यूक्रेन के साथ जंग छेड़कर क्या रूस ने खुद को कमजोर कर लिया है? सवाल इसलिए क्योंकि अब धीरे-धीरे रूस के सहयोगी साथ छोड़कर जा रहे हैं। कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा आर्मेनिया अब रूस से दूरी बढ़ाने लगा है। आर्मेनिया की नजदीकियां अब अमेरिका और फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों से बढ़ रही हैं। इसे लेकर रूस ने आर्मेनिया को चेतावनी भी दी है।
आर्मेनिया की नाराजगी की एक वजह यह है वह लंबे समय से हथियारों के लिए रूस पर निर्भर रहा है। आर्मेनिया का अपने पड़ोसी अजरबैजान से दशकों से संघर्ष चल रहा है। इसलिए रूस इसकी मदद करता था। रूस की मदद करने का एक मकसद यह भी था कि आर्मेनिया एक तरफ अजरबैजान और दूसरी तरफ से तुर्की से घिरा था। अजरबैजान और तुर्की को रूस अपना 'दुश्मन' मानता है।
इसी तरह रूस की पकड़ सीरिया पर भी कमजोर हो रही है। बशर अल-असद के सत्ता में रहते रूस और सीरिया के रिश्ते बेहतर थे। मगर अब वहां अहमद अल-शरा अंतरिम राष्ट्रपति बन गए हैं। अहमद अल-शरा ने हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी।
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आर्मेनिया में कैसे कमजोर हो रहा रूस?
- पहले क्या था?: आर्मेनिया रूस का पुराना सहयोगी रहा है। दोनों देश CSTO (कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) के सदस्य हैं, जो रूस के नेतृत्व में एक सैन्य गठबंधन है। आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख को लेकर संघर्ष होता रहता है। इसलिए आर्मेनिया हथियारों के लिए रूस पर निर्भर रहा है। रूस ने आर्मेनिया में सैन्य अड्डा भी बनाया हुआ है।
- अब क्या हो रहा है?: 2022 और बाद में नागोर्नो-काराबाख में अजरबैजान के साथ युद्ध में रूस ने आर्मेनिया को वह सैन्य समर्थन नहीं दिया, जिसकी उम्मीद थी। रूस की सेना यूक्रेन में व्यस्त थी, इसलिए आर्मेनिया को अकेले ही जूझना पड़ा। इससे आर्मेनिया में रूस के खिलाफ नाराजगी बढ़ी। आर्मेनिया अब रूस से दूरी बनाते हुए पश्चिमी देशों की तरफ झुक रहा है।
- क्यों अहम है?: आर्मेनिया का रूस से मुंह मोड़ना रूस के लिए बड़ा झटका है। अगर आर्मेनिया जैसे सहयोगी रूस से अलग होते हैं, तो रूस का कोकेशस क्षेत्र में प्रभाव और CSTO की ताकत कमजोर होगी।
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सीरिया में कैसे कमजोर हो रहा रूस?
- पहले क्या था?: रूस कई सालों से सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद का सबसे बड़ा समर्थक रहा है। 2015 में रूस ने सीरिया के गृहयुद्ध में असद की सरकार को बचाने के लिए अपनी सेना भेजी थी। रूस की हवाई ताकत और सैन्य मदद से असद सत्ता में बने रहे। रूस का सीरिया में टार्टस नौसैनिक अड्डा और ह्मेमिम एयरबेस भी है, जो उसे मध्य-पूर्व में रणनीतिक ताकत देता है।
- अब क्या हो रहा है?: यूक्रेन युद्ध ने रूस की सेना को कथित तौर पर कमजोर किया है। रूस को अपने सैनिक, हथियार और संसाधन यूक्रेन भेजने पड़े, जिससे सीरिया में उसकी ताकत कम हुई। पिछले साल विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (HTS) ने असद सरकार का तख्तापलट कर दिया था। रूस की कमजोरी के कारण ही यह सब मुमकीन हो सका। अब वहां HTS ही सत्ता में है, जिससे रूस का सीरिया पर कंट्रोल ढीला पड़ गया है।
- क्यों अहम है?: सीरिया, रूस के लिए मध्य पूर्व में एक गेटवे है। अगर रूस वहां अपनी पकड़ खो देता है तो उसका क्षेत्रीय प्रभाव और नौसैनिक अड्डों पर नियंत्रण खतरे में पड़ सकता है।
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इसकी वजह क्या है?
यूक्रेन के साथ जंग ने रूस को बहुत कमजोर किया है। यूक्रेन में लड़ते हुए रूस को तीन साल से भी ज्यादा हो गया है लेकिन वह अब तक कुछ हासिल नहीं कर पाया है। यूक्रेन के साथ जंग छेड़ने के कारण रूस पर कई प्रतिबंध भी लग गए हैं, जिसने उसे और कमजोर कर दिया है।
कमजोर होने के कारण ही रूस की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में आर्मेनिया के विदेश मंत्री अरारत मिर्जोयान से मुलाकात की थी। इसके बाद एक जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में लावरोव ने कहा, 'हम आज जिस स्थिति में हैं, हमें पूरे यूरोप से लड़ना पड़ रहा है। हमारे आर्मेनिया जैसे दोस्त समझते हैं कि ऐसे हालात में हम अपनी सभी जिम्मेदारियों को समय पर पूरा नहीं कर सकते।'
सर्गेई लावरोव ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में आर्मेनिया को फ्रांस से करीबी बढ़ाने पर चेतावनी भी दी थी। लावरोव ने कहा, 'जब कोई देश फ्रांस जैसे देश की तरफ मुड़ता है, जो दुश्मन का समर्थन करता है और जिसके राष्ट्रपति और मंत्री खुलेआम रूस के प्रति घृणा दिखाते हैं, तो यह सवाल खड़ा करता है।' लावरोव के इस बयान से पता चलता है कि रूस अब आर्मेनिया को हथियारों की आपूर्ति वैसे नहीं कर पा रहा है, जैसे पहले करता था।
सीरिया भी रूस के हाथ से निकलता दिख रहा है। हाल ही में सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी। ट्रंप ने भी सीरिया से प्रतिबंध हटाने की बात कही है। सीरिया में जब तक बशर अल-असद की सत्ता थी, तब तक वह रूस का करीबी था। मगर अब सीरिया की नजदीकियां तुर्की और सऊदी अरब जैसे देशों से बढ़ रही है।