महाराष्ट्र के चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा, मराठा आरक्षण को लेकर है। माराठाओं का एक बड़ा हिस्सा, मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में आंदोलन कर रहा है। वे अपने लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय के तहत आरक्षण की मांग कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मराठा आर्थिक तौर पर पिछड़े हैं, जाति व्यवस्था में न तो वे ब्राह्मण हैं, न ही क्षत्रिय, न ही वैश्य। ऐसे में उन्हें पिछड़ा वर्ग माना जाए और आरक्षण दिया जाए। मराठा अधिकारों की वकालत करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल, एक बार फिर मराठा आंदोलन को लेकर चर्चा में हैं। वे चाहते हैं कि करीब 33 फीसदी आबादी वाले मराठाओं को सरकार आरक्षण दे। वे कई बार भूख हड़ताल पर बैठ चुके हैं। आइए जानते हैं मराठा आंदोलन की पूरी कहानी क्या है।
मराठा कौन हैं?
मराठा साम्राज्य। 17वीं शताब्दी में उभरे और 18वीं शताब्दी तक एक मजबूत ताकत के तौर पर देश में स्थापित करने वाले मराठी भाषियों का एक समुदाय। यह समुदाय योद्धा था, ज्यादातर छोटे-छोटे किसान इस वर्ग से आते थे। मुगल और इस्लामिक शासन व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करने वाले मराठा समुदाय का दबदबा रहा है। मराठा साम्रज्य की शुरुआत 1674 में हुई और इस समुदाय के सबसे प्रसिद्ध राजा हुए छत्रपति शिवाजी। मराठा साम्राज्य महाराष्ट्र से लेकर मध्यप्रदेश तक, दक्षिण में तमिलनाडु से लेकर उत्तर में पेशावर और पूर्व में उड़ीसा और पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ था। मराठा क्षत्रियों की तरह ही एक लड़ाकू जाति रही है।
महाराष्ट्र में करीब 33 प्रतिशत मराठा हैं। ज्यादातर मराठा, मराठी बोलते हैं और अब राजनीतिक रूप से काफी प्रभुत्वशाली हैं। महाराष्ट्र राज्य के गठन के बाद 1060 से लेकर अब तक कुल 20 मुख्यमंत्रियों में से 12 मराठा रहे हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी मराठा ही हैं। मराठा सीमांत किसानों से लेकर सत्ता के बड़े पदों तक बैठे हैं। एक जमाने में इस समुदाय का वर्चस्व था लेकिन जमीनों के विभाजन और बढ़ती आर्थिक असामनता की वजह से इस समाज के लोग भी बड़ी संख्या में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं। मराठा समुदाय को 1980 में मंडल आयोग ने अगड़ी जाति माना था।
क्यों अपने लिए आरक्षण चाहते हैं मराठा?
मराठा आरक्षण को लेकर दशकों से आंदोलन चल रहा है। साल 1981 में पहली बार बड़ी संख्या में लोग मतहाड़ी लेबर यूनियन के नेता अन्नासाहेब पाटिल के नेतृत्व में सड़कों पर उतरे थे। साल 2016 से 2018 के बीच मराठा क्रांति मोर्चा ने भी राज्यवापी प्रदर्शन किए थे। 60 से ज्यादा रैलियां निकाली गई थीं। इस दौरान कुछ हिंसा भी भड़की थी। महाराष्ट्र की राज्य सरकारें, मराठाओं की ये मांग पूरी करने में कमजोर साबित हुई हैं। अब इस आंदोलन के सबसे बड़े नेता मनोज जरांगे पाटिल बन गए हैं। वे लगातार मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं।
क्या चाहते हैं मराठा?
मराठा चाहते हैं कि उन्हें कुनबी के तौर सूचीबद्ध कर दिया जाए। अगर उन्हें इस समुदाय के अंदर माना जाएगा तो उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत आरक्षण का लाभ मिल सकता है। अगर कुनबी सर्टिफिकेट उन्हें मिल जाता है तो वे पिछड़े वर्ग के तहत आरक्षण का लाभ ले सकते हैं। कुनबी समुदाय, कृषक समुदाय है और ओबीसी के तहत आता है। मराठा, इसी समुदाय का दर्जा चाहते हैं। अन्य समुदायों का मानना है कि मराठा, पिछड़ी जातियों में नहीं आते हैं, इसलिए उन्हें आरक्षण न दिया जाए और ओबीसी के तहत उनकी लिस्टिंग न हो। मराठाओं की राज्य में आबादी करीब 33 प्रतिशत है, वहीं ओबीसी 52 प्रतिशत है। ओबीसी की राज्य में जातियां 384 हैं, ऐसे में गैर-मराठाओं का कहना है कि अगर माराठा इस लिस्ट में आते हैं तो उनका हक मारा जाएगा।
ओबीसी के तहत आरक्षण के लिए मांग तब और बढ़ गई, जब मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग अधिनियम 2018 (SEBC) के तहत इसे खारिज कर दिया था। जून 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण को SCBC एक्ट के तहत सही माना था। कोर्ट ने यह कहा था कि 16 प्रतिशत कोटा इस अधिनियम के तहत न्यायोचित नहीं है और इसे शिक्षा के लिए घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया था, वहीं सरकारी नौकरियों के लिए 13 प्रतिशत कर दिया था।
दरअसल मराठों को आरक्षण के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, साल 2018 में SEBC एक्ट लेकर आए थे। इस अधिनियम में मौजूदा आरक्षण व्यवस्था में कोई छेड़-छाड़ किए बिना मराठों को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 12-13 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान था। हालांकि कुछ संशोधनों की वजह से कुल आरक्षण 63-64 प्रतिशत जा पहुंचा था। संविधान के मुताबिक आरक्षण की सीमा, 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती। अगर इससे ज्यादा किया जाए तो उसके लिए सही तर्क होने चाहिए। कोर्ट सरकार के तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट में कैसी रही आरक्षण की जंग
मई 2021 को 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता में मराठा आरक्षण से जुड़े प्रावधानों पर रोक लगा दी। इंद्रा साहनी केस का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि केंद्र सरकार का 10 प्रतिशत कोटा, आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए (EWS) दिया जा सकता है। महाराष्ट्र सरकार ने तर्क दिया कि जब तक मराठा आरक्षण का मुद्दा सुलझ नहीं जाता है, तब तक आर्थिक तौर पर पिछड़ा मराठा समुदाय EWS कोटा के तहत भी लाभ नहीं ले सकता है। राज्य सरकार ने इस फैसले के लिए पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही है।
OBC जातियों को भी है मराठाओं के आरक्षण पर ऐतराज
महाराष्ट्र में ओबीसी वर्ग के नेताओं का कहना है कि मराठाओं को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। राज्य में कुल 53 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। इसमें से 13 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 7 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 19 प्रतिशत ओबीसी, विशेष पिछड़े वर्ग को 2 प्रतिशत, विमुक्त जाति को 3 प्रतिशत, खानाबदोश जाति (बी) को 2.5 प्रतिशत, खानाबदोश जाति (सी) धनगड़ को 3.5 प्रतिशत और वंजारी जाति को 2 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। 10 प्रतिशत मामले EWS के लिए हैं। आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्ण, जिनकी सालाना इनकम 8 लाख से कम है, उन्हें भी आरक्षण मिलता है।
इस चुनाव में किस ओर हैं मराठा?
मराठा समुदाय आमतौर पर शिवसेना और बीजेपी से जुड़ा रहा है। अब शिवसेना में दो धड़े हैं, उद्धव गुट और शिंदे गुट। एकनाथ शिंदे खुद मराठा हैं। बाला साहेब ठाकरे की मराठा समाज इज्जत करता है। मराठा बीजेपी को भी वोट करते रहे हैं। देवेंद्र फडणवीस भी मराठाओं को आरक्षण देने की कोशिश कर चुके हैं। कानूनी पेचीदगी की वजह से यहां मामला अटक जाता है। इस बार, मराठा आंदोलनकारियों का एक तबका, देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे की सरकार से नाराज भी नजर आ रहे हैं। अब देखने वाली बात ये होगी कि ये नाराजगी वोटों में बदलती नजर आएगी या नहीं।