नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता नवाब मलिक महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में छाए रहे। एनसीपी वैसे तो 'महायुति' की अहम सहयोगी है लेकिन महायुति के नेताओं के निशाने पर वे हमेशा रहे। भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेताओं का एक धड़ा, उन्हें दाऊद इब्राहिम का सहयोगी तक बता चुका है। नवाब मलिक मानखुर्द विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़े लेकिन उनके खिलाफ शिवसेना ने ही उम्मीदवार उतार दिया।
एकनाथ शिंदे की नेतृत्व वाली शिवसेना ने नवाब मलिक के विरोध में ही सुरेश पाटिल को उतार दिया। वे चुनाव में कमाल तो नहीं कर पाए लेकिन उन्होंने नवाब मलिक की मुश्किलें बढ़ा दीं। अबू आसिम आजमी को समाजवादी पार्टी ने चुनावी मैदान में उतारा था। वे ही इस सीट से जीतते नजर आ रहे हैं। शिवसेना और महायुति दोनों पार्टियां, महायुति का हिस्सा हैं लेकिन इस सीट पर दोनों दलों के बीच सहमति नहीं बन पाई।
नवाब मलिक ने कहा भी था कि उनकी सीट पर एनसीपी चुनाव लड़ रही है। महायुति चुनाव नहीं लड़ रही है। ऐसे सियासी हालात बने कि बीजेपी और शिवसेना एक साथ यहां चुनाव लड़े लेकिन एनसीपी नेताओं ने यहां जाने से दूरी भी बनाई। नवाब मलिक को बचाने के लिए अजीत पवार अड़े रहे। आइए जानते हैं कि आखिर नवाब मलिक सबके निशाने पर क्यों रहे?
आइए जानते हैं कि नवाब मलिक क्यों महायुति की पार्टियों के निशाने पर हमेशा रहे हैं।
बीजेपी हेमंत सोरेन को बताती रही है भ्रष्ट
बीजेपी नवाब मलिक को नहीं पसंद करती है। नवाब मलिक के चुनाव प्रचार में भारतीय जनता पार्टी के नेता भी नहीं गए। जब एनसीपी का विभाजन नहीं हुआ था और वे शरद पवार के करीबियों में शुमार थे, तब भी बीजेपी हमलावर थी। उन्हें बीजेपी दाऊद इब्राहिम का सहयोगी कहती रही है। नवाब मलिक, के खिलाफ देवेंद्र फडणवीस के भी तेवर सख्त रहे हैं। वे फरवरी 2022 में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में गिरफ्तार हुए थे।
अंडरवर्ल्ड से लेकर करप्शन तक, क्या हैं उन पर दाग?
नवाब मलिक पर आरोप है कि वे मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़े हैं। वे मनी लॉन्ड्रिंग केस के आरोपी हैं। बीजेपी उन्हें दाऊद इब्राहिम का खास तक बता चुकी है। नवाब मलिक उन पहले नेताओं में से एक हैं, जिन्हें शाहरुख खान के बेटे को गिरफ्तार करने वाले एनसीबी के अधिकारी समीर वानखेड़े के एक्शन पर सवाल उठाए थे।
नवाब मलिक ने समीर वानखेड़े को मुसलमान बताया था और कहा था कि उनका निकाह हुआ है। नवाब मलिक यूपी मूल के हैं। साल 1984 में उत्तर मुंबई सीट से उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की। यह सीट बीजेपी के दिग्गज नेता रहे प्रमोद महाजन की सीट थी। नवाब मलिक ने धीरे-धीरे राजनीति में अपना सिक्का जमा लिया था।
कबाड़ के बिजनेस से कैसे राजनीति में उतरे?
शरद पवार, उन पर भरोसा करते थे लेकिन धीरे-धीरे अजीत पवार के भी वे करीबी बन गए। महाराष्ट्र की राजनीति में एक तबका ऐसा है, जो उन्हें पसंद करता है। उनके पास अल्पसंख्यक, उद्यम और कौशल विकास विभाग भी रहा है। नवाब मलिक, जमींदार परिवार से आते हैं और उनके पिता का बलरामपुर जिले में रसूख था। जब नवाब मलिक पैदा हुए, उससे पहले ही इस्लाम नवाब, मुंबई आ गए थे। नवाब मलिक के पिता ने मुंबई में कबाड़ और होटल के कारोबार में अपना भाग्य आजमाया। बीजेपी उन्हें कबाड़ी वाला कहकर चिढ़ाती रही है। नवाब मलिक की अगली पीढ़ी भी चुनावी मैदान में है। सना मलिक खुल अणुशक्तिनगर से उम्मीदवार हैं।
मेनका गांधी ने जताया था पहली बार भरोसा
नवाब मलिक, छात्र जीवन से राजनीति में उतरे हैं। वे पिता के बिजनेस में भी सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं। साल 1980 में जब मेनका गांधी ने संजय विचार मंच बनाया था, तब नवाब मलिक इससे जुड़े थे। साल 1984 में अपना पहला चुनाव भी उन्होंने ही लड़ा था। साल 1991 में उन्होंने कांग्रेस में अपना भाग्य आजमाया लेकिन टिकट ही नहीं मिला।
करप्शन कनेक्शन जिसने बनाया उन्हें बीजेपी की नजरों में विलेन!
नवाब मलिक साल 1992 में समाजवादी पार्टी में शामिल हुए। साल 1995 में उन्होंने नेहरू नगर सीट से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भी हार गए। उनके खिलाफ शिवसेना नेता सूर्यकांत महादिक चुनाव लड़े थे। वे जीत गए लेकिन आरोप लगे कि वे धर्म के आधार पर वोट मांग रहे हैं। जब उपचुनाव हुए तो वे जीतकर आए। साल 1999 में नवाब मलिक एनसीपी सरकार में राज्य आवास मंत्री बने।
नवाब मलिक सपा से थे, पार्टी नेताओं से लड़े और एनसीपी में शामिल हो गए। नवाब मलिक, मुस्लिम चेहरे के तौर पर पार्टी के प्रतिनिधि रहे। वे अजीत पवार के करीबी रहे। नवाब मलिक भ्रष्टाचार के आरोप में पहली बार साल 2006 में अन्ना हजारे के निशाने पर आए थे। वे विलासवार देशमुख सरकार में मंत्री थे लेकिन इस्तीफा देना पड़ा था। साल 2022 में करप्शन के आरोप में जेल भी गए।