विवाद कहीं भी हो, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प खुद को 'मध्यस्थ' बनने की पेशकश सबसे पहले करते हैं। उन्होंने 22 जनवरी को पद संभालते ही सबसे पहले रूस और यूक्रेन का विवाद सुलझाने का वादा किया था। महीने बीत गए, अब तक विवाद खत्म नहीं हुआ। इजरायल और हमास के विवाद को भी खत्म करने की पेशकश की, विवाद अब तक खत्म नहीं हुआ है। वह भारत और पाकिस्तान के बीच भी चले आ रहे विवाद को सुलझाने का दावा कर रहे हैं, दोनों देशों ने 10 मई से संघर्ष विराम समझौते के के लिए हामी तो भर दी है लेकिन स्थितियां अब भी तनावपूर्ण हैं।
डोनल्ड ट्रम्प की कराई गई मध्यस्थता हमेशा सवालों के घेरे में रही है, वजह यह है कि उनके बयानों की तरह उनके कूटनीतिक चालों पर भी लोग यकीन नहीं कर पाते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प को छोड़ दीजिए, जंग कहीं भी हो, दुनिया का सबसे बड़ा 'सरपंच' खुद को अमेरिका हमेशा बताता रहा है।
डोनाल्ड ट्रम्प, अपने पूर्ववर्ती शासकों की परंपरा निभा रहे हैं। उनसे पहले जो बाइडेन, बराक ओबामा, जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बिल क्विंटन और जॉर्ज HW बुश भी ऐसा कर चुके हैं। अमेरिका खुद को दुनिया का संरक्षक समझता है। अमेरिका दुनिया के हर विवाद में खुद को सबसे बड़ा मध्यस्थ बताता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका के अलावा वैश्विक मध्यस्थ बनने की पेशकश भी कोई और नहीं करता है।
सबसे बड़े 'सुलहकार' के सफल-असफल होने की असली कहानी

ट्रम्प के कार्यकाल में कब-कब 'मध्यस्थता' हुई?
- रूस-यूक्रेन युद्ध: डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता, मध्यस्थता कम धमकी की तरह ज्यादा नजर आती है। 28 फरवरी को ओवल ऑफिस में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस बैठे थे। डोनाल्ड ट्रम्प भी मौजूद थे। यूक्रेन के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी थे। अमेरिका ने वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ बेहद खराब बर्ताव किया। ऐसी अभद्रता शायद ही कभी किसी राष्ट्राध्यक्ष के साथ किसी दूसरे राष्ट्रध्यक्ष ने की हो। वोलोदिमीर जेंलेंस्की को ओवल ऑफिस से बहार निकलना पड़ा।
ओवेल ऑफिस में व्लादिमीर जेंलेंस्की और डोनाल्ड ट्रम्प। (Photo Credit: White House) - अब एक बार फिर अमेरिका ने यूक्रेन और रूस को अंतिम चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर दोनों देश इच्छा नहीं जताते हैं तो अमेरिका इस प्रक्रिया से हट जाएगा। डोनाल्ड ट्रम्प की मौजूदगी में इंस्ताबुंल में डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका और यूक्रेन के प्रतिनिधियों से मुलाकात करने वाले हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने से इनकार कर रहे हैं।
नतीजा: एक दिन में मध्यस्थता का दावा ठोकने वाले डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में आए 4 महीने से ज्यादा हो गए, यूक्रेन और रूस में युद्ध नहीं थमा है। - इजरायल-हमास युद्ध: इजरायल और हमास के बीच जंग 7 अक्तूबर 2023 से ही जारी है। इजरायल का कहना है कि वह सीजफायर पूरी तरह से तब लागू करेगा, जब इजरायली बंधकों को हमास पूरी तरह से रिहा कर देगा। हमास बंधक रिहा कर रहा है, लेकिन तय समय से यह प्रक्रिया पूरी नहीं की जा रही है। यह सब अमेरिकी और डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता में ही हो रहा है लेकिन 'अलजजीरा' की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बुधवार को ही इजरायली हमले में 60 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।
नतीजा: जंग अभी जारी है।
बेंजामिन नेतन्याहू और डोनाल्ड ट्रम्प। (Photo Credit: White House) - भारत-पाकिस्तान विवाद: भारत का अब तक रुख रहा है कि अपने किसी विवाद में तीसरे देश की मध्यस्थता नहीं मानता है। पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता भी कहता है कि भारत और पाकिस्तान की जंग में किसी तीसरे देश को हस्तक्षेप की इजाजत नहीं दी जाएगी। डोनाल्ड ट्रम्प बार-बार दावा कर रहे हैं कि उन्होंने व्यापार की धमकी देकर जंग रुकवा दी। भारत का कहना है कि व्यापार के बारे में बात ही नहीं हुई है।
नतीजा: 10 मई के बाद अस्थाई शांति है लेकिन पाकिस्तान की तरफ से लगातार उकसावे की कोशिश की जा रही है। डोनाल्ड ट्रम्प की बात अगर सच मानें तो उनका कहना है कि व्यापार रोकने की धमकियों से ही जंग रुकी है।
नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प। (Photo Credit: PIB)
पहले कार्यकाल में भी असफल रही हैं ट्रम्प की 'मध्यस्थताएं'
- 2017-2019: उत्तर कोरिया-अमेरिका शिखर सम्मेलन
मकसद: परमाणु निरस्त्रीकरण
नतीजा: साल 2018 में सिंगापुर और 2019 में हानोई में उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच एक शिखर सम्मेलन परमाणु निरस्त्रीकरण पर हुआ। डोनाल्ड ट्रम्प और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के बीच परमाणु निरस्त्रीकरण पर बातचीत शुरू हुई। दो मुलाकातों में कोई बात नहीं बन पाई, उत्तर कोरिया से प्रतिबंध नहीं हटा, उत्तर कोरिया ने परमाणु मोह नहीं त्यागा।
किम जोंग और डोनाल्ड ट्रम्प। (Photo Credit: White House) - 2017-2020: इजरायल-फिलिस्तीन शांति योजना
मकसद: दोनों देशों के बीच तनाव कम करना
नतीजा: साल 2017 से लेकर 2020 तक डोनाल्ड ट्रम्प ने कोशिश करने का दावा किया। उन्होंने डील ऑफ द सेंचुरी का प्रस्ताव दिया। इस योजना में इजरायल को यरूशलेम पर पूर्ण नियंत्रण और वेस्ट बैंक के बड़े हिस्सों पर कब्जा करने की अनुमति दी गई, जबकि फिलिस्तीन को सीमित स्वायत्तता का प्रस्ताव दिया गया। फिलिस्तीनी नेतृत्व ने योजना को खारिज कर दिया, इसे इजरायल के पक्ष में बताया। कोई बातचीत आगे नहीं बढ़ी। इजरायल-हमास के जंग की भूमिका तैयार हुई। - 2019: भारत-पाकिस्तान और पुलवामा हमला
मकसद: सीमा पर तनाव कम करना
नतीजा: जुलाई 2019 में बातचीत शुरू हुई। डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि पीएम मोदी ने उन्हें कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने के लिए कहा था। भारत ने तुरंत इस दावे का खंडन किया था। भारत का हमेशा से कहना यही है कि कश्मीर कोई मुद्दा नहीं है, यह भारत का आंतरिक हिस्सा है, इस पर किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
इमरान खान और डोनाल्ड ट्रम्प। (Photo Credit: Imran Khan/Facebook) - 2019-2020: अफगानिस्तान शांति वार्ता
मकसद: तालिबान के साथ बातचीत
नतीजा: डोनाल्ड ट्रम्प का कार्यकाल खत्म होने वाला था। ट्रम्प प्रशासन ने तालिबान के साथ बातचीत शुरू की। मकसद था कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज को वापस बुला लेना। 2020 में दोहा में एक डील हुई। तालिबान ने अफगानिस्तान सरकार से बातचीत नहीं की, हिंसा भड़की। अमेरिकी फौज लौटी तो तालिबान ने 2021 में कब्जा कर लिया। अफगानिस्तान की अशांति और अंधकारमय भविष्य के लिए जिम्मेदार डोनाल्ड ट्रम्प को ठहराया गया।
अशरफ गनी और डोनाल्ड ट्रम्प। (Photo Credit: White House)
अमेरिका ही सरपंच क्यों?
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अमेरिकी व्यापार 190 से ज्यादा देशों में फैला हुआ है। भारत, पाकिस्तान, चीन, कनाडा, जापान, ब्रिटेन, मैक्सिको, नाटो और यूरोपीय देशों में अमेरिका कारोबार करता है। यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट और फिस्कल ईयर 2024 यूएस आर्म्स ट्रांसफर एंड डिफेंस ट्रेड की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है, 2024 में 318.7 बिलियन डॉलर के हथियार बेच चुका है। सऊदी अरब, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत, दक्षिण कोरिया और यूएई जैसे देश खरीदार हैं। लगभग 100 देश इसके हथियारों पर निर्भर हैं।
मध्य-पूर्व और नाटो के देशों में भी अमेरिका का दबदबा है। यही वजह है कि यूक्रेन इतनी बुरी हालत में भी रूस के साथ जंग लड़ रहा है। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है, अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वैश्विक अर्थव्यवस्था का 24 फीसदी हिस्सा है। IMF के अनुमान बताते हैं कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था 27 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है।

अमेरिका के पास दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार हैं। सैन्य ताकत, तकनीक, व्यापार और डॉलर के दबदबे की वजह से अमेरिका खुद को वैश्विक लीडर के तौर पर पेश करता है। यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस और डिफेंस मैनपावर डेटा सेंटर के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिकी सेना दुनिया के 70 से ज्यादा देशों में तैनात है। दुनिया का व्यापारिक हित अमेरिका से जुड़ा हुआ है, यही वजह है कि 'गद्दी' पर चाहे 'डेमोक्रेट्स' बैठें या 'रिपल्बिकन' अमेरिका की नजरों में दुनिया के लिए 'नियम' सेम ही रहता है, सरपंच अमेरिका ही रहता है।