निमिषा प्रिया का नाम आपने अब तक सुन लिया होगा। केरल से यमन गई नर्स, जिन पर यमन के एक नागरिक के क़त्ल का आरोप है। 16 जुलाई को उन्हें फांसी होनी है। यमन के राष्ट्रपति और वहां की सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी मंज़ूरी दे दी है। भारत सरकार इस फांसी को रोकने के लिए पूरा प्रयास कर रही है। आज यानी 14 जुलाई को यह मामला भारत के सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। सुनवाई हुई, सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से कहा इस मामले में ध्यान दें। भारत सरकार ने जवाब दिया कि हमसे जो बन पड़ रहा है कर रहे हैं लेकिन इस मामले में ज़्यादा कुछ किया जा नहीं सकता है।
जैसा हमने पहले बताया, यमन के राष्ट्रपति और वहां की अदालत ने इस फांसी पर मुहर लगा दी है। अब एक मात्र रास्ता ब्लड मनी रह जाता है। भारत सरकार ने आज कहा है कि ब्लड मनी एक प्राइवेट मैटर है, सरकार इसके बारे में कुछ नहीं कह सकती। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, निमिषा के परिवार और उसके शुभचिंतकों ने ब्लड मनी के लिए 1 मिलियन डॉलर यानी करीब 8 करोड़ 60 लाख रुपये जमा कर लिए हैं। इसका कुछ हिस्सा यमन भेजा भी जा चुका है। क्या है यह ब्लड मनी? जो निमिषा की फांसी को रोकने का एक मात्र रास्ता बताया जा रहा है। क्या वाकई इससे निमिषा की जान बच जाएगी? निमिषा की पूरी कहानी क्या है?
कौन हैं निमिषा प्रिया?
निमिषा केरल के पलक्कड़ ज़िले के कोलनगोड़ की रहने वाली हैं। 1 जनवरी 1989 की पैदाइश है निमिषा की। निमिषा बचपन से ही पढ़ाई में तेज़ थीं। स्कूल में दाखिला हुआ, वहां ख़ूब पढ़ाई की। परिवार आर्थिक रूप से उतना सक्षम नहीं था कि आगे की पढ़ाई करवा सके। इसलिए उनकी पढ़ाई का खर्चा एक लोकल चर्च ने उठा लिया। निमिषा ने एक डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया लेकिन बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। फिर नर्स की नौकरी तालाशने लगीं पर कोर्स पूरा नहीं था तो नौकरी मिलने में दिक्क़त आ रही थी।
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फिर आया साल 2008, निमिषा ने यमन जाने का फैसला किया, इस उम्मीद के साथ की वहां नौकरी आसानी से मिल जाएगी। यमन ने निमिषा की उम्मीद नहीं तोड़ी। उन्हें राजधानी सना के एक सरकारी अस्पताल में नौकरी मिल गई। निमिषा पैसे कमाने लगीं। वह कुछ पैसे अपने घर भी भेजती। सब कुछ सही चल रहा था। निमिषा वहां के माहौल में ढलने लगी थीं। फिर आया साल 2011, वह शादी करने के लिए केरल वापस आईं। यहां उन्होंने टॉमी थॉमस नाम के एक शख्स से शादी की। शादी के बाद दोनों पति-पत्नी यमन वापस चले गए। निमिषा ने वहां एक लोकल क्लीनिक में काम करना शुरू किया। उनके पति टॉमी को भी इलेक्ट्रिशियन के असिस्टेंट की नौकरी मिल गई लेकिन टॉमी की कमाई ज़्यादा नहीं थी।
दिसंबर 2012 में निमिषा और थॉमस की बेटी हुई, अब परिवार का खर्चा बढ़ गया। इसी बीच किसी परेशानी की वजह से 2014 में थॉमस ने अपनी नौकरी छोड़ दी और केरल वापस चले गए। बेटी की ज़िम्मेदारी निमिषा के कंधे पर अकेले आ गई। घर चलाने के लिए खर्च कम पड़ रहा था इसलिए निमिषा ने अपना खुद का एक क्लीनिक खोलने की सोची। इसके लिए उन्हें अपनी जमी जमाई नौकरी छोड़नी पड़ी। क्लीनिक खोलने के लिए निमिषा के सामने 2 बड़ी चुनौती थीं। पहली पैसा, निमिषा ने नौकरी छोड़ दी थी तो मंथली इनकम बंद हो चुकी थी। ऊपर से क्लीनिक खोलने के लिए लाखों रुपए चाहिए थे। कुछ पैसे निमिषा ने खुद जुटाए। कुछ घर से मांगे। पैसे वाले की समस्या तो हल हो गई लेकिन दूसरी समस्या ज़्यादा गंभीर थी और इसी वजह से निमिषा इस मुसीबत में फंसीं।
दूसरी दिक्कत यह कि यमन में क्लीनिक खोलने के लिए उन्हें स्थानीय पार्टनर की ज़रूरत थी। इसलिए उन्होंने वहां के नागरिक महदी की मदद मांगी। पूरा नाम तलाल अब्दो महदी। महदी कपड़े का बिज़नेस करते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक महदी के बच्चे की डिलीवरी के समय निमिषा ने बहुत साथ दिया था इसलिए महदी ने निमिषा की मदद के लिए हामी भर दी।
क्लीनिक ने कैसे बदली जिंदगी?
घर से मिले पैसे और महदी की पार्टनरशिप से क्लीनिक का काम शुरू हुआ। यहां मरीज़ों के लिए दर्जन भर से ज़्यादा बेड का इंतज़ाम किया गया। कुछ ही समय में क्लीनिक बनकर तैयार हो गया। क्लीनिक का नाम रखा गया ‘अल अमान मेडिकल क्लिनिक’, निमिषा की मेहनत रंग लाई, क्लीनिक चल पड़ा। निमिषा की जिंदगी पटरी पर आने लगी। अब वह अपने पति को भी वापस बुलाना चाहती थीं। इसके लिए थॉमस ने पेपर वर्क भी शुरू कर दिया था लेकिन ऐसा कुछ हो पाता उससे पहले यमन में एक जंग का आगाज़ हो गया।
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यमन के एक बड़े हिस्से में हूति विद्रोहियों का कब्ज़ा है। राजधानी सना पर भी उनका ही सिक्का चलता है। कुछ हिस्सा यमन की सरकार के कंट्रोल में भी है। इसे ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय मान्यता देता है। रशद अल-अलीमी मौजूदा राष्ट्रपति हैं। इन्होंने ने ही निमिषा की फांसी पर मुहर लगाई थी। ख़बर यह भी है कि भारत की सरकार हूतियों से भी बात कर रही है, इसका ज़िक्र हम आगे करेंगे। सितंबर 2014 तक यमन में हूती विद्रोहियों ने राजधानी सना पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद यमन में सिविल वॉर शुरू हो गई। उस समय मंसूर हादी राष्ट्रपति थे यमन के। यमन की सेना को सऊदी अरब का समर्थन मिला हुआ था। वह उसे गोला बारूद दे रही थी। वहीं ईरान, हूतियों को पैसों और हथियार से समर्थन दे रहा था।
इसी वजह से निमिषा के पति यमन नहीं आ पा रहे थे। उल्टा भारत सरकार ने अडवाइजरी जारी कर दी कि भारत के नागरिक यमन छोड़कर निकल जाएं लेकिन निमिषा के लिए यह आसान नहीं था। उन्होंने अपने क्लीनिक में बहुत इन्वेस्ट कर दिया था इसलिए उन्होंने वहीं रुकने का फैसला लिया। कुछ समय बाद सना के हालात सामान्य हुए। क्लीनिक भी ठीक चल रहा था लेकिन समय के साथ निमिषा के बिज़नस पार्टनर महदी का बर्ताव बदलने लगा। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, महदी ने निमिषा का पासपोर्ट रख लिया। निमिषा ने जब इसकी शिकायत पुलिस में की तो पुलिस ने उन्हें ही छह दिन तक जेल में बंद कर दिया।
महदी की मौत और निमिषा की गिरफ्तारी
निमिषा की जिंदगी में ये उतार-चढ़ाव चल ही रहे थे कि जुलाई 2017 में महदी का शव टुकड़ों में एक वाटर टैंक में मिला। निमिषा पर आरोप लगा कि उन्होंने इंजेक्शन देकर महदी की हत्या की। कई मीडिया रिपोर्ट में लिखा गया है कि निमिषा ने महदी को बेहोशी की दवाई दी थी, ताकि वह अपने पासपोर्ट और कागज़ात वापस लेकर भारत वापस आ सकें लेकिन दवाई की ओवरडोज़ की वजह से महदी की मौत हो गई।
इस कथित हत्या के करीब एक महीने बाद निमिषा को गिरफ्तार किया गया। वह यमन और सऊदी अरब के बॉर्डर से गिरफ्तार हुई थीं। गिरफ्तारी के बाद उन्हें सना लाया गया। महदी के परिवार ने निमिषा के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया। साल 2020 में यमन की एक निचली अदालत ने उन्हें मौत की सज़ा सुना दी। इसके बाद निमिषा ने माफ़ी के लिए उच्च न्यायालय में अर्ज़ी लगाई लेकिन नवंबर 2023 में यमन की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने उनकी माफी की अपील भी खारिज कर दी। जब ये सब चल रहा था तो केरल में उनके परिवार में खलबली मची थी। निमिषा की मां ने अपनी संपत्ति बेच दी ताकि यमन जाकर बेटी की रिहाई के लिए कुछ कर सकें। फिर उनकी रिहाई के लिए कैंपेन भी शुरू हुआ। जिसका नाम रखा गया ‘सेव निमिषा प्रिया’ इसमें न केवल भारत बल्कि भारत से बाहर रहने वाले नागरिकों ने भी हिस्सा लिया। डोनेशन ड्राइव चलाई गई ताकि उनका केस लड़ने के लिए पैसा इकठ्ठा किया जा सके। इन सबके इतर भारत सरकार से मदद तो मांगी ही जा रही थी।
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फिर आया दिसंबर 2024, अदालत ने निमिषा को मौत की सज़ा सुना दी। अब निमिषा की फाइल राष्ट्रपति के पास पहुंची। अगर उनकी मुहर लग जाती तो निमिषा का केस और मुश्किल हो जाता। कम से कम कानूनी तौर पर तो हो ही जाता और ऐसा हुआ भी। राष्ट्रपति रशद-अल-अलीमी ने निमिषा की फांसी को मंज़ूरी दे दी। 31 दिसंबर 2024 को भारत सरकार ने भी इस मामले में प्रतिक्रिया दी। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था, ‘हमें निमिषा प्रिया को यमन में मिली सज़ा की जानकारी है। भारत सरकार इस मामले में हर संभव मदद कर रही है।’
अब सरकार का क्या कहना है?
जैसा हमने शुरू में बताया। आज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई। सरकार ने कह दिया हमसे जो बना हमने किया। अब इस केस में ज़्यादा ऑप्शन नहीं है। डिप्लोमेसी सरकार ने कर ली। यहां तक ईरान ने भी इस मामले में हमारी मदद की पेशकश की थी। उम्मीद तो यही है कि उसने भी मदद की होगी। आप जानते ही हैं ईरान के हूति विद्रोहियों ने अच्छे संबंध हैं लेकिन डेडलाइन अब इतनी नज़दीक आ चुकी है कि कौन मदद कर पाएगा कौन नहीं यह कहना मुश्किल ही लगता है।
निमिषा को कौन बचा सकता है?
जवाब है ब्लड मनी। यमन में शरिया कानून है। वहां पीड़ित परिवार के साथ समझौता कर सज़ा माफ कराई जा सकती है। इसके लिए निमिषा के परिवार को ब्लड मनी या ‘दियाह’ देकर बचाया जा सकता है। ब्लड मनी उस पैसे को कहा जाता है जो माफी के बदले पीड़ित परिवार को देना होता है। हालांकि, यह तब लागू होता है जब कोई हत्या जानबूझकर न की गई हो लेकिन इस केस में तो हमदी के टुकड़े-टुकड़े पानी की टंकी में मिले थे, जिससे यह बात तो क्लियर ही हो जाती है कि धोखे से यह कत्ल नहीं हुआ है।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि 2022 में हमदी का परिवार ब्लड मनी लेने के लिए राज़ी हो गया है। इसके लिए 1 मिलियन डॉलर की रकम जमा भी कर ली गई है लेकिन PTI ने रिपोर्ट किया है कि महदी का परिवार अब ब्लड मनी लेने के लिए राज़ी नहीं है। अगर महदी का परिवार ब्लड मनी लेने से इनकार करता है तो निमिषा की फांसी की आशंका और बढ़ जाएगी। निमिषा का केस पहला नहीं है जब किसी भारतीय को विदेशी ज़मीन में मौत की सज़ा सुनाई गई हो। 2020 से 24 के बीच 47 भारतीयों को मौत की सज़ा मिल चुकी है जो देश के बाहर रह रहे थे।
कुछ के नाम और केस जान लीजिए। एक केस तो शहज़ादी का है। वह बांदा, उत्तर प्रदेश की रहने वाली थीं। दिसंबर, 2021 में वह अबू धाबी गईं थी। अगस्त 2022 से वहां एक घर में काम करने लगीं। घर में एक छोटा 4 महीने का बच्चा भी था। शहज़ादी पर उस चार महीने के बच्चे की हत्या का आरोप था। 2023 की शुरुआत में उनकी गिरफ्तारी हुई और इसी साल फरवरी में उन्हें फांसी दी गई थी। शहज़ादी के घर वाले कहते हैं कि उस बच्चे की मौत ग़लत टीका लगाने से हुई थी।
दूसरा केस मोहम्मद रिनाश का है। पेशे से ट्रैवेल एजेंट थे। भारत के केरल के रहने वाले थे। इनपर अपने ही कलीग की हत्या के आरोप थे। UAE में इनका अपने एक कलीग से झगड़ा हुआ। रिनाश ने लड़ाई में उनकी हत्या कर दी। ऐसा आरोप लगा। इसी आरोप में फरवरी 2025 में इन्हें फांसी हो गई।
इस तरह के और केस चर्चा में थे। पिछले कुछ सालों में मौत की सज़ा का चलन बढ़ रहा है। इसपर मानवाधिकार संस्थाएं चिंता व्यक्त कर रही हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक़, 2024 में 1,518 लोगों को फांसी दी गई, जो 2023 की तुलना में 32% अधिक है।
इनमें सबसे ज़्यादा सज़ा ईरान में दी गई थी, करीब 972। उसके बाद सऊदी अरब का नंबर था, जहां 345 लोगों को ऐसी सज़ा दी गई।