22 अप्रैल को हुए पहलगाम अटैक का बदला लेते हुए 7 मई की रात को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सिंदूर' लॉन्च किया था। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने पाकिस्तान और PoK में बने 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया था। इस ऑपरेशन के बाद से दोनों देशों के बीच लगातार तनाव बढ़ रहा है। बढ़ते तनाव के कारण दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात बन गए हैं। युद्ध लड़ा तो दो देशों के बीच में जाता है लेकिन इसमें कई देशों के हित अहित भी छिपे होते हैं। भारत पाकिस्तान में बढ़ते तनाव के बीच दुनिया के बड़े देश किस तरफ हैं इसका संदेश दुनिया के बड़े देशों के प्रमुखों ने दे दिए हैं। पाकिस्तान के कुछ खास दोस्तों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर देश या तो भारत का समर्थन कर रहे हैं या तटस्थ हैं।

 

भारत का पड़ोसी देश चीन हमेशा पाकिस्तान की भाषा बोलता रहा है और वह 1962 में भारत के साथ युद्ध लड़ चुका है। इस युद्द में चीन की जीत हुई थी। इस युद्द के बाद 1965 और 1971 में हुए भारत पाक युद्ध में चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। 1999 में हुई भारत पाकिस्तान की जंग में चीन ने खुद को तटस्थ रखा था। इस युद्द में चीन ने पाकिस्तान को ना कोई राजनयिक समर्थन दिया था और न ही कोई सैन्य सहायता दी थी। भारत और पाकिस्तान के बीच वर्तमान तनाव पर चीन खुद को तटस्थ रख कर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करने की बात कर रहा है।

 

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चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, 'वे दोनों (भारत और पाकिस्तान) चीन के पड़ोसी भी हैं। चीन सभी तरह के आतंकवाद का विरोध करता है। हम दोनों पक्षों से शांति और स्थिरता के व्यापक हित में कार्य करने, संयुक्त राष्ट्र चार्टर(UN CHARTER) सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करने, शांत रहने, संयम बरतने और ऐसी (सैन्य) कार्रवाइयों से बचने का आग्रह करते हैं जो स्थिति को और जटिल बना सकती हैं। हम मौजूदा तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभाने के लिए शेष अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करने के लिए तैयार हैं।'यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि अमेरिका के साथ टैरिफ युद्ध के बाद चीन ने भारत के साथ रिश्तों में सुधार लाने और व्यापारिक रिश्तों को व्यापकता देने के प्रयास कर रहा है। भारत और चीन का व्यापार 100 बिलियन डॉलर पार कर गया है। ऐसे में चीन भारत के खिलाफ जाने से बचेगा। 

 

अमेरिका किसके साथ?


अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है और माना जाता है कि दुनिया की सबसे ताकतवर सेना अमेरिका की ही है। कई अंतर्राष्ट्रीय युद्दों में अमेरिका अहम भूमिका निभा चुका है। अब तक पाकिस्तान के भारत के साथ हुए युद्धों में अमेरिका का पाकिस्तान की तरफ झुकाव रहा है। 1965 के युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान की कोई सैन्य मदद नहीं की थी लेकिन भारत के समर्थन में भी नहीं आया था। 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में अमेरिका ने खुलकर पाकिस्तान की मदद की थी और अमेरिका का युद्धतोप वियतनाम से बंगाल की खाड़ी में पहुंच गया था। अमेरिका के समर्थन के बावजूद पाकिस्तान यह युद्ध हार गया। अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन सोवियत यूनियन और अफगानिस्तान के हालातों के चलते किया था। अमेरिका ने पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले पर अपनी संवेदनाएं जताई हैं और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ मिलकर काम करने की बात कही है। अमेरिका दोनों देशों से तनाव कम करने की बात कह रहा है।

 

क्या तुर्की देगा पाकिस्तान का साथ?

 

तुर्की पाकिस्तान का सबसे करीबी दोस्त है। दोनों ही देश इस्लामिक देश हैं और दोनों जगह सुन्नी मुसलमान ज्यादा हैं। पिछले कुछ सालों में तुर्की के साथ पाकिस्तान के सैन्य संबंधों में मजबूती आई है। ऑपरेशन सिंदूर के कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तान ने दावा किया था कि तुर्की ने उनका साथ देने की बात कही है। तुर्की के राष्ट्रपति ने भारत पाकिस्तान तनाव पर कहा, 'भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव को लेकर हम चिंतित हैं। ये तनाव युद्ध में बदल सकता है। मिसाइल हमलों के कारण बड़ी संख्या में आम नागरिकों की जान जा रही है। पाकिस्तान और यहां के लोग हमारे भाई की तरह हैं और उनके लिए हम अल्लाह से दुआ करते हैं।'

 

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। उन्होंने कहा,'पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से फोन पर मेरी बात हुई है। मेरा मानना है कि जम्मू-कश्मीर में हुए भयावह आतंकवादी हमले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच होनी चाहिए। कुछ लोग आग में घी डालने का काम कर रहे हैं लेकिन तुर्की तनाव कम करने और संवाद शुरू करने का पक्षधर है। हालात हाथ से निकल जाने से पहले हम चाहते हैं कि दोनों देशों में संवाद शुरू हो।' एर्दोआन पाकिस्तान के लोगों को अपना भाई बता रहे हैं। इनके इस बयान से साफ है कि तुर्की किसके साथ है।

 

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ईरान किसके साथ?


ईरान भी पाकिस्तान की तरह ही एक इस्लामिक देश है। ईरान कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की भाषा बोलता रहा है। हालांकि, पहलगाम हमले के बाद पैदा हुए तनाव के बाद ईरान भारत और पाकिस्तान दोनों देशों का पक्ष लेने से बच रहा है। ईरान ने दोनों देशों के बीच मध्यस्था की बात कही है। इस हमले के बाद ईरान सक्रिय है और उनके विदेश मंत्री सैयद अब्बास अरागची ने अपने भारत दौरे में विदेश मंत्री एस. जयशंकर, एनएसए अजित डोभाल और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात की। ईरान के विदेश मंत्री ने भारत-पाकिस्तान के बीच उपजे तनाव के बीच संवाद के जरिए कम करने की बात कही है। सैयद अब्बास के बयान से साफ है कि ईरान दोनों देशों में से किसी का भी साथ लेने से बच रहा है। 

 

ब्रिटेन ने क्या कहा?


भारत पाकिस्तान के बीच तनाव पर ब्रिटेन के विदेश सचिव डेविड लैमी का बयान आया है। डेविड लैमी ने कहा, 'भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव एक गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे में दोनों देशों को मिलकर कोई हल निकालना चाहिए।'

पहलगाम में हुए हमले पर ब्रिटेन की संसद में भी चर्चा हुई। ब्रिटेन के विदेश मंत्री हैमिश फाल्कनर ने हाउस ऑफ कॉमन्स में चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के उस बयान को दोहराया जिसमें जिसमें उन्होंने कूटनीति और संवाद के जरिये समाधान पर जोर दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि यह संकट ब्रिटेन में बसे लाखों भारतीयों और पाकिस्तानियों केलिए व्यक्तिगत रूप से बहुत संवेदनशील विषय है। ब्रिटेन ने भारत और पाकिस्तान को संयम बरतने और बातचीत के जरिए कूटनीतिक समाधान निकालने के लिए कहा। 

 

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मोदी के दोस्त सऊदी प्रिंस भारत का साथ देंगे?


सऊदी अरब और भारत के रिश्ते मजबूत हैं और सऊदी भारत का तीसरा सबसे बड़ ट्रेड पार्टनर है। सऊदी पाकिस्तान का दोस्त था लेकिन पाकिस्तान के बदलते हालातों में वह भारत के साथ अपने रिश्तों को खराब नहीं करना चाहेगा। 2019 में जब भारत ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाया था तब भी पाकिस्तान सऊदी से साथ की उम्मीद लगा रहा था। सऊदी ने उस समय भी भारत के फैसले का विरोध नहीं किया।  इसके पीछे भारत के बाजार की ताकत बताई जा रही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच दोस्ताना रिश्ते हैं।