मार्की कार्नी की अगुवाई में कनाडा की लिबरल पार्टी ने संघीय चुनाव में शानदार जीत हासिल की। इस जीत ने लिबरल पार्टी के चौथी बार सत्ता में आने का रास्ता खोल दिया है। पहले सर्वे में लिबरल पार्टी के हार की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कड़े टैरिफ की धमकी और कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की बात बार-बार कहे जाने की वजह से लोगों ने लिबरल पार्टी को बढ़ चढ़कर वोट दिया।
पहले बैंक ऑफ कनाडा और बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर रहे कार्नी ने इस मौके का फायदा उठाया। उन्होंने खुद को कनाडा की स्वतंत्रता और आर्थिक स्थिरता के रक्षक के रूप में पेश किया। उनकी विशेषज्ञता ने लोगों का भरोसा जीता, खासकर जब अमेरिका के साथ तनाव बढ़ रहा था।
लिबरल पार्टी की छवि कुछ महीने पहले तक कंजर्वेटिव पार्टी की तुलना में काफी खराब थी, लेकिन जस्टिन ट्रूडो के जनवरी 2025 में इस्तीफे के बाद जोरदार वापसी की। कार्नी के नेतृत्व और ट्रम्प की विवादित बातों ने प्रोग्रेसिव वोटरों को एकजुट किया, जिससे लिबरल्स को ओंटारियो और क्यूबेक जैसे बड़े प्रांतों में फायदा हुआ।
पार्टी को 172 सीटों की बहुमत के लिए जरूरी संख्या नहीं मिली, लेकिन 168 सीटों के साथ उन्होंने अल्पमत सरकार बनाने का रास्ता पक्का किया। इसके लिए उन्हें एनडीपी या ब्लॉक क्यूबेक्वा जैसी छोटी पार्टियों का समर्थन चाहिए होगा। कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे की पार्टी को अच्छे वोट मिले, लेकिन वे खुद अपनी सीट हार गए।
क्या ट्रंप ने दिलाई जीत
कार्नी अपने जोशीले भाषणों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आलोचना करते रहे हैं। वे कहते रहे हैं कि कनाडा और अमेरिका के बीच पुराना रिश्ता अब खत्म हो चुका है। उन्होंने वादा किया कि कनाडा अब नई दिशा में बढ़ेगा और अमेरिका पर निर्भरता कम करेगा।
यह चुनाव तब हुआ जब ट्रम्प ने कनाडा पर दबाव बनाया। उन्होंने कनाडा को अमेरिका का “51वां राज्य” बनाने की धमकी दी और कार्नी को “गवर्नर” कहकर अपमानित किया। ट्रम्प ने कनाडा को “खरीदने” की बात भी की, जैसे वे ग्रीनलैंड के लिए कहते हैं। पहले कनाडा ने इसे मजाक समझा, लेकिन जब ट्रम्प ने कनाडाई सामान पर भारी कर लगाए, तो लोग इससे गुस्सा हो गए। इन करों ने कनाडा की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया, क्योंकि बहुत सारे कनाडाई व्यापार के लिए अमेरिका पर निर्भर हैं। जवाब में, कनाडा ने मजाक में कहा कि वे अमेरिका के कुछ राज्य जैसे कैलिफोर्निया, ओरेगन, वाशिंगटन और मिनेसोटा 'खरीद' लेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति के इन बयानों ने कनाडा के लोगों का काफी नाराज कर दिया था। माना जा रहा है कि वे अपने देश को मजबूत करना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने कार्नी और उनकी लिबरल पार्टी को चुना। कार्नी ने जनवरी 2025 में जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद नेतृत्व संभाला। उन्होंने लोगों में देशभक्ति का जज्बा भरने की कोशिश की, जिससे ओंटारियो और क्यूबेक जैसे बड़े प्रांतों में लिबरल पार्टी को फायदा हुआ। दूसरी तरफ, कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोलीवरे खुद अपनी सीट हार गए, और उनकी पार्टी भी पीछे रह गई।
अमेरिका के साथ रिश्ता खत्म
अपनी जीत के भाषण में कार्नी ने कहा कि यह कनाडा के लिए एक बड़ा मोड़ है। ‘पहले भी ऐसे मौके आए हैं, जैसे दूसरा विश्व युद्ध और शीत युद्ध के बाद का समय। हर बार कनाडा ने मजबूती दिखाई। हमने अपनी आजादी और लोकतंत्र की राह चुनी। आज फिर ऐसा समय है। अमेरिका के साथ हमारा पुराना रिश्ता, जो हमें समृद्धि देता था, अब खत्म हो गया है।’ उनके समर्थकों ने खूब तालियां बजाईं। कार्नी ने कहा कि ट्रम्प की धमकियों को कनाडा बर्दाश्त नहीं करेगा।
कार्नी ने कनाडाई लोगों से कहा, “यह दुख की बात है कि अमेरिका ने हमें धोखा दिया। लेकिन अब हम इस सदमे से बाहर आ चुके हैं। हमें सबक लेना है और आगे बढ़ना है। हमें एक-दूसरे का ध्यान रखना है।” उन्होंने वादा किया कि वे ट्रम्प को साफ संदेश देंगे कि कनाडा अब अमेरिका पर निर्भर नहीं रहेगा। “जब मैं ट्रम्प से मिलूंगा, तो दो अलग-अलग देशों के बीच बात होगी। हमारे पास अमेरिका के अलावा भी कई रास्ते हैं, जिनसे हम कनाडा को समृद्ध बनाएंगे।”
लेना होगा समर्थन
लिबरल पार्टी की जीत बहुमत से थोड़ा कम है, इसलिए कार्नी को एनडीपी या ब्लॉक क्यूबेक्वा जैसी छोटी पार्टियों की मदद लेनी पड़ सकती है। इस चुनाव में बहुत सारे लोगों ने वोट डाला, क्योंकि वे ट्रम्प के दबाव और धमकियों से नाराज थे। कार्नी की अगुवाई में कनाडा अब नई राह पर चलना चाहता है। वे नई व्यापार और सुरक्षा साझेदारियां बनाएंगे।
कार्नी ने कहा, 'हम कनाडाई हैं। हम दया और मजबूती के साथ आगे बढ़ेंगे।' यह जीत दिखाती है कि कनाडा अपने भविष्य को खुद तय करना चाहता है, भले ही अमेरिका कितना भी दबाव बनाए। अब कार्नी के सामने चुनौती है कि वे कनाडा की अर्थव्यवस्था को मजबूत करें और ट्रम्प की किसी भी नई चाल को रोकें। लेकिन इस जीत ने कनाडा के हौसले को बुलंद कर दिया है। वे अपने देश को और मजबूत बनाना चाहते हैं।