पत्रकारिता जोखिम भरा पेशा है। खासकर उन देशों में जहां सूचनाओं को नियंत्रित करने का चलन है। तानाशाही शासन में पत्रकार का होना ठीक वैसी ही दुर्लभ घटना है, जैसे 'बबूल के पेड़ में बेल और रेत में तेल' का होना। नतीजा यह है कि साल 1993 से अब तक दुनियाभर में 1841 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। यूनेस्को का डेटा बताता है कि साल 2012 में सबसे अधिक 124 पत्रकारों की हत्या हुई। 2025 में अभी तक 91 पत्रकारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। इन्हीं में से एक पत्रकार इम्तियाज मीर थे।
21 सितंबर 2025 को जब इम्तियाज मीर अपने दफ्तर से घर लौट रहे थे तो कराची के मालिर इलाके में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। मगर आप कहेंगे कि एक महीने पुरानी खबर का जिक्र क्यों? इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने 28 अक्टूबर को चार लोगों को गिरफ्तार किया। उनकी पहचान अजलाल जैदी, शहाब असगर, अहसान अब्बास और फराज अहमद के तौर पर हुई है। पुलिस का कहना है कि सभी 'लश्कर सरुल्लाह' नाम के संगठन से जुड़े हैं। यह गुट प्रतिबंधित जैनबियून ब्रिगेड का ही हिस्सा है।
यह भी पढ़ें: युद्ध या कुछ और, पाकिस्तान-तालिबान के बीच विफल वार्ता के बाद आगे क्या?
क्यों की गई हत्या?
पत्रकार इम्तियाज मीर पाकिस्तान के मेट्रो 1 न्यूज चैनल पर बतौर एंकर काम करते थे। चैनल पर 'आज की बात इम्तियाज मीर के साथ' नाम से एक कार्यक्रम आता था। इसी चैनल पर उन्होंने इजरायल के पक्ष में एक बयान दे दिया। यही बयान उनकी जिंदगी पर भारी पड़ गया। सिंध के गृह मंत्री जियाउल हसन लंजहर के मुताबिक आरोपियों ने पत्रकार की हत्या सिर्फ इस वजह से की, क्योंकि वह उन्हें इजरायल समर्थक मानते थे। सिंध पुलिस के महानिरीक्षक गुलाम नबी मेमन का कहना है कि आरोपियों ने विदेश में बैठे अपने आका के कहने पर हत्या को अंजाम दिया है। गोली लगने के सात दिन बाद कराची के लियाकत नेशनल हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली थी। वे आवाज टीवी पर भी काम कर चुके थे।
अब्दुल लतीफ की घर में हुई हत्या
इम्तियाज मीर से पहले 24 मई को पाकिस्तान के ही बलूचिस्तान में पत्रकार अब्दुल लतीफ बलूच की हत्या उनके ही घर पर कर दी गई। वे बलूचिस्तान के अवारन जिले के मश्के तहसील के रहने वाले थे। यूनेस्को के मुताबिक अब्दुल लतीफ बतौर फ्रीलांसर प्रिंट मीडिया से जुड़े थे। वह डेली इंतेखाब, एएजे न्यूज और एआरवाई न्यूज से जुड़े थे। उन्होंने बलूचिस्तान में सेना द्वारा लोगों को जबरन गायब करने के अभियान के खिलाफ खूब रिपोर्ट प्रकाशित की।
बलूच मानवाधिकार समूहों ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और सेना के प्रति शक जताया। उनका कहना है कि हत्यारे सेना से जुड़े मिलिशिया के हैं। यह 'मार डालो और फेंक दो' अभियान के तहत काम को अंजाम दे रहे हैं।
2024 में पाकिस्तान में मारे गए पत्रकार
- सगीर अहमद लार
- मुहम्मद सिद्दीकी मेंगल
- मेहर अशफाक सियाल
- कामरान डावर
- नसरुल्लाह गदानी
- खलील जिब्रान
- मलिक जफर इकबाल नाईच
पत्रकारिता का 'नर्क' बना पाकिस्तान
इंटरनेशल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट की रिपोर्ट बताता है कि साल 2024 में दुनियाभर में 122 पत्रकार और मीडियाकर्मियों की हत्या हुई है। इनमें 14 महिला और 108 पुरुष शामिल हैं। सबसे अधिक 77 पत्रकार मध्य पूर्व में मारे गए। अफ्रीका में 10, अमेरिका में 9, यूरोप में चार और एशिया में 22 पत्रकारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। बांग्लादेश में पांच, म्यांमार में तीन और पाकिस्तान में सात पत्रकारों की हत्या हुई।
यह भी पढ़ें: पूरे देश को दहलाने का था प्लान, गुजरात एटीएस ने तीन संदिग्धों को दबोचा
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में पाकिस्तान पत्रकारिता का नर्क बन चुका है। यहां काम करना बेहद जोखिम भरा है। इंटरनेशल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट के मुताबिक 2024 में पाकिस्तान में 7 पत्रकारों की हत्या हुई। खैबर पख्तूनख्वा में सबसे अधिक तीन, सिंध में दो और पंजाब व बलूचिस्तान में एक-एक पत्रकार की हत्या की गई।
पत्रकारों के उत्पीड़न में सेना और सरकार सबसे आगे
पाकिस्तान में इमरान खान की गिरफ्तारी पर भड़की हिंसा के बाद कई पत्रकारों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इमरान रियाज खान समेत कुछ पत्रकारों को सेना ने जबरन उठाया। इसके बाद शहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद सेना से जुड़ी एजेंसियों ने नौ पत्रकारों के खिलाफ मामला दर्ज किया। रिपोर्ट्स विदआउट बॉर्डर (आरएसएफ) के मुताबिक इन पत्रकारों ने किसी न किसी रूप में सेना की आलोचना की थी। पाकिस्तानी सेना पत्रकारों को डराने धमकाने की नीयत से ऐसे अभियान चलाती है।
रिपोर्ट्स विदआउट बॉर्डर की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की सेना अक्सर पत्रकारों के उत्पीड़न, उन पर हमले, गोलीबारी, अपहरण, विदेश में रहने वाले पत्रकारों को धमकाना, प्रसारण सिग्नल रोकना और सेंसरशिप में सम्मिलित होती है। इसके अलावा पाकिस्तानी सेना पत्रकारों को 24 घंटे गायब करने का हथकंडा खूब अपनाती है। इस दौरान पत्रकारों को डराया-धमकाया जाता है।
कट्टरपंथी भी पीछे नहीं
पाकिस्तान में पत्रकारों की अधिकांश हत्याएं उनकी रिपोर्ट को लेकर होती है। ज्यादातर पत्रकारों को आलोचनात्मक कवरेज के बाद निशाना बनाया गया। कुछ मामलों में कट्टरपंथी विचारधारा के लोगों ने भी पत्रकारों को मौत के घाट उतारा है। साल 2012 में मलाला यूसुफजई को मारने की कोशिश की गई थी। इस खबर को पत्रकार हामिद मीर ने कवर किया था। इसके बाद उनकी गाड़ी के नीचे बम मिला था। तालिबान ने इसकी जिम्मेदारी ली थी। 19 अप्रैल 2014 को हामिद मीर को छह गोलियां मारी गईं। कराची एयरपोर्ट के पास हुई इस वारदात में उनकी जान बाल-बाल बची थी। हामिद मीर के परिजनों ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी पर आरोप लगाया था।
दुनिया में सबसे अधिक चीन में पत्रकार जेल में
आईएफजे के आंकड़े के मुताबिक पिछले साल दुनियाभर में 516 पत्रकारों को जेल जाना पड़ा है। सबसे अधिक चीन में 135, इजरायल में 59, म्यांमार में 44, बेलारूस में 38 और वियतनाम में 36 पत्रकार जेल में हैं। पाकिस्तान में इमरान रियाज खान और फयाज जफर को जेल जाना पड़ा था। हालांकि इमरान रियाज खान अब जेल से बाहर हैं। विदेश से अपना यूट्यूब चैनल चलाते हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के मुताबिक 1992 से 2025 तक दुनियाभर में 81 पत्रकार गायब हैं।
