'हमें अचानक एक तेज शोर सुनाई दिया। इसकी शोर, भूकंप से लग थी। यह आवाज हुस्केनारा पर्वत की ओर से आ रही थी। पर्वत का एक हिस्सा गिर रहा था। हर तरफ धूल-गुबार और बर्फ थी। यह बर्फीले तूफान की तरह था। हमें मलबों के पहाड़ जैसा कुछ नजर आया। यह करीब 60 मीटर ऊंचा था। यह हमारे शहर के दाहिने हिस्से को तबाह कर चुतका था। यह धूल नहीं था। आसमान काला पड़ चुका था। हमें कुछ नजर नहीं आ रहा था। देखते ही देखते हजारों लोग लापता हो गए थे।' पेरू शहर के युंगय में आई विनाशकारी तबाही में जिंदा बचे माटेओ कैसवेर्डे  जब ये किस्सा सुनाते हैं तो लोग कांप जाते हैं।

 

कुछ तारीखें ऐसी होती हैं, जिन्हें याद कर इंसान सिहर उठता है। इन तारीखों को अलग 'कातिल' कह दिया जाए तो गलत नहीं होगा। ऐसी ही इतिहास की एक तारीख है 31 मई 1970। दक्षिण अमेरिकी देश पेरू को इस दिन ऐसा झटका लगा, जिसका गम ये देश आज भी नहीं भूल पाया। पूरा का पूरा शहर ही कब्रिस्तान बन गया और अब कुछ भी नहीं है।

 

यहां एक-दो नहीं, हजारों लोग दफ्न हो गए, जिन्हें उठने का मौका तक नहीं मिला। उस दिन पेरू के सबसे ऊंचे पर्वत हुस्करन से लगी एक बर्फीली दीवार क्या गिरी, लोग मुर्दा हो गए। पहाड़ कुछ इस तरह गिरा की एक पहाड़ी कस्बा युंगय (Yngay) ही साफ हो गया। यहां ऐसा भूस्खलन और बर्फीला तूफान आया कि लोगों को संभलने का मौका ही नहीं मिले।

पहाड़ ही खिसक गया था

जो बर्फीली चोटी पहाड़ से अलग हुई थी उसकी ऊंचाई करीब 600 मीटर थी। यह अपनी तह से ही करीब 3 मीटर दूर खिसक गया और गिर पड़ा। कहते हैं कि इसका मलबा करीब 435 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से फैला। बर्फ, पानी, मिट्टी और पत्थरों के इस मलबे ने सब कुछ तहस नहस कर दिया।

 

जैसे ही युंगय के लोगों को भूकंप के झटके महसूस हुए वे घरों से बाहर निकले। कई लोग भागकर चर्च पहुंच गए। भूकंप के झटके में मौत के आंकड़े कम थे लेकिन जब अचानक से मलबा बहा, लोगो मरने लगे। शिल्कोप, आइरा और ओंगो जैसे कई गांव मिट गए।

 

मलबे का बहाव इतना तेज था कि लोगों ने सामने से मौत को आते हुए देखा। जो लोग इसमें बच गए, उनकी आपबीती भी रुला देगी। इस विनाशकारी प्लय में कम से कम 22000 लोग मारे गए थे। पूरे कस्बे का अस्तित्व मिट गया था।  

 

विनाशलीला में करीब 400 लोग बच गए थे। ये युंगय शहर के जिंदा बचे हुए लोग थे, जिन्होंने अपना सबकुछ खो दिया था। 300 बच्चे जो सर्कस देखने एक स्थानीय स्टेडियम में आए थे, वे ही जिंदा बचे, 92 लोग एक कब्रिस्तान में बने कृत्रिम पर्वत पर चढ़कर जिंदा बच गए। शहर के बीचो बीच ईशू की बाहें फैलाने वाली एक मूर्ति पर मौजूद कुछ लोग बचे, मानों उन्होंने भी लोगों की जिंदगी बचा ली। 

अब कैसा है ये शहर?


यह शहर, लोगों की कब्रों का एक शहर है। पहले यहां दुनियाभर से पर्यटक आते थे, अब यहां फूलों और गुलाबों के बगीचे हैं, कुछ प्रतीक चिह्न बने हैं, कुछ संरचनाएं हैं, जो याद दिलाती हैं कि कैसे यहां विनाशकारी भूकंप ने त्रासदी मचा दी थी।  यह पेरू का राष्ट्रीय कब्रिस्तान बन गया है। यहां लोग कैथडरल वॉल, कब्रिस्तान और जीसस क्राइस्ट की वजह मूर्ति देखने आते हैं जो तबाही के बाद भी अडिग खड़ी रही। पेरू के राष्ट्रीय आपदा का दिन 31 मई है, जिसे यहां की सरकार ने पीड़ितों को याद करने के लिए तय किया है।