दुनिया अजूबों पर भरोसा करती है। दुनिया में 7 अजूबे हैं। उन इमारतों को, कलाकृतियों को अजूबा माना गया, जिन्हें बनाया तो इंसानों ने लेकिन फिर वैसा कभी नहीं बने। ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस ने इन अजूबों की एक सूची तैयार की थी। इन्हीं में से एक हैं हैंगिंग गार्डन ऑफ बेबीलोनिया। हिंदी में कहें तो बेबीलोन के झूलते बगीचे। इसे अजूबा तो मान लिया गया लेकिन इनका अस्तित्व भी था या नहीं, इसे लेकर बहस चलती है।

 

बेबीलोन के झूलते बगीचे कहा हैं, इसे लेकर सिर्फ दावे किए गए हैं। इसका सटीक प्रमाण कहीं नहीं मिलते। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बेबीलोन के शाही महल के पास ही ये रहे होंगे। 21वीं सदी में आने के बाद भी अभी तक यह स्थापित नहीं हो सका है कि ये बगीचे थे या नहीं। 

 

क्या है पूरी कहानी?

झूलते बगीचों के बारे में कई तरह के किस्से सुनाए जाते हैं। एक किस्सा ये भी है कि ये बाग, हवा में झूलते थे और घने बाग थे, जो बेहद दूर से नजर आते थे। ये जमीन से भी कुछ ऊपर थे। कुछ लोगों का कहना है कि ये बाग, महल पर ही उगाए गए होंगे जो उस जमाने में रहस्यमयी लगते होंगे। 

 

ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट लियोनार्ड वुली की मानें तो इन बगीचों को बेबेलोनिया के राजमहल महल में लगाया गया था। इन्हें दीवारों और छतों पर उगाया गया गया था। अब ये जगह दक्षिणी इराक में है। ये असल में लटक नहीं रहे थे ये हवाओं में लहराते थे।

 

लियोनार्ड वुली के मुताबिक ये महल जिगगुराट विधि से बनाए गए थे, जो प्राचीन मोसोपोटामियाई संरचनाओं से प्रेरित थे, जिनमें क्रमिक रूप से घटती मंजिलों और स्तरों के हिसाब से भवन बनाए जाते थे। इन्हीं भवनों पर ही पेड़ लगे थे, जिसे फरात नदी के पानी से सींचा जाता है। 

किसने बनवाए ये बगीचे?

ऐसी मान्यता है कि ग्रीक राजा अदद निरारी की मां सुमु-रामात ने इस महल को बनवाया था। इसी राजा का कार्यकाल 810 से 783 तक रहा है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इसे राजा नबूकदनेस्सर II ने बनवाया था। नबूकदनेस्सर II के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने बेबीलोन साम्राज्य को एकजुट किया था और 605 से 561 ईसा पूर्व शासन किया था। इन्होंने इस बगीचे का निर्माण अपनी पत्नी एमिटीस के लिए बनवाया था। रानी एमिटीस, पहाड़ों के बीच बसे अपने घर और वहां पसरी हरियाली को याद करती थीं तो राजा ने पत्नी को खुश करने के लिए ऐसा ही एक हरा-भरा महल बनवा दिया। 

 

बेबीलोन के झूलते बगीचों के बारे में अलग-अलग मिथकीय कहानियों में किस्से सुनाए गए हैं। इसके बारे में कई लेखकों ने भी लिखा है। इन्हें किसने बनवाया था, इसके बारे में कुछ भी प्रमाणिक नहीं है। कहते हैं कि महल की दीवारें ऐसी बनाई गई थीं कि सिंचाई के बाद पानी दीवारों पर रिसता नहीं था। कुछ धातुओं के इस्तेमाल से इसे रोका गया था। 

जर्मन आर्कियोलॉजिस्ट रॉबर्ट कोलदवे के मुताबिक हो सकता है कि ऐसी संरचना कभी रही हो, जहां आज का राजमहल नजर आता है। 

 

20वीं और 21वीं सदी में हुए शोध इशारा करते हैं कि अगर ऐसा कुछ रहा होगा तो सिर्फ यही कि ये बगीचे, महल पर ही उगाए गए होंगे। इनमें लगे पेड़ों की ऊंचाई बहुत ज्यादा होगी जो दूर से नजर आते होंगे। ये सघन रहे होंगे जिसमें दीवारें छिप गई होंगी। यह दुनिया का इकलौता ऐसा अजूब है, जो है तो लेकिन अस्तित्व में नहीं है।