इत्र लगाने वाला अगर आपके करीब से गुजरता है तो आसपास की जगहें महक उठती हैं। ये वो खुशबू है जिसके दीवाने एक नहीं बल्कि करोड़ों लोग हैं। भारत में इत्र बनाने का इतिहास 6 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। मुगल काल के दौरान इत्र को लोकप्रियता मिली थी। ऐसा बताया जाता है कि भारत में मुगल काल के दौरान इत्र के तेल और सुंगधों का इस्तेमाल होना ज्यादा हो गया था। भारत में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर कन्नौज से भी इत्र का इतिहास जुड़ा हुआ है।
भारत का इत्र शहर और इत्र नगरी कहे जाने वाले कन्नौज में इत्र तेलों का निर्माण हुआ था। यहां पारंपरिक तरीके से इत्र बनाई जाती है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, मुगल सम्राट अकबर के पास इत्र का एक पूरा डिपार्टमेंट था, ताकि वह और उसके उत्तराधिकारी अपने शरीर को अच्छी तरह से सुगंधित रख सकें।
कहां से आया इत्र नाम, मिले कई सबूत
इत्र, अतर और ओत्र अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है खुशबू। माना जाता है कि इत्र एक फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ सुगंध होता है। पुरातात्विक सबूत बताते हैं कि भारतीय प्रायद्वीप में रहने वाले लोगों ने पौधों को दबाकर, कूटकर डिस्टिलेशन प्रक्रिया से सुगंधित तेल बनाने की कला का ईजाद की थी। सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी चीजों में इत्र रखने के जार पाए गए हैं। यहां तांबे के बने हुए बड़े और भारी बर्तन भी मिले हैं। बताया जाता है कि इन बर्तनों का इस्तेमाल 5 हजार साल पहले इत्र बनाए जाने के लिए किया जाता होगा।
कितनी पुरानी है इत्र बनाने की प्रक्रिया?
भारत में इत्र बनाने की परंपरा हजारों साल पुरानी है। गुलाब जल को एक तरीके से इत्र की नई और पॉपुलर खोज माना जाता है। इसे मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां ने बनाया था। इत्र को बनाने के लिए खुशबूदार फूलों और पौधों को पानी या तेल में डुबोकर रखा जाता था जिससे धीरे-धीरे पौधे अपनी खुशबू पानी या तेल में छोड़ देते थे। बाद में इन पौधे या फूलों को निकाल दिया जाता था और इत्र तैयार हो जाता था। बता दें कि एक समय ऐसा भी था जब सिर्फ राजघराने के लोग ही इत्र का इस्तेमाल कर सकते थे।