ओडिशा इन दिनों खराब वजहों से चर्चा में है। बालासोर के फकीर मोहन कॉलेज के एक विभागाध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर एक छात्रा ने खुदकुशी कर ली थी। छात्रा बेहद गंभीर रूप से जख्मी हुई, उसे भुवनेश्वर के AIIMS में भर्ती कराया गया, 15 जुलाई 2025 को उसकी मौत हो गई। छात्रा के पिता ने कहा कि कॉलेज की आंतरिक कंप्लेंट समिति (ICC) ने गलत रिपोर्ट दी, जिसकी वजह से उनकी बेटी आत्महत्या के लिए मजबूर हुई। छात्रा का परिवार, न्याय मांग रहा है। पिता का कहना है कि इंटरनल कमेटी के सदस्य अपराधी हैं, सरकार उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। 

पक्ष हो या विपक्ष, हर किसी ने इस मुद्दे पर खेद जाहिर किया, दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की। इस विषय पर राजनीति भी खूब हुई। सवालों के घेरे में कॉलेज की इंटरनल कंप्लेट कमेटी आई। लोगों ने इस संस्था की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल खड़े किए और कहा कि ऐसी संस्थाओं का औचित्य क्या है, अगर महिलाओं को खुदकुशी करनी पड़े। छात्रा ने अपने विभागाध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, लेकिन कमेटी ने उसकी शिकायत ही नहीं सुनी, उसकी जांच के लिए आगे नहीं आई। पीड़िता के परिवार ने आरोप लगाया है कि समिति के सदस्य, शिकायतें सुनने के लिए प्रशिक्षित ही नहीं थे। कॉलेज और आंतरिक समिति का माहौल, आरोपी के पक्ष में था। 

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विशाखा गाइडलाइन को दरकिनार किया गया

सुप्रीम कोर्ट ने साल 1997 में विशाखा गाइडलाइन जारी की थी। राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी बाल विवाह रोकने के लिए लोगों को जागरूक करती थीं। एक बाल विवाह को उन्होंने रोकने की कोशिश की, जिसके बाद एक वर्ग विशेष के लोगों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था। विशाखा गाइडलाइन में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा तय की गई, कुछ दिशानिर्देश जारी किए गए थे।

गाइडलाइन क्या थी?

नियोक्ता सही समय सीमा के भीतर शिकायतों का निपटारा करें, एक तंत्र बनाएं। संस्था में इंटरनल कंप्लेट कमेटी हो, जिसका नेतृत्व महिला करे। समिति में महिलाओं की हिस्सेदारी कम से कम आधी हो, संगठन का प्रभाव, समिति पर न पड़े, इसके लिए एक तीसरे पक्ष को भी शामिल किया जाए, जो किसी भी पक्ष से प्रभावित न हो। बालासोर में छात्रा की खुदकुशी मामले में आरोप यह है कि आंतरिक समिति ने ही आरोपी का बचाव किया है, जो सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन है।  

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विशाखा गाइडलाइन क्या है?

  • गाइडलाइन के मुताबिक सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम बनाए जाएं
  • कार्यस्थल पर काम करने का उचित माहौल हो, यौन उत्पीड़न पर सख्त कार्रवाई की जाए
  • जांच पहले आंतरिक समिति करे, अगर दोष सच पाए जाएं तो आरोपी के खिलाफ आपराधिक केस चले
  • केस दर्ज कराने की जिम्मेदारी भी नियोक्ता की ही होगी
  • महिला की शिकायत पर जल्द से जल्द एक्शन लिया जाए
  • हर संस्थान में एक शिकायत समिति हो, जिसकी अध्यक्षता एक महिला करे
  • समिति के सदस्यों में आधे से ज्यादा महिलाएं हों
  • जांच समिति में एक सदस्य वह हो, जो निष्पक्ष हो, संस्थान का हिस्सा न हो 
  • शिकायत समिति वार्षित तौर पर सरकार को रिपोर्ट भेजे
  • संस्था समय-समय पर यौन अपराधों से जुड़े जागरूकता बैठकों का आयोजन करे

नोट: विशाखा गाइडलाइन, महज सुप्रीम कोर्ट का एक निर्देश ही नहीं है बल्कि कानूनी तौर पर बाध्य भी है। इसके उल्लंघन होने की दिशा में कोर्ट का रुख किया जा सकता है। विशाखा गाइडलाइंस के आधार पर ही साल 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 आया। यह अधिनियम भी लैंगिक समानता, यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून और भयमुक्त कार्यस्थल बनाने की बात कही गई है।

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इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी का संवैधानिक आधार क्या है?

महिला अधिकारों को लेकर मुखर एडवोकेट स्निग्धा त्रिपाठी के मुताबिक इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी एक वैधानिक समिति है। साल 2013 के  कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम पर यह आधारित है। इसे POSH एक्ट के तौर पर लोग जानते हैं। जिस भी संस्थान में 10 से अधिक कर्मचारी हों, वहां इस समिति का गठन अनिवार्य है। समिति का काम महिलाओं के खिलाफ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों का निपटारा है। कंप्लेंट कमेटी का नेतृत्व एक सीनियर महिला कर्मचारी करती है। समिति में आधी संख्या महिलाओं की होती है। एक तीसरा पक्ष भी होता है जो आमतौर पर या तो एनजीओ होता है, या कानून का जानकार होता है। उसका निष्पक्ष होना अनिवार्य है, वह संस्था या पीड़िता से जुड़ा नहीं होना चाहिए। 

कैसे काम करती है इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी?  

  • कोई भी पीड़ित महिला, यौन उत्पीड़न का शिकार होने के, 3 महीने के भीतर लिखित शिकायत दर्ज कर सकती है।  
  • इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी के पास  सिविल कोर्ट की शक्तियां होती हैं।
  • समिति को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रक्रिया पूरी करनी होती है।  
  • अगर शिकायत सही पाई जाती है, तो ICC कार्रवाई की सिफारिश करती है।

क्यों जरूरी है?  

  • ICC कार्यस्थल पर महिलाओं को सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल मिलता है।
  • यौन उत्पीड़न को रोकने और त्वरित समाधान में समिति मददगार होती है।  
  • सुप्रीम कोर्ट ने POSH Act के नियमों के न मानने को लेकर कई बार चिंता जताई है।