पश्चिमी दर्शन में सुकरात, पहले विचारक माने जाते हैं। उन्होंने उस जमाने में रूढ़िवादी दर्शनों से उलट नए विचार दिए, जिनकी उन्हें कड़ी सजा मिली। उन्होंने जो कुछ भी कहा, उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। उनके सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे प्लूटो। वही प्लूटो, जो खुद बाद में पश्चिम के बड़े विचारकों में शामिल हुए। 

सुकरात के कई प्रश्न ऐसे हैं, जिन्हें कोई सुलझा नहीं पाया। सुकरात का जीवन 469 ईसा पूर्व से 399 ईसा पूर्व तक माना जाता है। इसी दौरान उन्होंने जो कुछ कहा, उन्हें उनके शिष्य लिखते गए। उन्होंने, राजनीति, दर्शन और ईश्वर हर प्रमुख मुद्दों पर बात की। 

सुकरात के बारे में कहा जाता है कि वे सैनिक थे। जब युनान और स्पार्टा के बीच पेलोपेनेसियन की जंग छिड़ी तो उसमें सुकरात भी सैनिक के तौर पर शामिल हुए थे। जंग में एक वक्त ऐसा भी आया जब उनके सेनापति एल्सिबिएड्स बुरी तरह जख्मी हो गए। उन्होंने जान पर खेलकर उनकी जान बचाई। 

सैनिक थे, दार्शनिक बन गए सुकरात
जब ये जंग खत्म हुई और सुकरात वापस अपने गर लौटे, उन्हें लोग दार्शनिक के तौर पर मान्यता देन लगे। उन्हें बुद्धिजीवी कहा जाने लगा। सुकरात मानते थे कि हर स्थिति की जांच अनिवार्य है, बिना जाने कुछ भी मानना गलत है। उन्होंने युनान के लोगों से कहा कि संदेह करें और उनका समाधान ढूंढें। 

सुकरात का कहना था कि अपनी अज्ञानता को स्वीकार करना भी बुद्धिमान इंसान का काम है। जिन लोगों को अपनी खामियां पता होती हैं, वे ही उन्हें दुरुस्त करने की काबिलियत रखते हैं। उन्होने कहा कि लगातार सवालों से ही सच का पता लगाया जा सकता है। 

सड़कों पर लोगों को दर्शन सिखाते थे सुकरात
सुकरात फक्कड़ी स्वभाव के थे। वे देखते ही देखते प्रसिद्ध विचराकों में शामिल हो गए लेकिन उन्होंने अपने पहनावे पर कभी ध्यान नहीं दिया। वे नंगे पैर, बेतरतीब बालों के साथ सड़कों पर घूमते रहते और लोगों के सवालों का जवाब देते थे। सुकरात ज्ञान पर ज्यादा जोर देते थे। 

ऐसे लोकप्रिय होते गए पश्चिम के पहले दार्शनिक
सुकरात के शुरुआती अनुयायियों में युनान के युवा, सैनिक और कुछ धनाढ्य लोग भी शामिल हो गए। वे देखते ही देखते धर्मगुरु बनते चले गए, जो संदेहवादी था। सुकरात को जितने लोग पंसद करते थे, उससे ज्यादा लोग उनसे नफरत भी करते थे। सुकरात की राजनीतिज्ञों से नहीं बनी। उन्होंने बहस भी किया। वे उन लोगों के खिलाफ मुखर थे, जिन्होंने युवाओं को युद्ध में झोंकना चाहा। वे राजनीतिक भाषणबाजी से चिढ़ते थे। सुकरात से सत्ताधारी लोग चिढ़ने लगे। उन्हें सुकरात नहीं पसंद आते थे। वे सुकरात के खिलाफ जमकर बोलते और उनकी बदसूरती का मजाक उड़ाते। ग्रीक लेखकर एरिस्टोफेन्स ने द क्लाउड्स नाम से एक नाटक लिखा, जिसमें सुकरात का जमकर मजाक उड़ाया। 

सच बोलने की मिली बुरी सजा
युनान में यह दौर सत्ता परिवर्तन का था। राजनीतिक हालात ऐसे हो गए लोगों को सुकरात के व्यक्तिवादी भाषण चुभने लगे। जो लोग सत्ता में थे, उन्हें ये बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था कि साम्राज्य से हटकर किसी व्यक्ति का दर्शन इतना व्यक्तिवादी कैसे हो सकता है। सुकरात के विरोधियों ने उनके विचारों को क्रांतिकारी कहा और यह माना कि सुकरात के तेवर बगावती हैं, वे लोगों को नैतिक रूप से भ्रष्ट कर रहे हैं।

सच बोला, इसलिए मिली मौत
399 ईसा पूर्व यूनान के अधिकारी ने उन पर शहर के युवाओं को बर्बाद करने और सामाजिक पवित्रता भंग करने का दोषी माना। उन्हें इसके लिए मृत्युदंड तक सुना दिया गया। सुकरात बहादुर थे। उन्होंने भागने की जगह मौत की राह चुन ली। उन्होंने अपने अंतिम दिन, मित्रों संग गुजारे। उन्हें जहर भरा एक प्याला दिया गया। उन्होंने उस प्याले को पी लिया।

उनसे शिष्य प्लूटो लिखते हैं, 'उन्हें डर नहीं था। वे खुश नजर आ रहे थे। उनकी नजरों में था कि वे किसी से नहीं डरते, वे निडर होकर मर गए।' सुकरात जैसे विद्वान मर कर अमर हैं। उनके शिष्य प्लूटो हुए। प्लूटो के शिष्य अरस्तू हुए, जिन्हें सिकंदर का गुरु कहा जाता है।