अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग शुरू हो गई है। मुख्य तौर पर चुनावी संघर्ष रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रैटिक पार्टी की कमला हैरिस के बीच है। लगभग 24 करोड़ अमेरिकी तय करेंगे कि अगले 4 साल तक अमेरिका की सत्ता कौन चलाएगा। संयुक्त राज्य अमेरिका कहे जाने वाले अमेरिका के नाम ही इसके प्रशासन और चुनाव का राज छिपा हुआ है। अमेरिका में राज्यों को जीतने वाला ही सरकार बनाता है। कई राज्य ऐसे हैं जहां से ज्यादा प्रतिनिधि चुने जाते हैं, ऐसे में बड़े राज्यों को जीतने वाले नेता की राहें आसान हो जाती हैं। यही वजह है कि कम वोट पाकर भी कोई नेता अमेरिका का राष्ट्रपति बन सकता है, बशर्ते उसे ज्यादा से ज्यादा राज्यों में सफलता मिले।
एक उदाहरण से इसे और आसानी से समझिए। साल 2016 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में मुख्य मुकाबला डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन के बीच था। हिलेरी क्लिंटन को 28 लाख ज्यादा पॉपुलर वोट हासिल किए थे लेकिन डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति चुने गए। इसकी वजह यह थी कि डोनाल्ड ट्रंप को 304 इलेक्टोरल कॉलेज वोट मिले थे जबकि हिलेरी क्लिंटन को 227 वोट ही मिले थे। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 वोटों की दरकार थी। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप बाजी मार ले गए।
कैसे आगे बढ़ता है अमेरिका का चुनाव?
अमेरिका में चुनाव की प्रक्रिया सबसे पहले दोनों मुख्य पार्टियों के बीच शुरू होती है। दोनों ही पार्टियां राज्यों में डेलिगेट्स का चुनाव करवाती हैं। यही डेलिगेट्स चुनते हैं कि उनकी पार्टी की ओर से कौन राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार होगा। यानी अगर किसी शख्स को अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ना है तो उसे अपनी ही पार्टी के डेलिगेट्स के बीच बहुमत हासिल करना होगा। आखिर में विजेता शख्स को पार्टियां अपनी ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर देती हैं। इसके लिए भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग व्यवस्था होती है। कहीं डिबेट से फैसला हो जाता है तो कहीं वोटिंग करवाई जाती है।
अमेरिका में चुनाव की औपचारिक तारीख से पहले भी लोग वोट डाल सकते हैं। यानी 5 नवंबर 2024 से पहले भी बहुत सारे लोग वोट डाल चुके हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के इलेक्शन लैब ट्रैकर के मुताबिक, इस साल 7.8 करोड़ लोग पहले ही वोट डाल चुके हैं। इसे अर्ली वोटिंग कहा जाता है। बता दें कि रुझानों के मुताबिक, 50 में से ज्यादातर राज्यों में पहले ही यह तय है कि कौन जीत रहा है। सिर्फ 7 राज्य ऐसे हैं जहां कांटे की टक्कर बताई जा रही है और कहा जा रहा है कि यही 7 राज्य तय करेंगे कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा।
7 राज्य करेंगे फैसला!
ये सात राज्य नेवडा (6), नॉर्थ कैरोलीना (16), विसकॉन्सिन (10), जॉर्जिया (16), पेंसिल्वेनिया (19), मिशिगन (15) और अरिजोना (11) हैं। इन्हें निर्णायक कहने की वजह यह है कि रुझानों के मुताबिक, इन राज्यों में डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच 1 से 2 पर्सेंट का ही अंतर है। 7 में 5 राज्य में डोनाल्ड ट्रंप मामूली अंतर से आगे हैं और दो राज्य ऐसे हैं जहां दोनों लगभग बराबरी पर हैं। इन 7 राज्यों में कुल 93 सीटें हैं। यही वजह है कि इस चुनाव में इन्हें ही निर्णायक कहा जा रहा है। अगर इन राज्यों में कमला हैरिस जीत हासिल कर पाती हैं तो वह बाजी मार जाएंगी, वरना उनकी राहें मुश्किल हो सकती हैं।
भारत और अमेरिका में कितना अंतर है?
भारत में जब लोकसभा चुनाव होते हैं तो जनता सीधे प्रधानमंत्री चुनने के बजाय सांसद चुनती है और यही सांसद मिलकर प्रधानमंत्री चुनते हैं। एक ही राज्य में अलग-अलग पार्टियों के सांसद चुने जाते हैं। अमेरिका में यहीं से अंतर शुरू होता है। वहां पर भी हर राज्य में सीटों की संख्या अलग तो है लेकिन एक बड़ा अंतर यह है कि जिस पार्टी को एक राज्य में सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, सारी की सारी सीटें उसी पार्टी और उसके उम्मीदवार के खाते में चली जाती हैं। उदाहरण के लिए, 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से समाजवादी पार्टी को 37 और बीजेपी को 33 सीटें मिलीं। वोट प्रतिशत के हिसाब से सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी थी लेकिन सीटों के हिसाब से वह दूसरे नंबर पर रही।
अब अमेरिका की बात करें तो सीटों के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य कैलिफोर्निया है। 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में यहां जो बाइडेन को 63 पर्सेंट वोट मिले, जिसके चलते सभी 55 सीटें उन्हीं के खाते में चली गईं। यहां एक बात यह ध्यान रखने वाली है कि जो 538 प्रतिनिधि चुने जाते हैं इनका काम सिर्फ राष्ट्रपति पद के लिए वोट करना होता है। ये किसी भी सदन का हिस्सा नहीं होते हैं। यहां तक कि किसी सरकारी पद पर मौजूद शख्स या किसी सदन का हिस्सा रहने वाले शख्स इस इलेक्टोरल कॉलेज के लिए उम्मीदवार नहीं हो सकते हैं। आमतौर पर एक पार्टी के सभी प्रतिनिधि राष्ट्रपति चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार को ही वोट करते हैं।
किसको वोट देते हैं लोग?
जब अमेरिका के लोग वोट डालने जाते हैं तो उन्हें सीधे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को वोट डालना होता है। यानी इस साल वोट डालने वाले लोग डोनाल्ड ट्रंप या कमला हैरिस में से किसी एक को चुनेंगे। जनता के इस सीधे वोट पॉपुलर वोट कहा जाता है। हालांकि, इस पॉपुलर वोट से राष्ट्रपति नहीं चुना जाएगा। इस पॉपुलर वोट से उस राज्य में विजेता का निर्णय होगा। जिस राज्य में जो पार्टी जीतेगी इलेक्टोरल ग्रुप के सभी उम्मीदवार उसी की पार्टी के जीते माने जाएंगे।
यहां एक और बात ध्यान रखने वाली है कि अमेरिका के 50 में से 48 राज्यों में ही 'Winner Takes All' वाला यह सिस्टम चलता है। यानी ज्यादा वोट के हिसाब से सारी सीटें एक पार्टी के खाते में जाने वाली यह व्यवस्था दो राज्यों में लागू नहीं होती है। ये दो राज्य माइन और नेबरस्का हैं। माइन से कुल 4 प्रतिनिधि आते हैं और नेबरस्का से 5 प्रतिनिधि। इन दोनों ही राज्यों में जीतने वाली पार्टी को 2-2 सीटें मिल जाती हैं। बाकी बची माइन की 2 और नेबरस्का की 3 सीटों पर जिले वार जीतने वाली पार्टी के प्रतिनिधि को विजेता माना जाता है।
वोटों की गिनती होने के साथ ही राज्यों की तस्वीर साफ होने लगती है। ये सब होने के बाद इलेक्टोरल कॉलेज तैयार हो जाएगा। यानी वही 538 लोग जो यह तय करेंगे कि राष्ट्रपति कौन होगा। आमतौर पर यह औपचारिकता ही होती है क्योंकि बड़े स्तर पर इस चुनाव में बगावत नहीं होती है। जब ये वोट डालकर राष्ट्रपति चुन लेंगे तब राष्ट्रपति को शपथ दिलाई जाएगी। तब तक उपराष्ट्रपति के हाथ में अमेरिका की सत्ता रहेगी।
अमेरिका में कैसे चलता है सिस्टम?
कुल 50 राज्यों वाले अमेरिका में दो सदन हैं। संयुक्त रूप से इन्हें यूनाइटेड स्टेट्स कांग्रेस कहा जाता है, ठीक वैसे ही जैसे भारत में संसद कहा जाता है। भारत में जैसे लोकसभा और राज्यसभा हैं, वैसे ही अमेरिका में दो सदन सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव हैं। उच्च सदन यानी सीनेट में कुल 100 सदस्य होते हैं यानी हर राज्य से दो-दो सदस्य। दूसरी तरफ, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में 435 सदस्य होते हैं। 3 प्रतिनिधि वॉशिंगटन डीसी के होते हैं क्योंकि यह किसी राज्य का हिस्सा नहीं है।