कनाडा ने अपने एक्सप्रेस एंट्री इमिग्रेशन सिस्टम में बदलाव कर दिया है। इससे वहां परमानेंट रेसिडेंस की चाह रखने वाले कामगारों पर बड़ा असर होगा। कनाडा की ट्रूडो सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारतीय इंजीनियर्स, टेक्नीशियंस और आईटी प्रोफेशनल्स पर पड़ सकता है। कनाडा के इमिग्रेशन मिनिस्टर मार्क मिलर ने इन बदलावों का ऐलान किया।

 

नए नियमों के अनुसार, कनाडा की परमानेंट रेसिडेंसी के लिए आवेदन करने वाले कामगारों को अब एक्स्ट्रा CRS पॉइंट नहीं मिलेंगे। ये पॉइंट किसी कर्मचारी को तब मिलते थे, जब उन्हें LMIA यानी लेबर मार्केट इंपैक्ट असेस्टमेंट पर बेस्ड जॉब ऑर मिलता था। LMIA एक तरह का दस्तावेज होता है जिससे कनाडाई कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रखने की अनुमति मिलती है।

क्या बदल जाएगा इससे?

अभी तक LMIA बेस्ड जॉब ऑफर वाले उम्मीदवारों को कॉम्प्रिहैंसिव रैंकिंग सिस्टम (CRS) में एक्स्ट्रा पॉइंट्स मिलते थे। इन पॉइंट्स की मदद से विदेशी कामगार कनाडा में परमानेंट रेसिडेंसी के लिए आवेदन कर सकते थे। अब नियमों में बदलाव होने से ऐसे जॉब ऑफर वालों को कनाडा में परमानेंट रेसिडेंसी में मुश्किलें हो सकती हैं।

और क्या-क्या बदला गया?

कनाडा की ट्रूडो सरकार ने हाल ही में इमिग्रेशन पॉलिसी में बड़े बदलावों की घोषणा की थी। ट्रूडो सरकार ने अगले तीन साल में कनाडा में आने वाले स्थायी और अस्थायी, दोनों निवासियों की संख्या में कटौती करने का ऐलान किया था। 

 

अब ट्रूडो सरकार ने एक्सप्रेस एंट्री सिस्टम के नियमों में भी बदलाव कर दिया है। इसमें दो बड़े बदलाव हुए हैं। पहला तो ये कि अब अस्थायी निवासी कुछ वक्त कनाडा में रहने के बाद दोबारा आते हैं तो उन्हें एंट्री नहीं मिलेगी। दूसरा बदलाव ये है कि अब इमिग्रेशन अधिकारियों के पास इमिग्रेशन दस्तावेजों को रद्द करने या उसमें बदलाव करने का अधिकार भी होगा।

कनाडा में कितने भारतीय?

कनाडा में परमानेंट रेसिडेंसी के लिए आवेदन करने वालों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है। कनाडाई सरकार के मुताबिक, 2022 में कनाडा में परमानेंट रेसिडेंसी के लिए आवेदन करने वाले विदेशी कामगारों में 27% भारतीय थे। इतना ही नहीं, कनाडा में काम करने वाले विदेशियों में 22% भारतीय ही होते हैं।