झारखंड के विधानसभा चुनावों में इन दिनों बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जमकर छाया हुआ है। भारतीय जनत पार्टी (BJP) के नेताओं ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। घुसपैठियों के मुद्दे पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और झारखंड मुक्ति मोर्चा से बीजेपी में आए पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, दोनों एक ही पिच पर बैटिंग कर रहे हैं। संथाल परगना में दोनों नेता खुलकर बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठा रहे हैं। 

चंपाई सोरेन, बार-बार दावा कर रहे हैं कि झारखंड के संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठी कब्जा करते जा रहे हैं। पहले जिस गांव में आदिवासियों की संख्या ज्यादा थी, वहां एक भी आदिवासी परिवार नहीं बचा है। वे आदिवासियों को ही उनकी जमीन से बेदखल कर रहे हैं। उन्होंने कई बार मंचों से कहा है कि अगर उनकी पार्टी जीतती है तो वे बांग्लादेसी घुसपैठियों से जमीन वापस छीन लेंगे।

राजनीति में अजेय रहे हैं चंपाई सोरेन
दिलचस्प बात ये है कि जब तक चंपाई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहे, उन्होंने ये मुद्दा नहीं उठाया। वे खुद कई महीने मुख्यमंत्री रहे, उन्होंने इस मुद्दे पर बात नहीं की। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा में 30 साल राजनीति की है। लोग उन्हें कोल्हान टाइगर कहते हैं। वे 2000 के बाद से अब तक चुनावी राजनीति में अजेय रहे हैं।
 
आदिवासियों पर ये कैसी सियासत?
चंपाई सोरेन खुद सरायकेला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ झारखंड मुक्ति मोर्चा से गणेश महाली चुनाव लड़ रहे हैं। वे पहले बीजेपी में थे। साल 2020 के चुनाव में दोनों नेता एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। तब चंपाई झारखंड मुक्ति मोर्चा में थे। चंपाई सोरेन का कहना है कि आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है, आदिवासी परिवारों को मिटाया जा रहा है। 

किस इलाके में आदिवासी घुसपैठ का दावा कर रहे चंपाई?

चंपाई सोरेन का कहना है कि संथाल परगना में सबसे ज्यादा घुसपैठ हुई है। साहिबगंज, गोड्डा, देवघर, पाकुड़, दुमक और जामताड़ा में घुसपैठ ज्यादा हुई है।  आदिवासियों की जमीन कब्जाई गई है। उन्होंने कहा है कि झारखंड में न केवल आदिवासियों की जमीनें कब्जाई गई हैं, बल्कि लव जिहाद के लोग शिकार हो रहे हैं।

रोटी, बेटी जंगल और जमीन पर खतरे से डरे चंपाई सोरेन
28 अक्टूबर को अपने सोशल मीडिया पर चंपाई सोरेन ने लिखा था, 'जिस माटी, रोटी एवं बेटी तथा जल, जंगल व जमीन की रक्षा के लिए वीर सिदो-कान्हू , चांद-भैरव, फूलो-झानो एवं बाबा तिलका मांझी ने अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया था, आज वहां हमारे समाज की जमीनों पर घुसपैठिये कब्जा कर रहे हैं। हमारी बहु-बेटियों की अस्मत खतरे में है। कई गांवों से आदिवासियों का अस्तित्व समाप्त हो गया है।' 

क्यों खौल रहा चंपाई सोरेन का खून?
चंपाई सोरेन ने कहा है, 'यह देख कर खून खौलता है कि हमारे जाहेर थान, मांझी थान तथा अन्य धार्मिक स्थलों पर भी अवैध कब्जा हो रहा है। हम आदिवासी इस भूमि के असली मालिक हैं। जब हमारे समाज में बाहर शादी करने वाली बेटियों का श्राद्ध करने की परम्परा है तो वे कौन लोग हैं, जो इन विधर्मियों को जमाई टोलों में बसा रहे हैं? उन्हें किस का संरक्षण मिल रहा है?'



चंपाई सोरेन ने कहा था?
चंपाई सोरेन ने कहा था, 'जब संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के तहत कोई भी गैर आदिवासी हमारी जमीनें नहीं खरीद सकता, तो फिर इतनी बड़ी संख्या में बसे ये घुसपैठिये कैसे हमारी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं? चुनावों के बाद, हम लोग सभी मांझी परगना तथा पारंपरिक ग्राम प्रधानों के साथ एक बैइसी बुलाएंगे और अवैध तरीके से ली गई सभी जमीनों को उनके मूल मालिकों को वापस करवाएंगे।'

हिमंता की राह पर क्यों चल पड़े चंपाई सोरेन?
भारतीय जनता पार्टी ने मौजूदा हेमंत सोरेन सरकार को जिहाद, मुस्लिम तुष्टीकरण और बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर घेरा है। झारखंड के चुनाव सह प्रभारी हिमंत बिस्व सरमा घुसपैठियों के मुद्दे पर बेहद आक्रामक हैं। सीएम हिमंत, घुसपैठियों पर वही रुख अख्तियार किए हैं, जो उन्होंने असम में किया है। वे सीधे, घुसपैठियों को देश से बाहर निकालना चाहते हैं। बीजेपी घुसपैठ के मुद्दे पर ही राजनीति कर रही है। 

सीएम हिमंत ने शुक्रवार को ही चुनावी सभा में हिंदू-मुस्लिम की जनसंख्या घनत्व को लेकर आंकड़े शेयर किए हैं। उन्होंने कहा कि संथाल परगना में मुस्लिम जनसंख्या साल 1951 में 10 फीसदी थी, 2024 में यह बढ़कर 40 फीसदी हो गई। हिंदू जनसंख्या 90 प्रतिशत से घटकर 67 प्रतिशत तक पहुंच गई। उन्होंने इसके आंकड़े नहीं बताए। हिमंत बिस्व सरमा ने शनिवार को ही कहा, '500 वर्ष बाद रामलला के विराजमान के बाद अयोध्या में दीपावली मनाई गई। अगर कांग्रेस सत्ता में होती, तो क्या यह मुमकिन था? अब झारखंड में भी मोदी जी की सरकार बनने के साथ ही हम संथाल से घुसपैठियों को भगाएंगे और रामराज्य की स्थापना करेंगे। 



राजनीति विश्लेषक और कांग्रेस नेता प्रमोद उपाध्याय बताते हैं, 'यह उनकी चुनावी मजबूरी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा में उनके लिए अब विकल्प नहीं बचा है। वे बीजेपी की जिन-जिन नीतियों पर बरसते थे, उनकी अब तारीफ कर रहे हैं। जब तक वे झारखंड मुक्ति मोर्चा में थे, बड़े मंत्री थे, जेएमएम के सबसे सीनियर नेता थे तब उन्हें ये मुद्दा नजर नहीं आया, अब आ रहा है। जब वे इसकी जांच करा सकते थे, एक्शन ले सकते थे, तब तो नहीं किया, अब बीजेपी में जाते ही ये मुद्दे उन्हें नजर आने लगे। यह उनकी राजनीतिक मजबूरी से ज्यादा कुछ और नहीं है।'

 

कोल्हान टाइगर क्यों कहे जाते हैं चंपाई सोरेन?
कोल्हान मंडल में चंपाई सोरेन का दबदबा है। पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां और पश्चिम सिंहभूम के सबसे बड़े नेताओं में उनकी गिनती होती है। वे संथाल समुदाय से ही आते हैं और संथालियों में उनकी मजबूत पकड़ है। उनका राजनीतिक प्रभुत्व 14 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर है। बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, जमशेदपुर (पूर्व), जमशेदपुर (पश्चिम), ईचागढ़, खरसावां, सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर विधानसभा सीटों पर इनकी मजबूत पकड़ है। साल 2019 के चुनाव में इनके ही दम पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 14 में से 11 सीटें जीत ली थीं। अब बीजेपी ने उन्हें इन्हीं क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के लिए उतारा है।