देविका रानी चौधरी। हिंदी सिनेमा की वह हिरोइन जिसने ग्लैमर की दुनिया में न केवल खुद को साबित किया, बल्कि पुरुषवादी समाज को खुलकर चुनौती दी और साबित कर दिया कि महिलाओं को अगर काम करने का मौका मिले तो वे दुनिया बदल सकती हैं। वे न केवल विवादों में रहीं, दकियानूसी सोच से लड़ीं, बल्कि उन्होंने वह सब किया, जिसके लिए उन्हें फिल्म जगह आज भी याद करता है।
साल 1930 से लेकर 1940 के दशक तक उन्होंने बड़े पर्दे पर राज किया। सिनेमा की शुरुआत हो चुकी थी और वे पहली महिला बनकर उभरीं जिन्हें फिल्म जगत में सफलता मिली। अगर सुपरस्टार का तमगा तब दिया जाता तो यह उन्हें ही हासिल होता। देविका रानी एक समृद्ध परिवार में पैदा हुई थीं। वे जब पढ़ने लायक हुईं, उन्हें महज 9 साल की उम्र में पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया। वहीं उनकी मुलाकात साल 1928 में हिमांशु राय से हुई। हिमांशु राय भारतीय सिनेमा में प्रोड्यूसर थे। दोनों को प्यार हुआ और शादी रचा ली।
ऐसे हुई फिल्मी दुनिया की शुरुआत
'अ थ्रो डाइस' साल 1929 में बनी। इस फिल्म में उन्होंने कास्ट्यूम डिजाइनर के तौर पर काम किया। यह दंपति फिल्म मेकिंग में ट्रेनिंग लेने जर्मनी चला गया। साल 1934 में वे अपने पति के साथ भारत लौटीं। बर्लिन की यूएफए स्टूडियो में फिल्म ट्रेनिंग काम आई। हिमांशु राय और राजनारायण दूबे ने बॉम्बे टाकीज नाम से एक प्रोडक्शन स्टूडियो बनाया। कुछ दूसरे लोगों ने भी इसमें हिस्सा लिया। इस प्रोडक्शन हाउस से कई सफल फिल्में बनीं। देविका रानी कई फिल्मों में लीड हिरोइन बनीं। अशोक कुमार के साथ उनकी जोड़ी सुपरहिट हो गई।
हिंदी फिल्मों में ऐसे हुई थी स्मूच सीन की शुरुआत
साल 1933 में हिमांशु राय ने एक ऐतिहासिक फिल्म बनाई कर्मा। यह फिल्म मूल रूप से अंग्रेजी में बनी थी। देविका रानी और हिमांशु राय दोनों ने इस फिल्म में अभिनय किया था। भारतीय सिनेमा में पहली बार ऑन स्क्रीन किसिंग इसी फिल्म में फिल्माया गया। यह सीन करीब 4 मिनट तक चला था। इस फिल्म में बोल्ड सीन थे। उन्होंने भारतीय सिनेमा को ग्लोबल पहचान दिलाई थी। उनकी फिल्मों पर विदेश में भी चर्चा होती थी। बॉम्बे टॉकीज ने देविका रानी और नज्म-अल-हसन के साथ 1935 में एक फिल्म जवानी की हवा भी बनाई थी।
पति को छोड़कर प्रेमी के साथ रहने लगी थीं देविका
इसी फिल्म के दौरान वे नज्म को दिल दे बैठीं। हिमांशु के साथ शादी के बाद भी वे नज्म के साथ रहने लगीं। हिमांशु राय नाराज हुए तो फिल्म की शूटिंग रुकी। हालात इतने बुरे हुए कि बॉम्बे टाकीज दिवालिया होने लगी। किसी तरह देविका रानी फिल्म में काम करने के लिए राजी हुईं लेकिन देविका रानी की शर्तें ऐसी थीं कि उनके पसीने छूट गए। किसी तरह जीवन नैया फिल्म की शूटिंग हुई।
इस वजह से छोड़ दी थी इंडस्ट्री
अशोक कुमार और देविका रानी की फिल्म अछूत कन्या भी चर्चा में रही। साल 1940 में हिमांशु राय की मौत हुई तो उन्होंने बॉम्बे टॉकीज की कमान संभाल ली। उन्होंने कई हिट फिल्में बनाईं। पर्दे पर वे आधुनिक महिला का किरदार निभाती थीं, जो बोल्ड हो, सिगरेट-शराब पीए और अंग्रेजीदां हो। देविका रानी और शशधर मुखर्जी के बीच खटपट हुई तो उन्होंने फिल्मी दुनिया छोड़ दी।
मोहम्मद युसुफ खान को बनाया था दिलीप कुमार
हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा 'दिलीप कुमार: द सब्सटेंस एंड द शैडो' में लिखआ है कि देविका रानी ने उन्हें स्क्रीन नेम रखने की सलाह दी थी। उनका नाम सिनेमा में आने से पहले मोहम्मद युसुफ खान था। उन्होंने कहा कि ऐसा नाम रखो जिससे आम लोग जुड़ सकें और रोमांटिक हीरो वाली छवि बन पाए।उन्होंने इसके बाद अपना नाम ही यही रख लिया।
इंडस्ट्री छोड़ी और रशियन पेंटर से शादी कर ली
देविका रानी ने इंडस्ट्री छोड़ दी और रशियन पेंटर स्वेतोस्लाव रोरिच से शादी रचा ली। साल 1958 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार मिला। 1969 आते-आते उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिल गया। 9 मार्च 1994 को 85 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।