देश के 3 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश से गुजरने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर पर्यावरण प्रेमी डरे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को एक फैसले में पर्यावरण मंत्रालय की एक सिफारिश को सही माना है। केंद्र सरकार की सिफारिश को मानते हुए अरावली की नई परिभाषा तय की गई है। अब केवल वे पहाड़ियां जो अपने आसपास के स्थानीय स्तर से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंची हैं, उन्हें ही 'अरावली हिल' माना जाएगा। अगर दो या दो से ज्यादा ऐसी पहाड़ियां एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में हैं तो उन्हें 'अरावली रेंज' कहा जाएगा। 700 किलोमीटर रेंज में फैली अरावली पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पर्यावरण विशेषज्ञ और कार्यकर्ता चिंतित हैं। उनका कहना है कि इस नई परिभाषा से अरावली का लगभग 90 फीसदी हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो इस इलाके में खनन और निर्माण शुरू होगा, जिसका असर यहां के इको सिस्टम सिस्टम और पर्यावरण पर पड़ेगा। देश के पर्यावरण प्रेमियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर चिंता जताई है। सोशल मीडिया पर #SaveAravalli हैशटैग ट्रेंड कर रहा है। लोग इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को बचाने की अपील कर रहे हैं।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले में क्या है?
जस्टिस चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) की कमेटी की सिफारिशें स्वीकार कीं थीं। कोर्ट ने अरावली की एकसमान परिभाषा तय करने का फैसला लिया लिया था, जिससे अलग-अलग राज्यों में अरावली की परिभाषा को लेकर कोई भ्रम न रहे।
यह परिभाषा MoEFCC की कमिटी की सिफारिश पर आधारित है, जो श्रृंखला के 90 फीसदी से अधिक हिस्से को संरक्षण से बाहर कर देगी। निचली पहाड़ियां, घास के मैदान और दर्रों में अब खनन का अधिकार मिल सकता है। यह साल 1992 की अरावली नोटिफिकेशन और 2021 की NCR 'नेचुरल कंजर्वेशन जोन अनाउंसमेंट' घोषणा को कमजोर करेगा।
अरावली रेंज का हाल क्या है?
हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में खनन व स्टोन क्रशिंग से अरावली का बड़े पैमाने पर क्षरण हुआ है।'पीपल फॉर अरावलीज' की मई 2025 की सिटिजन्स रिपोर्ट कहती है कि हरियाणा के कई जिलों में लाइसेंसी खनन ने दो अरब वर्ष पुरानी पारिस्थितिकी तबाह कर दिया है। अवैध खनन भी जारी है। नई मंजूरी के बाद अरावली का और क्षरण होना तय माना जा रहा है।
अरावली न होने से क्या होगा?
अरावली थार मरुस्थल की धूल भरी हवाओं को रोकती है। दिल्ली-NCR में धूल का कहर बढ़ता जा रहा है। अगर खनन जारी रही और 100 मीटर से निचली पहाड़ियां कटीं तो मरुस्थलीकरण तेज होगा, भूमिगत जल हाशिए पर पहुंचेगा। कई जगहों पर जल स्तर 1000 फीट से नीचे जा सकता है। अरावली के निचले हिस्से में प्राकृतिक जल के बड़े स्रोत हैं। अगर अरावली को काटा गया तो यही हिस्सा सूख जाएगा। कई जंतुओं के अस्तित्व पर भी संकट आएगा। कुछ इलाके वाटर रिचार्ज के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि अरावली प्रदूषण नियंत्रण और जैव विविधता के लिए जरूरी है। अरावली, तेंदुआ मोर, कई संकटग्रस्त जीवों का घर है। अरावली के न रहने पर इन जीवों के अस्तित्व पर संकट आएगा।
विशेषज्ञ क्यों चिंतित हैं?
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला अरावली के लिए 'डेथ वारंट' साबित हो सकता है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि अरावली की हजारों पहाड़ियों में से सिर्फ 8-10% ही 100 मीटर से ऊंची हैं। बाकी छोटी पहाड़ियां, पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं। उन्हें संरक्षण से बाहर कर दिया जाएगा। हरजीत सिंह, सतत संपदा क्लाइमेट फाउंडेशन ने कहा है कि यह फैसला उत्तर भारत की सांस लेने वाली उस जमीन को मिटा देगा जो कुओं को पानी देती है। कई पर्यावरण विदों का कहना है कि इस फैसले से अरावली का 7 से 8 फीसदी हिस्सा ही बचेगा। खेती, वन्य जीवन और आदिवासी समुदायों पर इसका असर पड़ेगा। अवैध खनन की वजह से राजस्थान में 31 पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। अब नई परिभाषा से खनन कंपनियों को फायदा हो सकता है।
दिल्ली के लिए जरूरी क्यों है अरावली?
दिल्ली की हवा को साफ रखने में अरावली 'ग्रीन लंग्स' की तरह काम करती है। अगर यह नष्ट हुई तो प्रदूषण, सूखा और बाढ़ जैसी समस्याएं बढ़ेंगी।
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अब आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को अरावली के लिए सस्टेनेबल माइनिंग प्लान बनाने का निर्देश दिया है। पर्यावरण कार्यकर्ता उम्मीद कर रहे हैं अरावली पर सरकार कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगी, जिसकी वजह से पर्यावरण पर खतरा मंडराए। #SaveAravalli कैंपने के समर्थन में सोशल मीडिया पर मुखर होकर लिख रहे हैं।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा:-
अरावली में जंगल हैं, शहर हैं, अभयारण्य हैं, किले बसे हुए हैं। अरावली में प्राकृतिक खनिज हैं, जो देश के विकास के लिए जरूरी हैं। हम अरावली का संरक्षण कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित खनन की बात कही है, जिससे पर्यावरण पर असर न पड़े। सुप्रीम कोर्ट ने केवल प्लान बताने के लिए कहा है।
अरावली पर विपक्ष ने क्या चिंता जताई है?
अशोक गहलोत, पूर्व सीएम, राजस्थान:-
अरावली कोई साधारण पहाड़ नहीं, बल्कि प्रकृति की बनाई 'ग्रीन वॉल' है। यह थार रेगिस्तान की रेत और गर्म लू को दिल्ली, हरियाणा व यूपी के खेतों तक आने से रोकती है। इसके जंगल NCR के फेफड़े हैं, जो धूल-आंधी और प्रदूषण को कम करते हैं। अरावली बारिश का पानी जमीन में भरकर भूजल बचाती है। अगर छोटी पहाड़ियां भी खनन से नष्ट हुईं, तो रेगिस्तान फैलेगा, गर्मी-पानी की भयानक समस्या होगी। सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अपील है कि अरावली को पर्यावरण के लिए बचा लें।
अरावली को लेकर कोर्ट और सरकारों का रुख क्या रहा है?
अरावली को संरक्षित रखने की कवायद 1990 से पहले ही हो रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने केवल स्वीकृत परियोजनाओं तक खनन सीमित करने के नियम बनाए हैं। इन नियमों कई बार उल्लंघन हुआ है। साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात जिलों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। मई 2024 में कोर्ट ने अरावली में नई खनन लीज तथा रिन्यू करने पर रोक लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सेंट्रल एम्पावर्ड कमिटी (CEC) को विस्तृत जांच का निर्देश दिया था, जिसकी सिफारिशें मार्च 2024 में सबमिट हुईं थीं।
सेंट्रल एम्पावर्ड कमिटी ने प्रस्ताव दिया, जिसमें सभी राज्यों में अरावली श्रृंखला का पूर्ण वैज्ञानिक मानचित्रण, खनन गतिविधियों मूल्यांकन, संरक्षित आवास, जल निकायों, टाइगर कॉरिडोर, प्रमुख एक्विफर रिचार्ज जोन और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में खनन पर कड़ाई से रोक शामिल थी।
स्टोन-क्रशिंग इकाइयों पर पाबंदी, मैपिंग और फिर से नई लीज को मंजूरी न देने की बात कही गई। ये सिफारिशें कोर्ट ने नवंबर 2025 के आदेश में अपनाईं। जून 2025 में केंद्र ने अरावली ग्रीन वॉल परियोजना शुरू की, जिसका मकसद गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के 29 जिलों में अरावली के 5 किमी बफर क्षेत्र में ग्रीन कवर को बढ़ाना है। सरकार ने कहा कि यह पहल 2030 तक क्षरण ग्रस्त जमीनों पर पेड़, अब तक हुए नुकसान की भरपाई करेंगे।
आदेश के बाद भी कैसे बच जाएगी अरावली, कौन से कानून बचाएंगे?
- अरावली की हिफाजत के लिए कई कानून देश में बनाए गए हैं। राज्यों के अपने-अपने कानून भी हैं, साथ ही केंद्रीय कानून भी हैं। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, भारतीय वन अधिनियम 1927, वन (संरक्षण) अधिनियम 1980, राजस्थान टेनेंसी एक्ट 1955 जैसे कानून अब तक अरावली को बचाते आए हैं। अरावली को संरक्षित करने के लिए साल 1992 में 'अरावली नोटिफिकेशन' जारी हुआ हुआ था। पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे जारी किया था। अलवर और गुरुग्राम जिले के संरक्षित क्षेत्रों में अवैध खनन गतिविधियों पर रोक लगाई गई थी।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत भी अरावली को संरक्षित मिलता है। वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत अरावली के वन क्षेत्रों में गैर-वन गतिविधियों के लिए केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति जरूरी है। अरावली में वन क्षेत्रों में खनन निलंबित तब तक नहीं हो सकता, जब तक इसकी विस्तृत विवेचना न हो। संरक्षित आवास, जल स्रोत, टाइगर कॉरिडोर और एक्विफर रिचार्ज जोन में खनन पर पूरी तरह से रोक है।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अरावली में प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए कई प्रावधान हैं। यह अधिनियम भी अरावली में अवैध खनन खनन और औद्योगिक गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय मंजूरी को अनिवार्य करता है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 भी अरावली के वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर और संरक्षित क्षेत्रों की सुरक्षा करते हैं। अगर जैव विविधता को खतरा है तो खनन पर प्रतिबंधित होगा। NCR के लिए 'नेचुरल कंजर्वेशन जोन' भी अरावली की हिफाजत करता है। यह हरियाणा और राजस्थान में भी लागू है।
कैसे ये कानून हिफाजत करेंगे?
अगर अरावली में इस तरह के व्यापक खनन को मंजूरी देनी होगी तो इन कानूनों में बदलाव की जरूरत पड़ेगी। कानून में बदलाव संविधान संशोधन से ही लाए जा सकते हैं। विपक्ष का बड़ा वर्ग पहले से ही इन कानूनों को लेकर ऐतराज जता रहा है। पर्वारणविदों से लेकर अरावली में रहने वाले लोगों तक ने इस फैसले के खिलाफ आक्रोश जाहिर किया है। सरकार ने भी खुलकर नहीं कहा है कि वह अरावली के लिए संविधान संशोधन तक करने के लिए तैयार है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि सरकार अरावली के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है।
