एक तानाशाह का सबसे बड़ा ख़्वाब क्या होता होगा? उसके पास बेतहाशा ताकत हो और एक ऐसी सत्ता हो जो कभी खत्म ही न हो। जैसे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग। 12 साल से चीन की सत्ता में बने हुए हैं, टर्म लिमिट हटवा चुके हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, 25 साल से रूस की सत्ता में बने हुए हैं, टर्म लिमिट हटवा चुके हैं। तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन, 22 साल से सत्ता में हैं। प्रधानमंत्री का पद ही उड़वा दिया। अब अगला चुनाव लड़ने के लिए कानूनी तिकड़म कर रहे हैं। अली खामनेई – ईरान के सुप्रीम लीडर हैं। 36 साल से ईरान की सत्ता में बने हुए हैं। यहां टर्म लिमिट का झंझट ही नहीं है। फिर पुतिन्स बॉय अलेक्जेंडर लुकाशेंको हैं – बेलारूस के राष्ट्रपति हैं। उन्हें सत्ता में आए हुए 31 बरस बीत चुके हैं। 2035 तक सत्ता में रहने का इंतज़ाम कर चुके हैं।
ये तो कुछ प्रचलित नाम हैं। जिन्हें आप जानते हैं। इनके बारे में सुनते पढ़ते रहते हैं। कुछ एक नाम ऐसे भी बताते हैं आपको जो आपने शायद नहीं सुने होंगे। पॉल बिया – कैमरून के राष्ट्रपति को सत्ता में बने हुए 42 बरस बीत चुके हैं। दक्षिण पूर्वी एशिया में एक छोटा सा देश पड़ता है। ब्रुनेई, इंडोनेशिया के पास है। यहां के सुलतान हैं- हसनल बोल्किया और लगभग 58 बरस से सत्ता में बने हुए हैं। वर्तमान में सबसे लंबे समय तक राज करने वाले देश के मुखिया हैं। ब्रुनेई में दौलत बहुत है तो असहमति की आवाज़ें कम सुनने को मिलती हैं लेकिन इससे व्यवस्था लोकतांत्रिक तो नहीं हो जाती है।
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हम आज यह सब नाम आपको क्यों बता रहे हैं? क्योंकि सबसे ज़्यादा राज करने वाले लोगों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ने वाला है। वह नाम है असिमी गोइता। वेस्ट अफ़्रीकी देश माली के फौजी जनरल हैं। इन दिनों माली के अंतरिम राष्ट्रपति भी बने हुए हैं। 2021 में सिविलियन सरकार का तख्तापलट करके सत्ता में आए थे। इस वादे के साथ कि जल्द ही देश में चुनाव करवाएंगे। जनता की चुनी सरकार देश चलाएगी लेकिन 4 साल बीत चुके हैं। अब तक ऐसा नहीं हुआ है। ऊपर से 10 जुलाई को गोइता ने एक ऐसे कानून पर मुहर लगा दी जिससे उन्हें राष्ट्रपति के पद से कभी नहीं हटाया जा सकेगा। फिलवक्त उन्होंने 2030 तक अपना कार्यकाल बढ़ाया है पर कानून में ऐसा भी प्रावधान है कि वह अपने मन के मुताबिक कार्यकाल को रिन्यू कर सकेंगे। इसलिए कहा जा रहा है कि अफ्रीका में 10 जुलाई को एक तानाशाही की नींव पड़ी है। जिसे हटाना अब मुश्किल होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या असिमी गोइता माली की बदहाली को खत्म कर पाएंगे? क्या वह यहां से आतंकवाद का सफाया कर पाएंगे? आज के शो में इसी बात पर चर्चा होगी।
माली की कहानी क्या है?
माली वेस्ट अफ्रीका का एक देश है। लैंड लॉक कंट्री है। यानी चारों तरफ ज़मीन है। समंदर से कोई सीमा नहीं मिलती। अल्जीरिया, नाइजर, बुर्किना फासो, कोटे डी आइवर, गिनी, सेनेगल और मॉरिटानिया से इसकी सीमा मिलती है। लगभग 2 करोड़ 40 लाख की आबादी है। 95 फीसद मुसलमान हैं। बचे 5 में पारंपरिक अफ्रीकी धर्मों, ईसाई धर्म को मानने वाले और नास्तिक लोग आते हैं। माली की राजधानी बामाको है। टिम्बकटू शहर भी यहीं है। कभी यह इस्लामी शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था, जहां हजारों पांडुलिपियां आज भी रखी हुई हैं। यहां आज भी 7 लाख से ज़्यादा हाथ से लिखी गई पुरानी किताबें मौजूद हैं, जो धर्म, विज्ञान, गणित से जुड़ी हैं।
और क्या रोचक बातें हैं माली के बारे में? माली का 65% हिस्सा रेगिस्तान है। कुछ हिस्सा सहारा रेगिस्तान का भी यहां पड़ता है। यहां का मौसम इतना गर्म होता है कि कभी-कभी तापमान 50°C तक पहुंच जाता है। माली के जेन्ने शहर में द ग्रेट मस्जिद ऑफ जेन्ने है, जो दुनिया की सबसे बड़ी मिट्टी से बनी इमारत है। यह UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। यहां सोने की बड़ी-बड़ी खदाने हैं। पिछले साल यहां 70 हज़ार किलो सोना निकाला गया था। साउथ अफ्रीका के बाद, अफ्रीका महाद्वीप में सोने के उत्पादन के मामले में माली का दूसरा नंबर आता है।
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माली में हर साल एक अनोखा त्योहार होता है। Antogo Festival, जिसमें गांव के गांव एक ही तालाब में एक साथ कूदकर मछलियां पकड़ते हैं। जो सबसे ज़्यादा मछलियां पकड़ता है, उसे हीरो माना जाता है।
माली में अब तक 5 बार तख्तापलट हो चुके हैं:-
पहली बार, 1968 में- लेफ्टिनेंट मूसा ट्रैओरे ने इसका नेतृत्व किया था। राष्ट्रपति मोडिबो कीता को हटाया गया था।
दूसरी बार, 1991 में- अमादौ तौमानी तौरे (Amadou Toumani Touré) ने इसका नेतृत्व किया था और मूसा ट्रैओरे की सरकार गिरा दी। जो खुद तख्तापलट कर सत्ता में आए थे।
तीसरी बार, 2012 में- माली में तख्तापलट हुआ था, पिछली बार की तरह सेम पैटर्न था। अमादौ तौमानी तौरे को हटाया गया था और सत्ता आई थी कैप्टन अमादौ सानोगो के पास।
चौथी बार, 2020 में- तख्तापलट हुआ। इसका नेतृत्व किया था, जनरल असिमी गोइता ने। गोइता ही इस समय माली के राष्ट्रपति हैं। इस वाले तख्तापलट की कहानी थोड़ा विस्तार से समझते हैं।
2018 में इब्राहिम बू-बक्र केटा दोबारा राष्ट्रपति चुने गए। इन दो कार्यकाल के दौरान माली में दर्जनों आतंकी हमले हुए। इसमें सैकड़ों लोग मारे गए फिर अर्थव्यवस्था की हालात ख़राब थी सो अलग। 2018 वाले चुनाव में तो बू-बक्र पर धांधली के आरोप भी लगे। जांच भी बैठाई गई थी लेकिन उसे आगे बढ़ने नहीं दिया गया। बू-बक्र अपने पद पर बने रहे। देखते-देखते अगला चुनाव आ गया। साल 2000, मार्च का माहीना। फिर एक बार माली में संसदीय चुनाव हुए। बू-बक्र से जनता नाराज़ थी। पोल्स में वह पीछे चल रहे थे। किसी को उनके जीतने की उम्मीद नहीं थी लेकिन परिणामों ने सबको चौंका दिया। उन्होंने फिर जीत हासिल कर ली। एक बार फिर उनपर धांधली के आरोप लगे।
इस बार के चुनाव में कुछ घपलेबाज़ी एकदम सार्वजनिक हो गई। जिसने बू-बक्र के लिए मुश्किल खड़ी कर दी। मसलन, वोटिंग से तीन दिन पहले विपक्षी नेता सोमाइला सिसे अगवा कर लिए गए। इसके अलावा कई चुनावी अधिकारी और कम्यूनिटी लीडर्स की भी किडनैपिंग हुई। गड़बड़ी इतनी ही नहीं हुई। अप्रैल 2020 में एक अदालत ने 31 विपक्षी उम्मीदवारों के नतीजे भी पलट दिए। इससे विपक्ष की सीटें घट गईं और केटा की पार्टी 'रैली फॉर माली' की सीटें बढ़ गईं।
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इस खुल्लम-खुल्ला घपलेबाज़ी की वजह से प्रदर्शन शुरू हुआ। मौका पाकर सेना ने तख्तापलट कर दिया। जनरल असिमी गोइता TV पर आए और वही शब्द कहे जो अमूमन हर सेना का जनरल तख्तापलट करते समय कहता है, 'देश में आर्थिक हालात सही नहीं हैं। मौजूदा सरकार विदेशी सपोर्ट से चल रही है। इन्होंने चुनाव में धांधली भी की है इसलिए सरकार का तख्तापलट किया जा रहा है, अंतरिम सरकार बनाई जाएगी। कुछ महीनों में फेयर इलेक्शन होंगे और जनता की चुनी सरकार आएगी।'
कुछ समय के लिए गोइता ने अपने प्रभाव वाली सरकार बनाई लेकिन जब उसने भी अपने तेवर दिखाने शुरू किए थे 2021 में गोइता ने फिर इसका तख्तापलट कर दिया। यानी दो बार तख्तापलट किया इन्होंने और तबसे वही देश के राष्ट्रपति बने हुए हैं। अब खुद को लीडर फॉर लाइफ बना लिया है। 10 जुलाई को एक कानून में मुहर लगाकर। जिसका ज़िक्र हमने शुरू में किया।
गोइता अपने कार्यकाल को एक्सटेंड करने की कोशिश इस साल के शुरुआत से ही कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए देश की संसद के सामने एक प्रस्ताव भी रखा था, जिसे ज़्यादातर राजनैतिक पार्टियों ने नकार दिया था। इस बात से गोइता नाराज़ हो गए। मई महीने में उन्होंने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, उन सभी पार्टियों पर ही प्रतिबंध लगा दिया और किसी भी तरह की मीटिंग पर भी पाबंदी लगा दी। गोइता के कार्यकाल की 4 बड़ी उपलब्धियां बताई जाती हैं।
पहली, गोइता ने माली से फ्रांस की छुट्टी की है। माली, फ्रांस का उपनिवेश रहा है। फ्रांस ने यहां से सोना और दूसरे ज़रूरी खनिज लिए हैं। कई सालों तक यहां की संपदा का फायदा उठाया है। 2013 से यहां फ्रांस की सेना की मौजूदगी थी। आतंकवाद से लड़ने में वह माली की सेना की मदद करती थी। 2022 में कीता ने फ्रांस को अपना बोरिया-बिस्तर पैक करके वापस भेज दिया।
दूसरी, रूस और चीन से क़रीबी बढ़ाई। फ्रांस के जाने के बाद पुतिन की प्राइवेट मिलिटरी वैगनर यहां तैनात की गई। अब यह आतंकवाद और अलगाववाद से लड़ने में माली की सेना की मदद कर रही है। हालांकि, जनवरी 2025 में रिपोर्ट आई थी कि वैगनर ने अपना मिशन यहां पूरा कर लिया है और अब वापस जा रही है। माली ने रूस से लड़ाकू हेलिकॉप्टर, रडार सिस्टम और हथियार लिए।
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तीसरी आतंकवाद से लड़ने में कैंपेन तेज़ किए। फ्रांस के जाने के बाद लगा था कि माली, आतंकवाद के सामने घुटने टेक देगा। माली समेत वेस्ट अफ्रीका के देशों में अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े आतंकी संगठन की प्र्ज़ेंस है। तो गोइता ने आतंक के खिलाफ़ लड़ने के लिए कैंपेन तेज़ किए हैं। इस दौरान आम नागरिकों की भी जान गई है। इसलिए गोइता पर मानवाधिकार उल्लघन के आरोप भी लगे हैं।
चौथी, गोइता ने माली को 2 बड़े रीजनल संगठन से निकाला है। पहला संगठन था G5 सालेह और दूसरा ECOWAS। G5 सालेह आतंकवाद से लड़ने के लिए बनाया गया था। इस संगठन को वेस्ट का समर्थन मिला हुआ था। अब माली, नाइजर और बुर्किना फासो ने मिलकर एक नया संगठन बनाया है- Alliance of Sahel States। इसमें आगे और देशों को जोड़ने की योजना है। इसका मकसद भी आपसी सहयोग बढ़ाना है।
साहेल अरबी भाषा का शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है, तट या किनारा। धरातल पर सहारा रेगिस्तान और सवाना के घास के मैदान के बीच के इलाके को यह नाम दिया गया है। इसका पूर्वी किनारा लाल सागर जबकि पश्चिमी किनारा अटलांटिक सागर से मिलता है। बीच में सूडान, चाड, नाइजर, माली और मॉरिटेयाना का अधिकांश हिस्सा साहेल में पड़ता है। बाकी कई देशों के थोड़े बहुत इलाके इस रीजन में माने जाते हैं। लोकेशन और डेमोग्राफ़ी की वजह से नाइजर साहेल के सबसे अहम देशों में गिना जाता है तो ये उपलब्धियां थीं, असिमी गोइता की।
गोइता की उनकी कुछ आलोचनाएं भी हैं, 3 बिन्दुओं में उन्हें भी समझ लीजिए:-
नंबर 1- आरोप लगते हैं कि उनकी सेना ने वैगनर के साथ मिलकर आम नागरिकों की हत्या करवाई है।
नंबर 2- वेस्ट से दूरी की वजह से वहां से आने वाली मदद भी रुक गई है। 2023 में UN की शांति सेना MINUSMA को माली छोड़ने के लिए कहा गया था, जिससे UN की मदद भी अब बहुत कम आ पाती है यहां।
नंबर 3- जिसकी चर्चा सबसे ज़्यादा होती है। वेस्ट अफ्रीका के दूसरे मुल्कों की तरह माली में भी चुनाव के आसार नहीं दिख रहे हैं। असिमी गोइता पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगा है और जब से उन्होंने अपना टर्म एक्सटेंड किया है, ये आरोप और तेज़ हो गए हैं।
जाते-जाते उनकी कहानी भी जानते जानिए-
9 नवंबर 1983 में पैदाइश हुई। पिता सेना में अधिकारी थे। एक मिलिटरी एकडमी में गोइता की पढ़ाई लिखाई हुई। पढ़ाई के बाद अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में भी ट्रेनिंग ली। ख़ासतौर पर काउंटर-टेररिज़्म की ट्रेनिंग ली क्योंकि उनका देश आतंकवाद से ग्रसित था, अब भी है। पिता के नक़्शे कदम पर चलते हुए आर्मी ज्वाइन की। साहेल रीजन में कई मिलिटरी कैंपेन में हिस्सा लिया। 2018 में कर्नल के पद के साथ माली विशेष बलों की कमान भी संभाली।