उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार सुबह आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की तस्वीर पर कलिख पोत दी। आंदोलनकारियों को लगा कि यह तस्वीर औरंगजेब की है। प्लेटफॉर्म की दीवारों पर सुंदर रंगों से पेटिंग की गई थी। इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति सम्मान के लिए बनाई गई इस तस्वीर को औरंगजेब की तस्वीर बताकर लोगों ने कलिख पोत दी।
हिंदू संगठनों ने दावा किया कि यह पेंटिंग औरंगजेब की है, न कि बहादुर शाह जफर की। रेलवे ने दीवारों को रंगने के आरोप में रेलवे एक्ट की धारा 147/166 के तहत केस दर्ज कर लिया है। हैरान करने वाली बात यह है कि जिस मुगल बादशाह को देश के लिए अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकने के जुर्म में रंगून भेजा गया, उनकी मौत भी वहीं हुई।
बहादुर शाह जफर ने आजादी की कीमत चुकाई थी। मुगल खानदान उनकी गिरफ्तारी के बाद बिखर गया था। जब 1857 का गदर असफल हुआ तो अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें भारत से निर्वासित कर दिया। उन्हें रंगून भेज दिया गया। उन्हें न पेंशन नसीब हुई, न ही वतन की मिट्टी। एक साधारण कैदी की तरह वे जेल की सलाखों में ही मर गए। उनकी मृत्यु 7 नवंबर 1862 को रंगून में हुई, और वहीं उन्हें एक गुमनाम सी कब्र में उन्हें दफनाया गया।
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बहादुर शाह जफर कैसे बने थे क्रांतिकारी?
बहादुर शाह जफर के नेतृत्व तले साल 1857 में भारतीय सिपाहियों ने गदर की जंग का ऐलान किया था। अंग्रेजों के खिलाफ भड़की क्रांति के वह प्रतीकात्मक नेता बन गए थे। जब 1857 में भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गदर की शुरुआत की तो उन्होंने उन्होंने बहादुर शाह जफर को दिल्ली में अपना बादशाह घोषित कर दिया था। तब तक बहादुर शाह जफर कमजोर पड़ गए थे। वह आखिरी मुगल बादशाह थे लेकिन नाम भर के। बस उनके नेतृत्व तले भड़के विद्रोह को एक बड़ी छत मिल गई था।
82 साल की उम्र में उनके नेतृत्व में गदर की चिंगारी भड़की। विद्रोहियों ने उन्हें अपना नेता माना तो अंग्रेज डर गए। बहादुर शाह जफर तब तक बेहद कमजोर हो चुके थे, वह किसी जंग का नेतृत्व कर पाने में सक्षम नहीं रह गए थे। विद्रोहियों की क्रांति की आग दिल्ली तक पहुंच गई थी। बहादुर शाह जफर का दरबार भी उन्हीं के नियंत्रण में था। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को बेहद कम दिनों में दबा दिया।
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अंग्रेज डर क्यों गए थे?
विद्रोहियों द्वारा उन्हें नेता मानने से अंग्रेजों को लगा कि वे ब्रिटिश सत्ता के लिए खतरा बन सकते हैं, भले ही उनकी उम्र और स्थिति ऐसी न थी कि वो खुद किसी युद्ध का नेतृत्व कर पाते। विद्रोही गुट दिल्ली दरबार तक पहुंच गए थे। उनका अंग्रेजों को लगा कि इस बगावत के कर्ता-धर्ता बहादुर शाह जफर हैं, उन्होंने बगावत कर ली है। अंग्रेजों ने 10 मई 1857 को भड़की क्रांति की चिंगारी को जुलाई 1857 तक खत्म कर दिया था। बादशाह को अब अंग्रेज फांसी की सजा देना चाहते थे। उन्हें गिरफ्तार किया गया। अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को फांसी देने की जगह निर्वासन की सजा दी। अंग्रेज उन्हें एक प्रतीकात्मक शासक मानते थे, न कि विद्रोह के मुख्य योजनाकार। 82 साल उम्र और खराब स्वास्थ्य से जूझ रहे बहादुर शाह को अंग्रेजों ने बख्श दिया। अंग्रेजों को इस बात का भी डर था कि उनकी फांसी से भारतीयों में और अधिक आक्रोश भड़क सकता था।
बादशाह निर्वासित हुए, बेटों को मारी गई गोली
विलियम डैलरिंपल अपनी किताब द लास्ट मुगल में 1857 के विद्रोह और बहादुर शाह जफर के परिवार के साथ हुए अत्याचारों का जिक्र किया है। बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने रंगून भेज दिया गया, जहां वे 1862 में मृत्यु तक कैद रहे। वहीं उनकी मौत हो गई। वह अपने कुटुंब के साथ गिरफ्तार हुए थे। बहादुर शाह जफर के दो बेटों को अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया। मिर्जा मुगल और मिर्जा खिजर सुल्तान को बुरी तरह मार डाला गया। बहादुर शाह के पोते मिर्जा अबू बक्र को अंग्रेज अधिकारी विलियम हॉडसन ने 22 सितंबर 1857 को दिल्ली के खूनी दरवाजे पर गोली मारकर हत्या कर दी।
कहां हैं बहादुर शाह जफर के वंशज?
द लास्ट मुगल के मुताबिक बहादुर शाह जफर के रिश्तेदारों को या तो मार दिया गया, जेल में डाल दिया गया, या उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई। कुछ परिवारजन गुमनामी में चले गए। उनके वंशजों का कोई स्पष्ट ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है। कोलकाता की रहने वाली सुल्ताना बेगम खुद को बेदार बख्त की वारिस बताती हैं, वे बहादुर शाह जफर के परपोते कहे जाते हैं। वह कोलकाता के हावड़ा इलाके की झुग्गियों में रहती हैं। अबीबुद्दीन तुसी भी खुद को मुगल वारिस बताते हैं। दिल्ली की पाकीजा बेगम भी बहादुर शाह जफर के वंशज फतेह मुल्क बहादुर की वंशज बताती हैं। यह सब अनुमान है, पुख्ता सबूत नहीं हैं कि कहां उनके वंशज, किस हाल में हैं।