शहरी आबादी वाली दिल्ली में विधानसभा का चुनाव हो रहा है। इस चुनाव में बिजली, पानी, स्वास्थ्य और स्कूल जैसे मुद्दों के अलावा एक ऐसा मुद्दा भी है जिसने हर पार्टी को अपनी ओर आकर्षित किया है। पहले कांग्रेस, फिर आम आदमी पार्टी का वोट बैंक बन चुकी झुग्गी-झोपड़ियों के लिए इस बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने भी खूब पसीना बहाया है। झुग्गियों को लेकर AAP और BJP के बीच जुबानी जंग हो रही है। BJP आरोप लगा रही है कि AAP ने 10 साल के कार्यकाल में कुछ किया ही नहीं, वहीं AAP के मुखिया और पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अगर बीजेपी हर झुग्गी वाले को मकान देना सुनिश्चित कर दे तो वह चुनाव ही नहीं लड़ेंगे। इस मुद्दे पर अब दिल्ली के एलजी विनय सक्सेना तक सामने आए हैं और उन्होंने केजरीवाल के कुछ दावों को झूठा बताया है।
इतना ही नहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने झुग्गी के प्रधानों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि वे चाहें तो 5 फरवरी को दिल्ली को मुक्त करा रहे हैं। अमित शाह का इस तरह के बयान देना, बीजेपी का झुग्गियों में मेहनत करना और AAP का लगातार झुग्गियों में संपर्क जारी रखना यह दर्शाता है कि दिल्ली के चुनाव में ये झुग्गियां कितनी अहम हैं। यही वजह है कि पिछले 5 साल में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के जरिए हजारों झुग्गीवासियों को मकान देने के लिए 'जहां झुग्गी वहीं मकान' जैसी योजना भी शुरू की है। आइए समझते हैं कि दिल्ली में झुग्गी वाले मतदाता इतने अहम क्यों हो गए हैं...
क्या है झुग्गी-झोपड़ी?
आमतौर पर जब दूसरे राज्यों से मजदूर काम करने के लिए दिल्ली आते हैं तो वे खाली पड़ी जमीन पर तंबू लगाकर रहने लग जाते हैं। दिल्ली के दशकों के इतिहास में यह देखा गया है कि हजारों-लाखों लोग दिल्ली में आकर बसते गए। मौजूदा समय में ऐसी लाखों झुग्गियां पूरी दिल्ली में बसी हुई हैं। लंबे समय से रह रहे इन लोगों को दिल्ली में वोटिंग के अधिकार भी मिले हैं, कई झुग्गी बस्ती के लोगों को डीडीए की ओर से सस्ती दरों पर फ्लैट दिए गए हैं और सरकार की ओर से झुग्गी-बस्तियों के लिए योजनाएं भी चलाई जाती रही हैं। यही वजह है कि कई जगहों पर अवैध बस्तियों को तोड़े जाने के बावजूद दिल्ली का एक अहम हिस्सा ये बस्तियां ही हैं।
दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) के 2019 के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में कुल 675 झुग्गी-बस्तियां हैं। इनमें से कुछ बस्तियां, डीडीए की जमीन पर, कुछ रेलवे की जमीन पर, कुछ DUSIB की जमीन पर, कुछ ग्राम सभा की जमीन पर, कुछ एमसीडी की जमीन पर, कुछ PWD की जमीन पर और कुछ बस्तियां सेना, वन विभाग, एनडीएमसी, कैंटोनमेंट बोर्ड, सीपीडब्ल्यूडी, वक्फ बोर्ड और ऐसे ही कई अन्य विभागों की जमीन पर बनी हुई हैं। अदालत के आदेशानुसार इन झुग्गियों को बिना आधिकारिक अनुमति के तोड़ा नहीं जा सकता है। अगर इन्हें तोड़ा जाता है तो लोगों का पुनर्वास किया जाना जरूरी है।
डेटा से समझिए क्यों जरूरी हैं झुग्गियां?
आंकड़ों की मानें तो दिल्ली की 70 विधानसभाओं को मिलाकर लगभग 15 लाख वोटर ऐसे हैं जो झुग्गी-बस्ती में ही रहते हैं। कुल 1.5 करोड़ मतदाताओं के हिसाब से यह संख्या लगभग 10 पर्सेंट है। यानी हर विधानसभा में औसतन 20 हजार वोटर झुग्गी-बस्ती वाले ही हैं। इन झुग्गी बस्तियों में लगभग 3 लाख परिवार रहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी नेता विष्णु मित्तल कहते हैं, 'कुल 15 लाख मतदाता झुग्गियों में रहते हैं जिसमें से 9 से 10 लाख लोग वोट डालते हैं। इसमें से लगभग 7 लाख लोग AAP को वोट देते हैं और 2 लाख लोग वोट देते हैं। बाकी के लोग कांग्रेस और अन्य को वोट देते हैं। अगर हम 4-5 लाख वोट अपनी ओर कर पाते हैं तो यह गेमचेंजर साबित होगा।'
यही वजह है कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद ही 'झुग्गी विस्तारक योजना' की शुरुआत कर दी थी। इस योजना के तहत बीजेपी के नेताओं झुग्गियों में प्रवास किया, लोगों से संपर्क साधा और पारंपरिक रूप से AAP और कांग्रेस के मतदाता माने जाने वाले झुग्गी निवासियों से संपर्क स्थापित करने की कोशिश की। अब देखना यही होगा कि अपने इस अभियान में बीजेपी को कितनी कामयाबी मिलेगी।
अमित शाह का भी झुग्गियों पर फोकस
झुग्गी-बस्ती के मतदाताओं पर जोर लगा रही बीजेपी ने एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया। इसमें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने झुग्गी-बस्ती के प्रधानों से मुलाकात की और वादा किया कि अगर दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनती है तो लोगों को मिल रही योजनाओं का लाभ बंद नहीं किया जाएगा। दरअसल, AAP प्रचार कर रही है कि अगर बीजेपी जीत गई तो फ्री बिजली, फ्री पानी जैसी सुविधाएं बंद कर दी जाएंगी। इसी कार्यक्रम में अमित शाह ने वादा भी किया कि बीजेपी के सरकार में आने पर हर झुग्गी निवासी को घर दिया जाएगा। उन्होंने कहा, 'झुग्गी-बस्ती के लोग ही दिल्ली को मुक्त कराएंगे और इस आप-दा सरकार को उखाड़ फेंकेंगे।'
झुग्गियों की समस्याएं
झुग्गियां कोई स्थायी निवास नहीं हैं। यही वजह है कि इनमें पक्की सुविधाएं भी मुहैया नहीं कराई जा सकती हैं। हालांकि, अलग-अलग सरकारों ने बिजली, पानी के टैंकर जैसी सुविधाएं जरूर सुनिश्चित करने की कोशिश की है। सफाई का मुद्दा सबसे बड़ा है। इसके अलावा पानी के टैंकर में अनियमितता, कभी भी उजाड़ दिए जाने का डर और आवास मिलने को लेकर होने वाली भागदौड़ बड़ी समस्या है।
जमीनें अलग-अलग विभागों की होने से भी कई बार समस्या होती है। उदाहरण के लिए- अगर जमीन केंद्र सरकार के किसी विभाग की हो तो दिल्ली सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती। इसी तरह अगर दिल्ली सरकार इन बस्तियों को हटाना चाहे तो केंद्र सरकार का भी दखल उतना प्रभावी नहीं होता। इसके चलते सरकारें और एजेंसियां एक-दूसरे के ऊपर तरह-तरह के आरोप लगाती रहती हैं और इसमें झुग्गी-बस्तियों के लोग पिसते हैं। बीते कुछ सालों में दिल्ली के खैबर पास, तुगलकाबाद, सुंदर नगरी और ओखला जैसे इलाकों में बुलडोजर चलाकर झुग्गियां तोड़ी भी गई हैं। इसको लेकर भी AAP और बीजेपी के बीच जुबानी जंग तो खूब हुई लेकिन झुग्गी के लोग बेघर हो गए।
केजरीवाल के वोटबैंक पर BJP की नजर क्यों?
दरअसल, शुरुआत से ही अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने उस वर्ग को साधा जो ज्यादातर समय पर फ्लोटिंग वोटर की तरह वोट करता है। केजरीवाल ने अपने पहले चुनाव में ही फ्री बिजली, फ्री पानी देने का वादा किया और 49 दिन की सरकार में भी इसे पूरा करने की ओर कदम भी बढ़ा दिया। इसका लाभ झुग्गी-बस्ती वालों को सबसे ज्यादा मिला। फिर स्कूलों पर काम किया गया जिससे गरीब परिवार भी प्रभावित हुए। मोहल्ला क्लीनिक में फ्री इलाज, बसों में महिलाओं के लिए फ्री यात्रा जैसी योजनाओं का सबसे ज्यादा असर इन्हीं झुग्गी बस्तियों में देखा गया और इसका चुनावी फायदा अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को 2015 और 2020 के चुनाव में भी मिला।
बीजेपी को भी यह समझ में आया है कि भले ही वह लोकसभा के चुनाव में सातों सीटें जीत रही हो, विधानसभा चुनाव में AAP के वोट में ज्यादा कमी नहीं आई है। ऐसे में अगर केजरीवाल को हराना है तो बीजेपी के लिए जरूरी है कि वह AAP के वोटर कहे जाने वाले झुग्गी-बस्ती के मतदाताओं को या तो अपनी तरफ करे या फिर कुछ हद तक केजरीवाल का वोट काटे। अगर बीजेपी इसमें कामयाबी होती है तो अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ना तय है। वहीं, अगर बीजेपी के इतने प्रयासों के बावजूद AAP झुग्गी-बस्ती के लोगों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहती है तो एक बार फिर वह सत्ता बचा पाएगी।