्टी मुस्लिम-ओबीसी वोटों पर निर्भर है लेकिन दीपक पटेल को टिकट देने के कारण पटेल बीजेपी के साथ जा सकते हैं. बाकी जनरल कैटेगरी का वोट भी बीजेपी के पाले में जाने की उम्मीद है. वहीं बसपा ने जितेंद्र सिंह को टिकट दिया है, लेकिन वह पहली बार चुनाव मैदान में हैं इसलिए उनके बहुत ज्यादा वोट पाने की संभावना नहीं है क्योंकि यहां बसपा का बड़ा बेस नहीं है

 

कानपुर की सीसामऊ में सपा मजबूत

 

सीसामऊ सीट पर बीजेपी से सुरेश अवस्थी, सपा से नसीम सोलंकी और बसपा से वीरेंद्र शुक्ला चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर बीजेपी पार्टी के अंदर फूट का शिकार हो सकती है क्योंकि इस सीट से पूर्व विधायक राकेश सोनकर टिकट चाह रहे थे पर बीजेपी ने सुरेश अवस्थी को टिकट दे दिया.

 

दूसरी तरफ इस सीट पर 45 प्रतिशत आबादी मुस्लिम वोटर्स की है और सपा ने मुस्लिम कैंडीडेट नसीम सोलंकी को उतारा है. इसके अलावा जनरल वोटर्स 25 फीसदी और एससी 16 फीसदी हैं. इस सीट पर 22 साल से सोलंकी परिवार का कब्जा है. राकेश सोनकर को टिकट न देने से अगर दलितों का वोट सपा की तरफ शिफ्ट हो जाता है तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो जाएगी

 

मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर बीजेपी मजबूत

 

कुंदरकी सीट पर बीजेपी की स्थिति मजबूत लग रही है. इस सीट पर बीजेपी ने रामवीर सिंह को टिकट दिया है जबकि सपा ने तीन बार के विधायक रह चुके हाजी रिजवान को टिकट दिया है. वहीं बसपा ने भी मुस्लिम कैंडीडेट रफतउल्ला खां को टिकट दिया है. इस सीट पर बसपा और एआईएमआईएम सपा का समीकरण बिगाड़ रहे हैं.

 

मुजफ्फरनगर की मीरापुर में रालोद मजबूत

 

इस सीट पर रालोद का पलड़ा भारी दिख रहा है क्योंकि रालोद को छोड़कर सपा, बसपा ने मुस्लिम कैंडीडेट को टिकट दिया है. इसके अलावा चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी और एएमआईएम यहां पर सपा का खेल बिगाड़ सकती है.

 

अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट

 

इस सीट पर भी बीजेपी की स्थिति मजबूत लग रही है. दरअसल बीजेपी ने धर्मराज निषाद को टिकट देकर मुकाबला ओबीसी बनाम ओबीसी कर दिया है. क्योंकि सपा ने भी ओबीसी कैंडीडेट को ही टिकट दिया है. इसलिए सपा को नुकसान हो सकता है. वहीं बसपा ने भी इस सीट पर ओबीसी उम्मीदवार अमित वर्मा को टिकट दिया है. सपा से इस सीट पर शोभावती वर्मा चुनाव लड़ रही हैं जो कि सांसद लालजी वर्मा की पत्नी हैं.



मिर्जापुर की मझवां सीट

 

इस सीट पर भी बीजेपी मजबूत दिख रही है. बीजेपी ने यहां से पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्य की बहू सुचिस्मिता मौर्य को टिकट दिया है तो वहीं सपा ने पूर्व विधायक रमेश बिंद की बेटी डॉ ज्योति बिंद को टिकट दिया है. सुचिस्मिता मौर्य 2017 में मझवां से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। कालीन के कारोबार से जुड़ी सुचिस्मिता मौर्य टिकट कटने के बाद भी लगातार भाजपा नेता के रूप में एक्टिव रहीं। और इस बार बीजेपी ने फिर से उन्हें टिकट दिया है.

 

मैनपुरी की करहल सीट पर सपा मजबूत 

 

मैनपुरी की करहल सीट सपा का मजबूत गढ़ है. वैसे तो सपा यहां काफी मजबूत है लेकिन बीजेपी ने सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के बहनोई अनुजेश यादव को टिकट देकर 'यादव कार्ड' खेलने की कोशिश की है. ऐसे में सपा के लिए बीजेपी थोड़ी मुश्किलें पैदा कर सकती है.



अलीगढ़ की खैर में बीजेपी मजबूत

 

इस सीट पर सपा ने कभी जीत दर्ज नहीं की. यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज के 29 फीसदी वोट हैं जिन्हें भाजपा अपना वोटर मानती है. इस सीट पर दलित वोटर भी 27 प्रतिशत हैं. बसपा इन्हें अपना वोटर मानती है. जाटलैंड कही जाने वाली इस सीट पर बीजेपी ने पूर्व सांसद राजवीर सिंह दिलेर के बेटे सुरेंद्र दिलेर को प्रत्याशी बनाया है. वहीं सपा ने डॉक्टर चारू कैन को टिकट दिया है.

 

 गाजियाबाद की सदर सीट पर बीजेपी मजबूत

 

बीजेपी ने इस सीट से संजीव शर्मा को टिकट दिया है. संजीव शर्मा ब्राह्मण हैं और संगठन में रहते हुए उन्होंने कई चुनाव लड़ाए हैं इसलिए उन्हें इसका अच्छा अनुभव है. साथ ही इस सीट पर दो दलित प्रत्याशी सपा और एआईएमआईएम के हैं. बीजेपी का मानना है कि अगर दलित वोट बंटते हैं तो उसे फायदा होगा.