5 अप्रैल 2011। देश की जनता की जुबान पर एक नारा था, 'मैं भी अन्ना-तू भी अन्ना...।' अन्ना हजारे भ्रष्ट्राचार, घोटाले और भ्रष्ट चेहरे के खिलाफ प्रतिरोध का सबसे बड़े चेहरे बन गए थे। इस आंदोलन में अन्ना के अलावा 4 बड़े चेहरे थे। कुमार विश्वास, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी। 

आंदोलन चला, अरविंद केजरीवाल सुर्खियों में आए। उन्होंने अन्ना हजारे के विरोध के बाद भी जंतर-मंतर से 26 नवंबर 2012 को ऐलान किया कि वह नई राजनीतिक पार्टी बना रहे हैं, जिसका नाम 'आम आदमी पार्टी' होगा। यह वही तारीख है, जब भारत का संविधान अंगीकार किया गया था।

कहां से हुई थी अरविंद केजरीवाल की शुरुआत?
अरविंद केजरीवाल की सियासत की शुरुआत ही जंतर-मंतर से हुई थी। यह नई दिल्ली विधानसभा सीट के अंतर्गत आता है। इस सीट से अरविंद केजरीवाल पहली बार विधायक बने। साल 2013, 2015 और 2020 में वह बड़े अंतर से चुनावों में जीते लेकिन लगातार चौथी बार जीतने का उनका ख्वाब अधूरा रह गया।

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 जहां से शुरू हुई केजरीवाल की सियासत, वहां जीता कौन?
अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा से अपनी सियासी पारी शुरू की थी। यहीं से उन्हें करारी हार मिली है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार प्रवेश साहिब सिंह ने अरविंद केजरीवाल को करारी हार दी है। प्रवेश सिंह को कुल 30088 वोट मिले। उन्होंने अरविंद केजरीवाल को करीब 4089 वोटों से हराया है। कांग्रेस के उम्मीदवार संदीप दीक्षित को कुल 4568 वोट पड़े थे। जितने वोटों से अरविंद केजरीवाल हारे हैं, करीब-करीब उतने ही वोट संदीप दीक्षित को पड़े हैं। संदीप दीक्षित दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं। 

कैसा था अरविंद केजरीवाल का पहला चुनाव?
साल 2013 में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में बंटा हुआ जनादेश आया। बीजेपी ने 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। आम आदमी पार्टी को 28 सीटें मिलीं, वहीं कांग्रेस सिर्फ 8 सीटें जीत पाई। खुद शीला दीक्षित इस चुनाव में लगातार 15 साल सीएम रहने के बाद भी हार गई थीं। खंडित जनादेश के बाद भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच बेमेल गठबंधन हुआ था। यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल पाया। 

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28 दिसंबर 2013 को अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के सीएम बने। 14 फरवरी 2014 को महज 48 दिन के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 14 फरवरी 2014 से लेकर 14 फरवरी 2015 तक के लिए दिल्ली में राष्ट्रपति शासन रहा। वजह यह थी अरविंद केजरीवाल ने कहा कि गठबंधन सरकार में वह अपनी योजनाओं को अंजाम नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने इस्तीफा दिया और सरकार गिर गई। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में AAP को प्रचंड बहुमत मिली। 

चुनाव लड़ने से पहले जहां केजरीवाल ने शुरू की थी सियासत, वहां का भी हाल समझिए

'केजरीवाल की असली सियासत तो सीमापुरी से शुरू हुई थी'
अरविंद केजरीवाल ने सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर दिल्ली की सीमापुरी विधानसभा सीट से अपनी राजनीति शुरू की थी। घर-घर जाकर अरविंद केजरीवाल यहां साल 2012 से पहले भी लोगों की आवाज उठाते थे। तब एक कार्यकर्ता के तौर पर वह बिजली और पानी जैसे मुद्दों को उठाते थे। जिन लोगों का बिजली कनेक्शन बिजली विभाग काटता था, अरविंद केजरीवाल उसे जोड़ने पहुंच जाते थे। इस विधानसभा के साथ-साथ अरविंद केजरीवाल उन इलाकों में ज्यादा जाते, जो अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके थे। अरविंद केजरीवाल ने इन विधानसभाओं में सैकड़ों RTI डाली। उन्होंने इस इलाके में जमकर काम क्या। इस विधानसभा के चुनावी नतीजे क्या रहे, आइए जानते हैं। 

सीमापुरी में किसे मिली जीत?
सीमापुरी विधानसभा आम आदमी पार्टी का गढ़ रही है। यहां से इस बार के चुनाव में वीर सिंह ढींगन जीते हैं। उन्हें कुल 66353 वोट पड़े। दूसरे नंबर पर बीजेपी की कुमारी रिंकू रहीं। उन्हें कुल 55985 वोट मिले। 10 हजार से ज्यादा वोटों से वीर सिंह जीते कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी राजेश लिलोठिया को कुल 11823 वोट पड़े। 

2013, 2015 और 2020 में यहां से कौन जीता था?
साल 2013 में इस विधानसभा सीट से AAP के धर्मेंद्र सिंह चुनाव जीते थे। उन्हें कुल 43199 वोट मिले थे। साल 2015 में AAP के राजेंद्र पाल गौतम यहां से चुने गए। उन्हें कुल 79777 वोट मिले। साल 2020 में भी राजेंद्र पाल गौतम जीते। उन्हें कुल 88392 वोट मिले। साल 2024 में ही वीर सिंह ढींगन कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे।