हिंदी सिनेमा के दिग्गज फिल्म मेकर श्याम बेनेगल ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वह 90 साल के थे। उनकी बेटी ने बताया कि वो क्रोनिक डिजीज से जूझ रहे थे। उन्होंने मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में आखिरी सांस ली। 70 के दशक में उन्होंने पैरेलल सिनेमा की शुरुआत की। उनकी फिल्मों में कोई नायक नहीं होता था। उनके फिल्मों के किरदार आम लोगों से प्रेरित होते थे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 'अंकुर' से की थी। उन्होंने 'मंथन', 'मंडी', 'मुजीब', 'निशांत', 'कलयुग' जैसी शानदार फिल्मों का निर्माण किया था। उनका हिंदी सिनेमा में अनोखा योगदान रहा है।
उनकी फिल्म 'मंडी' साल 1983 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिला था। फिल्म में शबाना आजमी, रत्ना पाठक, स्मिता पाटिल, अमरीश पुरी जैसे दिग्गज अभिनेता थे। उन्होंने अपने इंटरव्यू में बताया था कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी फिल्में 100 हफ्ते या उससे ज्यादा चले। मैंने वो फिल्में बनाई जो हमेशा से बनाना चाहता था। उन्होंने कहा कि मैं फिल्म बनाने के समय ब्रेक नहीं लेता था। मेरी फिल्मों को बनने में 45 से 44 दिन लगते थे।
'मंडी' को लेकर सुनाया दिलचस्प किस्सा
'अंकुर' निर्देशक ने बताया, ''मंडी' में मेरे सभी पंसदीदा एक्टर्स थे। ओमपुरी, नसीरुद्दीन, शबाना, स्मिता पाटिल थे। मैंने ये फिल्म हैदराबाद में शूट की थी। हमने बिना कुछ सोचे शूटिंग करते जा रहे थे। इसमें बहुत मजा आया था। उन्होंने एक्टर्स की तारीफ करते हुए कहा था कि उनकी इंप्रोवाइजेशन इतनी कमाल की थी। मैंने इस फिल्म की शूटिंग का शेड्यूल 45 दिन का था लेकिन इस फिल्म की शूटिंग हमने 28 दिनों में पूरी कर ली थी। आखिरी दिन जब शॉट शूट कर रहा था तो हैरान था कि इतनी जल्दी खत्म हो गई'।
क्या है 'मंडी' की कहानी
'मंडी' उर्दू शॉर्ट स्टोरी आनंदी पर आधारित थी जिसे गुलाम अब्बास ने लिखा था। 'मंडी' की कहानी एक वेश्यालय की है जिसे रुक्मिणी बाई (शबाना आजमी) चलाती हैं। ये वेश्यालय शहर के बीच में स्थित है। इस जमीन को कुछ राजनेता हथियाने की कोशिश करने लगते हैं। इसके इर्दगिर्द फिल्म की कहानी केंद्रित है। इस फिल्म ने बेस्ट आर्ट डायरेक्शन के लिए नेशनल अवॉर्ड जीता था।