ब्रिटेन ने भारत पर करीब 200 सालों तक राज किया और इस दौरान भारत की तमाम दौलत को यहां से ब्रिटेन ले जाया गया। इसीलिए कभी दादा भाई नौरोजी ने कहा भी था कि अंग्रेजी राज स्पंज की तरह काम करता है जो कि गंगा नदी से पानी सोखकर टेम्स नदी में जाकर निचोड़ देता है।

 

समय समय पर कई लोग इस पर बात करते रहे हैं, लेकिन हाल ही में ब्रिटेन के अधिकार समूह ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट ने एक ऐसा खुलासा किया है जो चौंकाने वाला है।

 

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 1765 से 1900 के बीच अंग्रेजों ने भारत से करीब  64.82 ट्रिलियन (खरब) अमेरिकी डॉलर की लूट की. खास बात यह थी इसमें से लगभग आधा यानी कि 33.8 खरब डॉलर ब्रिटेन के 10 प्रतिशत अमीर लोगों के पास पहुंचा। 

 

सामान्य शब्दों में कहा जाए तो भारत से लूटे गए कुल धन के आधे का कुल लाभ अमीरों को मिला और बाकी के आधे धन में 90 प्रतिशत को लाभ मिला।

 

ऑक्सफैम की यह रिपोर्ट वैश्विक असमानता पर आधारित है जो कि हर साल विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की वार्षिक बैठक से एक दिन पहले जारी की जाती है.

 

‘Takers, not Makers’ के नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आज कल की जो मल्टी नेशनल कंपनियां हैं वह भी इसी उपनिवेशवाद का नतीजा हैं जो ग्लोबल नॉर्थ के फायदे के लिए ग्लोबल साउथ के लूट पर आधारित है।

पूरे लंदन को नोटों से ढका जा सकता है

रिपोर्ट में कहा गया है, 'ऐतिहासिक उपनिवेशवाद के दौर में शुरू हुई असमानता और लूट की कमियां आज भी आधुनिक जीवन को आकार दे रही हैं। इसने एक बहुत ही असमान दुनिया बनाई है, जो नस्लवाद के आधार पर विभाजनों से विभाजित है। एक ऐसी दुनिया जो ग्लोबल साउथ से व्यवस्थित रूप से धन निकालती है ताकि मुख्य रूप से वैश्विक उत्तर के सबसे अमीर लोगों को लाभ पहुंचाया जा सके।'

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत से जितना पैसा ब्रिटेन ने लूटा उसे अगर जमीन पर बिछाया जाए तो 50 ब्रिटिश पाउंड की नोटों से लंदन की पूरी जमीन को चार बार ढका जा सकता है।

लूट का नतीजा हैं मल्टी नेशनल कंपनियां

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आज की बड़ी मल्टी नेशनल कंपनियां भी इसी उपनिवेशवाद का नतीजा हैं। इसमे कहा गया है कि आधुनिक युग में भी मल्टीनेशनल कॉर्पोरेशन मोनोपोली का फायदा लेते हैं और वे आमतौर पर वे ग्लोबल साउथ के वर्कर्स का शोषण करते हैं।

 

रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक सप्लाई चेन और एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग इंडस्ट्री धन के दोहन का आधुनिक सिस्टम बन गए हैं। इस सप्लाई चेन में जो श्रमिक काम करते हैं उनके सामाजिक सुरक्षा की अनदेखी की जाती है। इसमें यह भी कहा गया है कि समान काम के लिए ही ग्लोबल नॉर्थ की तुलना में ग्लोबल साउथ में 87 से 95 प्रतिशत कम पैसा मिलता है।

भारत कैसे बनता गया गरीब

बता दें कि 1750 में वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में भारत का हिस्सा 25 प्रतिशत था जो कि 1900 तक घटकर सिर्फ 2 प्रतिशत रह गया।

 

ऑक्सफैम के मुताबिक इस कमी का कारण एशियाई वस्त्र उद्योग के खिलाफ ब्रिटेन की संरक्षणवादी नीतियां थीं जिसने भारत की औद्योगिक विकास क्षमता को कमजोर कर दिया।