इन दिनों यूरोप के कई देश भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं। शीतलहर वाले देश आज लू की चपेट में हैं। इटली और ग्रीस में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है। जंगलों में आग की घटनाओं में इजाफा होने लगा है। कई देशों में दिन के समय बाहर के काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। स्पेन के शहर बार्सिलोना में जून महीने में गर्मी ने 100 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। प्रचंड गर्मी से सबसे अधिक दक्षिण यूरोप जूझ रहा है। आइए जानते हैं कि यूरोप भीषण गर्मी की चपेट में क्यों हैं, क्लाइमेंट चेंज से इसका क्या संबंध है और यह प्रचंड गर्मी डराने वाला क्यों हैं?

 

पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, इटली और ग्रीस पिछले कई दिनों से झुलसाने वाली गर्मी का सामना कर रहे हैं। स्पेन के हुलवा क्षेत्र में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है। यूरोप के कई देशों में जंगल में आग की घटनाओं ने भी प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है। ग्रीस में एथेंस के पास जंगलों में भीषण आग लगी है। आनन-फानन वहां की सरकार को वायु प्रदूषण से जुड़ा अलर्ट जारी करना पड़ा। तुर्किये में इजमिर के पास जंगल में लगी आग के बाद लगभग 50 हजार लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। अल्बानिया में सिर्फ दो दिनों में जगंल में आग लगने की 26 घटनाएं सामने जा चुकी हैं। उधर सर्बिया में पिछले गुरुवार को 19वीं सदी के बाद सबसे गर्म दिन रिकॉर्ड किया गया। 

 

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गर्मी से निपटने की तैयारी में जर्मनी

जर्मनी में साल 2025 की पहली छमाही में सबसे कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। 1893 के बाद यह पहली बार है जब किसी साल के छह महीने सबसे अधिक सूखे थे। जर्मनी ने 40 डिग्री सेल्सियस तापमान से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। जर्मनी में बेट्टीना नाम से हर साल एक गर्म मौसम आता है। अनुमान के मुताबिक यह बुधवार तक पूरे जर्मनी को अपनी गिरफ्त में ले लेगा। इस दौरान तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने का अनुमान है। लोगों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है। 

 

इंग्लैंड में टूटा 141 साल का रिकॉर्ड

इंग्लैंड भी भीषण गर्मी की चपेट में है। मंगलवार को यहां तापमान 33.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। यह साल 2025 में दर्ज किया गया सबसे अधिक तापमान है। इंग्लैंड के मौसम विभाग ने इस हफ्ते देश के अधिकांश भागों में भीषण गर्मी की चेतावनी जारी की है। अनुमान के मुताबिक लंदन में तापमान 34-35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 1884 के बाद इंग्लैंड में जून महीना सबसे गर्म रहा है। 

दुनिया को डालनी होगी लू के साथ जीने की आदत

संयुक्त राष्ट्र की मौसम एवं जलवायु एजेंसी का कहना है कि दुनिया को लू के साथ रहने की आदत डालना होगा। जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों को और अधिक लू का सामना करना पड़ सकता है। विश्व मौसम संगठन की प्रवक्ता क्लेयर नुलिस ने कहा कि उत्तरी गोलार्ध में जुलाई महीना साल का सबसे गर्म महीना होता है। मगर गर्मियों के शुरुआती दिनों में अत्यधिक गर्मी का पड़ना असाधारण बात है।

 

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क्यों डराने वाली है यह भीषण गर्मी?

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के सांख्यिकीविद् पियरे मैसेलोट का कहना है कि हीटवेव के कारण 30 जून से 3 जुलाई तक 4500 से अधिक लोगों की जान जा सकती है।सबसे अधिक खतरा इटली, क्रोएशिया, स्लोवेनिया और लक्जमबर्ग जैसे देशों को है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक आइसलैंड से रूस तक गर्मी से सलाना 1 लाख 75 हजार लोगों की मौत होती है। एक अध्ययन में यह बताया गया कि अगर जलवायु परिवर्तन से निपटना नहीं गया तो आने वाले समय में गर्मी से होने वाली मौतों में इजाफा होगा। सोमवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हीटवेव अधिक आएंगी। यह न केवल खतरनाक और तीव्र होंगी बल्कि इससे अधिक बीमारियों और लोगों की मौतें होंगी। 

पुर्तगाल से फ्रांस तक, गर्मी से सब हलकान

  • पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन के करीब मोरा में 46.6 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया।
  • इटली के 27 प्रमुख शहरों में से 21 में हीटवेव और भीषण गर्मी का अलर्ट जारी किया गया।
  • इटली के टस्कनी शहर के अस्पतालों में मरीजों की संख्या में 20 फीसदी तक की उछाल आई है।
  • इटली में लोगों को सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे के बीच बाहर न निकलने की सलाह दी गई है।
  • फ्रांस के इतिहास में पहली बार पूरा देश भीषण गर्मी की चपेट में है। 200 सरकारी स्कूल बंद।

 

प्रचंड गर्मी के पीछे हीट डोम

पूरे यूरोप में अधिक गर्मी के पीछे हीट डोम है। यूरोप के पास बने हीट डोम ने हाई प्रेशर और गर्म हवाओं को फंसा रखा है। यूनिवर्सिटी ऑफ मेन के जलवायु परिवर्तन संस्थान के मुताबिक यह घटना समुद्री हीटवेव के बीच हुई है। समुद्री हीटवेव के कारण भूमध्य सागर 5 डिग्री अधिक हो गया है। सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक डॉ. माइकल बर्न का कहना है कि हीट डोम कोई नई बात नहीं है। मगर इनसे पैदा तापमान नई बात है। यूरोप पूर्व-औद्योगिक काल की अपेक्षा 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म है। इस कारण जब हीट डोम बनता है तो वह अधिक गर्मी छोड़ता है।

क्लाइमेट चेंज का असर

दुनियाभर में मौसम की चरम घटनाओं में इजाफा हो रहा है। कहीं तूफान तो कहीं बाढ़ देखने को मिल रही है। अचानक बदल फटने, भीषण बारिश और बाढ़ जैसे हालात पैदा हो रहे हैं। लोगों को हाड़ कंपा देने वाली ठंड और प्रचंड गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। रेगिस्तान में बाढ़ और बर्फबारी हो रही है। मैदानी इलाकों में सूखा है। लोग मौसम की ऐसी घटनाओं के साक्षी बन रहेंगे जिन्हें, उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। इन्हीं ही मौसम की चरम घटना कहा जाता है। यूरोप में पड़ने वाली भीषण गर्मी के पीछे भी क्लाइमेंट चेंज है। जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है।

कैसे बढ़ रहा धरती का तापमान?

नासा के मुताबिक पृथ्वी का तापमान जिस दर से बढ़ रहा है, यह पिछले 10 हजार वर्षों में पहली बार है। मनुष्यों की गतिविधियों ने वायुमंडलीय गैसों का उत्पादन हुआ। इन गैसों ने पृथ्वी प्रणाली में सूर्य की अधिक ऊर्जा को फंसा लिया। इस अतिरिक्त ऊर्जा के कारण वायुमंडल, महासागरों और धरती गर्म होने लगी। 19वीं सदी के उत्तरार्ध से पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 2 डिग्री फारेनहाइट बढ़ गया है। तापमान में यह वृद्धि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन से हुआ। महासागरों का तापमान भी बढ़ रहा और दूसरी तरफ ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे हैं।