दिल्ली के दिल चांदनी चौक की नब्ज ऐतिहासिक कटरा नील में धड़कती है। जब शाहजहां ने अपना शाही शहर बसाने का फैसला किया तो कई व्यापारी और कारीगर भी उनके साथ दिल्ली के चांदनी चौक आ गए। कटरा नील में बनिया समुदाय आकर बस गया और देवता नील कंठ महादेव के नाम पर इसका नाम रख दिया गया।
दिल्ली के प्राचीनतम क्षेत्रों में गिने जाने वाले कटरा नील मार्केट में एक समय नील बनाया जाता था और उसकी भारी मात्रा में बिक्री भी होती थी। यही कारण है कि इसका नाम कटरा नील मार्केट पड़ा। कटरा नील निर्माताओं और व्यापारियों के लिए यह इलाका काफी प्रसिद्ध था। हालांकि, अब कटरा नील अब एक थोक कपड़ा बाजार है जो कटरा नील के प्रसिद्ध ऐतिहासिक गेट के बगल में स्थित है।
संकरी गली और दोनों ओर दुकानें ही दुकानें
कटरा नील मार्केट एक संकरी गली में स्थित है जिसके दोनों ओर दुकानें ही दुकानें लगी हुई हैं। जब आप यहां खरीदारी के लिए कदम रखेंगे तो आपको मुगल वास्तुकला की झलक देखने को मिल जाएगी। यह बाजार शादी के कपड़ों से लेकर आभूषणों और जूतों तक आपकी शादी की सभी जरूरतों के लिए वन-स्टॉप शॉपिंग डेस्टिनेशन है। यहां पुरुषों के कपड़ों की भी कई दुकानें हैं और रेमंड के सबसे पहले आउटलेट को भी यहां स्थापित किया गया था।
ऐतिहासिक मंदिरों से भरी कटरा नील की गलियां
मां काली के सबसे पुराने मंदिरों में से एक और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्थापित ऐतिहासिक मंदिरों के साथ, यह बाजार आपको भारत के इतिहास की याद दिलाएगी। शादी के समय सबसे जरूरी मानी जाने वाली मेहंदी भी आप इस मार्केट से खरीद सकते हैं।
ओल्ड इज गोल्ड
कटरा नील मार्केट में खरीदारी करने का अनुभव आपको मुगल बाजारों की याद दिलाता है और आपको ऐसा लगता है जैसे आप मुगल काल में वापस आ गए हों! सस्ते दामों पर खरीदारी करने और पुरानी दुनिया की दिल्ली का लुत्फ़ उठाने के लिए एक बार सभी को कटरा नील मार्केट घूमना चाहिए।