आमतौर पर दो देशों के बीच सीमा का निर्धारण किया जाता है। तार लगाकर या दीवार खड़ी करके दो देशों को अलग किया जाता है। एक देश ऐसा भी है जिसके एक शहर के अंदर ही एक दीवार बना दी गई थी। इस दीवार के चलते शहर ही दो हिस्सों में बंट गया था। इतना ही नहीं, शहर के दो हिस्सों में बंट जाने के बाद एक तरफ के लोगों का दूसरी तरफ जाना सख्त मना था। यहां तक कि इसे पार करने की कोशिश करने वालों का अंजाम भी बुरा होता था। हालांकि, एक दिन यह दीवार गिरा दी गई और यह इतिहास का हिस्सा हो गई। यह कहानी जर्मनी के शहर बर्लिन में बनी और फिर गई मशहूर बर्लिन की दीवार की है।
दीवार की नींव पड़ने से पहले उसकी सैद्धांतिक नींव पड़ती है दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के साथ। जर्मनी के दो टुकड़े हो गए थे। एक पर सोवियत यूनियन की अगुवाई वाले पूर्वी ब्लॉक का कब्जा था तो दूसरे पर संयुक्त राज्य अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिमी ब्लॉक का। फैसला हुआ था कि शहर के दोनों हिस्सों के बीच बाउंड्री बनाई जाएगी। 13 अगस्त 1961 को बाड़ वाली तार लगाकर इसकी शुरुआत हुई। कुल 160 किलोमीटर लंबी इस बाउंड्री ने बर्लिन के दो टुकड़े कर दिए।
दीवार पार करने के चक्कर में जाती थी जान
दरअसल, विभाजन के बाद से ही हजारों मजदूर, कारीगर और व्यवसायी हर दिन पूर्वी बर्लिन से पश्चिमी बर्लिन जाने लगे थे। पूर्वी जर्मनी को नुकसान हो रहा था ऐसे में उसने इन लोगों को रोकने का फैसला किया। दीवार ऐसी बनी कि किसी के परिवार बंट गए तो किसी को भारी नुकसान हुआ। इसके बावजूद जिन लोगों ने पश्चिमी बर्लिन में जाने की कोशिश की उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
हालांकि, समय बीता और सोवियत यूनियन कमजोर गई। कम्युनिस्ट गुट का पतन हुआ और दुनिया ने एक अलग दिशा पकड़ी। आखिरकार लगभग तीन दशक के बाद 9 नवंबर 1989 को पांच लाख लोगों के विरोध प्रदर्शन के चलते इस दीवार को ढहा दिया गया। इससे न सिर्फ बर्लिन शहर एक हो गया बल्कि जर्मनी ही एक देश हो गया।