सीरिया में गृह युद्ध जैसी स्थिति है। विद्रोही गुटों ने अलेप्पो, हमा, दारा, होम्स, सुवेदा और कुनेत्रा जैसे शहरों पर कब्जा कर लिया है। अब वे दमिश्क में भी दाखिल हो गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा कहा जा रहा है कि सेना ने भी उनसे समझौता कर लिया है।

 

दमिश्क में दाखिल होने के बाद उन्होंने दमिश्क की कुख्यात जेल से सभी बागियों और कैदियों को रिहा कर दिया। सुन्नी बहुल वाले सीरिया में राष्ट्रपति बशर-अल-असद शिया फिरके के अल्वाइट समुदाय से हैं जो कि पिछले 24 सालों से वहां की सत्ता पर काबिज हैं। हालांकि, अभी खबर ये आ रही है कि वह कहीं पर लापता हो गए हैं।

 

ऐसे में यह देखने वाली बात है कि एक बगावत जिसकी शुरुआत साल 2011 में अरब स्प्रिंग के वक्त हुई थी उसने कैसे 24 साल पुराने राजसत्ता की जड़ें हिला कर रख दीं।

पांच दशकों से परिवार का राज

सीरिया जैसे सुन्नी बहुल देश पर अल्वाइट समुदाय के बशर-अल-अशद का परिवार 50 सालों से राज कर रहा है। इसकी शुरुआत 1970 में उनके पिता हाफिज़ अल-असद द्वारा 1970 में की गई थी।

 

13 नवंबर 1970 को हुए एक तख्ता पलट के दौरान हाफिज अल-असद के हाथों में सत्ता आई। वह राजनीतिक अस्थिरता का दौर था। उसी वक्त सीरियाई एयर फोर्स की कमान संभाल रहे हाफिज सत्ता पर काबिज हो गए और सेना व बाथ पार्टी में अपने विश्वासपात्रों का एक नेटवर्क स्थापित कर लिया।

 

उन्होंने अपनी सत्ता को कायम रखने के लिए बांटो और राज करो की नीति अपनाई। दूसरा इन्होंने सीरिया के संस्थाओं को भी कमज़ोर रखा ताकि सत्ता पर मजबूती से काबिज रहा जा सके।

 

तीसरा उन्होंने सीरिया में अल्पसंख्यक अल्वाइट समुदाय के लोगों को बड़े पदों पर बैठाना शुरू किया। साथ ही उसने अलग-अलग समूहों और आदिवासियों के बीच की दरार को बढ़ाने का भी काम किया ताकि सत्ता के खिलाफ एकजुटता के साथ किसी विद्रोह के खतरे से निपटा जा सके।

 

1946 में सीरिया के आजाद होने के बाद अल्वाइट समुदाय के लोग राजनीति और सेना दोनों में ताकतवर बनकर उभरे। अल्वाइट समुदाय के लोग सीरिया में 12-15 प्रतिशत होंगे और यही लोग असद के मुख्य समर्थक हैं। अल्वाइट मूल रूप से शिया भी नहीं हैं बल्कि शिया इस्लाम से संबंध रखने वाले एक मुख्य चेहरे अली इब्न अबी तालिब को मानते हैं।

कैसे सत्ता परिवार को सौंपी जाती रही

दरअसल, हाफिज़ ने सत्ता अपने बड़े बेटे बसल को सौंपी थी और उसी को लीडरशिप के लिए तैयार किया गया था लेकिन एक कार दुर्घटना में 

बसल की मौत होने के बाद दूसरे बेटे बशर अल-असद को सत्ता की बागडोर संभालनी पड़ी।

 

हालांकि, बशर को लेकर लोग काफी आशावादी थे और लोगों को लग रहा था कि वह कुछ न कुछ रिफॉर्म ज़रूर करेंगे, लेकिन जल्दी ही यह आशा भी निराशा में बदल गई। बशर ने न सिर्फ अपने पिता के बनाए हुए सिस्टम को अपनाया था बल्कि उनके विश्वासपात्र भी इनके नज़दीकी थे, जिन्होंने 1970 से ही सभी संस्थाओं पर कब्जा किया हुआ था।

बशर ने सत्ता पर कैसे बनाया नियंत्रण

अपने शुरूआती सालों में बशर धीरे-धीरे पिता के करीबी लोगों को सत्ता से बाहर करते हुए अपने विश्वासपात्रों को बड़े पदों पर बैठाना शुरू किया जिनमें से सीरिया के शहरी उच्च वर्गीय लोग शामिल थे। पर बशर के करीबी लोग जमीन से जुड़े हुए लोग नहीं थे जिससे लोगों की ज़मीनी समस्याओं और ज़मीनी हकीकत के बारे में उन्हें पता भी नहीं था।

 

बशर के राज में न सिर्फ राज्य की संस्थाएं कमजोर हुईं बल्कि उनके परिवार के लोगों तक ही सत्ता सीमित होने लगी। उनके भाई मेहर, बहन बुशरा और उनके बहन के पति आसिफ शॉकत सुरक्षा और सेना में बड़े बड़े पदों पर थे। अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह से इन्हीं के हाथों में थी। देश की अर्थव्यवस्था का लगभग 60 प्रतिशत लगभग इन्हीं लोगों के हाथों में था।

विद्रोह को हाफिज़ ने सख्ती से दबाया

बशर के पिता हाफिज ने किसी भी विद्रोह को काफी सख्ती से दबा दिया। साल 1982 में मुस्लिम ब्रदरहुड द्वारा हामा शहर में शुरू किए गए हथियारबंद विद्रोह का सीरियाई सेना ने निर्ममता के साथ दमन कर दिया। इसमें बताया जाता है कि 10 हजार से 40 हजार लोगों की मौत हुई जो कि आधुनिक मध्य-पूर्व के इतिहास का सबसे दमनकारी कार्रवाई थी।

बशर के खिलाफ शुरु हुआ विद्रोह

बशर ने भी शासन करने का यही तारीका अपनाया, जिसकी वजह से 2011 में अरब स्प्रिंग का हिस्सा सीरिया भी बन गया। दारा शहर में शुरू हुआ शांतिपूर्ण विरोध धीरे-धीरे सिविल वॉर में परिवर्तित हो गया। बशर सरकार ने सख्ती के साथ दबाने की कोशिश की। इस टकराव में हज़ारों ज़िदगियां अपनी जान गंवा चुकी हैं।

असमानता भरा था शासन

बशर शासन में आर्थिक असमानता काफी थी। भले ही साल 2000 से 2010 के बीच प्रति व्यक्ति आय दूनी हो गई हो लेकिन इसके फायदे ऊपरी वर्ग से संबंधित मुट्ठी भर लोगों को ही मिले। हर तरफ फैली गरीबी, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार ने जनता में असंतोष भर दिया। साल 2000 में आए सूखे के कारण सीरिया के काफी लोगों को रोजगार की तलाश में शहर की ओर जाना पड़ा।

शैडो स्टेट मॉडल अपनाया

अशद की सत्ता का मूल आधार 'शैडो स्टेट मॉडल' था, जिसमें वास्तविक ताकत संस्थाओं के पास नहीं होती है। इस सिस्टम में तख्ता पलट की संभावना कम नहीं होती, किसी सिक्युरिटी एजेंसी को पूरा अधिकार नहीं दिए और अपने विश्वासपात्रों के जरिए शासन को चलाने का काम किया।

 

चुनाव और संवैधानिक सुधारों के नाटक के बावजूद भी वास्तविक सत्ता बशर अल-असद के हाथों में ही बनी रही।

क्या हुआ 2011 के बाद

13 साल पहले शुरू हुआ यह विद्रोह नागरिक सुधारों के उद्देश्य से शुरू किया गया था। इसके बाद इसने सिविल वॉर का रूप ले लिया। इस सिविल वॉर के चलते हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग बेघर हो गए। साल 2024 में फिर से शुरू हुई हिंसा ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा।

 

हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) की अगुवाई वाले विद्रोही गुट ने धीरे धीरे एक के बाद एक शहर पर कब्ज़ा कर लिया। अल-कायदा से जुड़ा आतंकी संगठन अबू मोहम्मद अल-जोलानी की अगुवाई में अपनी कट्टरपंथी छवि को खत्म करने की कोशिश की लेकिन संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने इसे आतंकवादी संगठन के रूप में घोषित रखा।

 

आज इसी संगठन ने सीरिया के कई शहरों पर कब्ज़ा कर लिया है और हालात यह हैं कि 24 सालों से सत्ता पर काबिज़ बशर अल-असद को भागकर छिपना पड़ा है।