भारत में फिल्में तो बनती रहीं लेकिन आज की जो फिल्में नजर आती हैं, उनकी शुरुआत आलमआरा से हुई थी। आलम आरा फिल्म साल 1931 में रिलीज हुई थी, अफसोस इस फिल्म का एक भी प्रिंट ऐसा नहीं है, जिसे आप देख सकें। फिल्म जब बनकर पूरी हुई और सिनेमाघर में लगी तो उसे देखने इतनी भीड़ उमड़ी कि पुलिस को लाठीचार्ज करके हालात संभालने पड़े। इस फिल्म की कहानी, रील, फिल्म मेकिंग में शामिल मशीनें कहां हैं, इसकी तलाश में लोग लगे हैं लेकिन कुछ अहम मिल नहीं रहा है।
आलम आरा फिल्म की रील कहां है, किसी को कोई खबर नहीं है। ऐसा नहीं है कि आलमआरा भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म थी। भारत में साल 1912 से फिल्में बनती आई हैं लेकिन वे फिल्में मूक फिल्में हुआ करती थीं। आलम आरा पहली बोलती फिल्म थी।
किस फिल्म से प्रभावित थी आलम आरा?
आलम आरा फिल्म, साल 1929 में आई हॉलीवुड फिल्म शो बोट से प्रभावित थी। इस फिल्म में महलों में रहने वाले रानियों की कहानी बताई गई थी, जिसमें राजमहलों के प्रेम, जलन और साजिशों पर कहानी बुनी गई थी। इस फिल्म में एक राजघराने का राजकुमार था, एक बंजारा लड़की थी, जिसकी प्रेम कहानी आलम आरा था।
रात में क्यों होती थी फिल्म की शूटिंग?
आलम आरा फिल्म 124 मिनट लंबी थी। मुंबई के एक स्टूडियो में इस फिल्म की शूटिंग हुई थी। कहते हैं कि स्टूडियो के पास में ही एक रेलवे स्टेशन था, इस फिल्म की ज्यादातर शूटिंग रात में करनी पड़ी क्योंकि दिन में बहुत शोर होता था। उस जमाने में साउंड प्रूफ स्टूडियो नहीं होते थे।
कैसे बोलती फिल्म की हुई शूटिंग?
तब बूम माइक नहीं होते थे इसलिए कलाकारों के पास ही माइक को छिपाया गया था। फिल्म की शूटिंग के दौरान कलाकार कहीं छिपकर म्युजिक बजाते थे तब शूटिंग होती थी, जिससे साउंड और आवाज में घालमेल न होने पाए। इस फिल्म में काम करने वाले वजीर मोहम्मद खान के नाम हिंदुस्तानी सिनेमा का पहला गीत गाने का भी रिकॉर्ड है।
किन अभिनेता-हिरोइनों ने किया था काम?
आलम आरा फिल्म में मास्टर विट्ठल, जुबैदा, जिल्लो, सुशीला और पृथ्वीराज कपूर ने एक्टिंग की थी। फिल्म की पटकथा जोसेफ डेविड ने लिखी थी, वहीं इसके निर्देशक अर्देशर ईरानी थे। इस फिल्म को इम्पीरियल मूवीटोन नाम की एक कंपनी ने प्रोड्यूस किया था।
कैसे मिला बॉलीवुड को पहला गाना?
इस फिल्म में करीब 7 गाने थे। इस फिल्म का गाना दे दे खुदा के नाम, पहला फिल्मी गाना होने का रिकॉर्ड है। इस फिल्म में बदला दिलवाएगा या रब, रूठा है आसमान और दरस बिना मारे जैसे गाने हैं।
कब रिलीज हुई थी फिल्म?
यह फिल्म पहली बार 14 मार्च 1931 को रिलीज हुई थी। यह एक पारसी नाटक है। फिल्म के बारे में कहते हैं कि इसका पहला शो शाम 3 बजे से शुरू होने वाला थे लेकिन सुबह-सुबह ही हजारों लोग सिनेमाघर के बाहर आ जुटे, जिसके बाद बवाल मच गया। पुलिस ने दर्शकों को भगाने के लिए लाठियां चलाई थीं।
फिल्म का कुछ बचा है या सब खो चुका है?
मूक फिल्मों की दुनिया में यह फिल्म वरदान की तरह थी। इस फिल्म की कुछ तस्वीरें ही बची हैं। एक पुराना पोस्टर और बुकलेट है। इस फिल्म के निशान खो गए हैं, जिन्हें आज भी फिल्मों के संरक्षक ढूंढ रहे हैं।