चहल-पहल भरी गलियों और बाजारों के साथ, इतिहास और संस्कृति का खजाना है पुरानी दिल्ली। पुरानी दिल्ली के बीचों-बीच सबसे पुरानी और व्यस्त गलियों में से एक खारी बावली अपने मसाला बाजार के लिए मशहूर है। हालांकि, इस ऐतिहासिक बाजार के पीछे एक दिलचस्प कहानी छिपी है जो मसालों के बारे में बिल्कुल भी नहीं थी। 17वीं शताब्दी के दौरान खारी बावली को स्थापित किया गया था। आज यह एशिया का सबसे बड़ा थोक मसाला बाजार है। बाजार की संकरी गलियां दुकानों और गोदामों से भरी हुई हैं, जहां मसालों, चाय, जड़ी-बूटियों, सूखे मेवों और मेवों की एक मनमोहक खुशबू भरी हुई है।
मसालों के लिए मशहूर खारी बावली पहले काफी अलग थी। यहां बाजार नहीं बल्कि बावड़ी ज्यादा हुआ करती थी। खारी बावली का हिंदी में मतलब नमकीन/खारा बावड़ी होता है। सदियों पहले, मुगल काल के दौरान, यहां बावड़ी हुआ करती थी जिसे स्थानीय लोगों के नहाने और जानवरों के लिए पानी पीने के लिए डिजाइन किया गया था। आज उस बावड़ी का कोई नामोनिशान नहीं बचा है।
अनोखा है खाली बावली का इतिहास
खारी बावली का सीढ़ीदार कुआं, जो अब बाजार की व्यावसायिक गतिविधियों के कारण कहीं गुम हो गया है, कभी पुरानी दिल्ली के निवासियों के लिए सबकुछ था। ये कुएं उस शहर में बहुत जरूरी थे जहां पानी की कमी एक गंभीर समस्या थी। सीढ़ीदार कुएं की झलक उस समय के इंजीनियरिंग कौशल को दर्शाती है, जिसमें डिजाइन और पैटर्न दिखाए गए हैं। जैसे-जैसे शहर विकसित हुआ, व्यापारी खारी बावली में आते रहे, जिसने इसे मसालों का बाजार बना दिया। खारी बावली न केवल मसाला व्यापार का केंद्र है, बल्कि एक कल्चरल लैंडमार्क की भी झलक पेश करता है, जो टूरिस्ट को भारत की ऐतिहासिक विरासत की झलक दिखाती है। इस बाजार में घूमना अपने आप में एक अनुभव है लेकिन क्या आपने कभी इस मार्केट का छत से पूरा जायजा लेने का सोचा?
खारी बावली थोक मसाला बाजार की छत आपको इस मार्केट का अद्भुत नजारा पेश करती है। इस बाजार को 1930 के दशक में सेठ लक्ष्मी नारायण गाड़ोदिया नामक एक धनी व्यापारी ने बनवाया था। इन इमारतों की छत के हर एक कोने पर बड़ी छतरियां हैं और साथ ही निचली मंजिलों पर बालकनी और मेहराबदार दरवाजे हैं। छत से इस मसाला मार्केट का नजारा देखना बिल्कुल मुफ्त है और यहां से सड़क के बाजारों, शानदार फतेहपुरी मस्जिद और लाल किले का भी नजारा बखूबी देखने को मिल जाएगा। सुबह और शाम के समय, जब आप इन मसाला मार्केट की छत पर जाएंगे तो आपको मसालों के अलग-अलग रंग देखने को मिल जाएंगे।
पुरानी दिल्ली के शोरगुल के बीच यहां की इमारतों की छत पर एक अलग सी शांति महसूस होती है। छत पर आपको युवा पतंग उड़ाते नजर आएंगे और व्यापारी इस जगह का इस्तेमाल मसाले और सब्जियां सुखाने के लिए करते हैं। पास की मस्जिद से अजान की आवाजें गूंजती रहती हैं। दूसरे राज्यों से आने वाले विक्रेता भी आराम करने या सोने के लिए आंगन और छत का इस्तेमाल करते हैं। यह शहर के इतिहास का एक मुख्य हिस्सा है।
खारी बावली की छत अगर आपको भी एक्सप्लोर करनी है तो इन चीजों का रखें ध्यान
टाइम: खारी बावली की छत एक्सप्लोर करने के लिए वैसे तो कोई फिक्सड टाइमिंग नहीं है लेकिन सूर्यास्त के बाद छत पर जाने की अनुमति नहीं है। सर्दियों में शाम 5 बजे और गर्मियों में शाम 6 बजे तक आप यहां की छत पर घूम सकते हैं। अच्छी फोटोग्राफी और लाइटिंग के लिए सुबह और शाम का समय सबसे सही माना जाता है।
फीस: खारी बावली की छत घूमने के लिए आपको पैसे नहीं देने पड़ते है। वहां मौजूद स्थानीय लोग आपको इतिहास से गुफ्तगू जरूर कराएंगे।