पृथ्वी स्थिर है। इसकी स्थिरता की वजह से ही सृष्टि है। पहाड़ हैं, समुद्र हैं, फसलों से लहलहाते खेत हैं, लबालब पानी से भरे तालाब हैं और जिंदा बस्तियां हैं। कुछ छोटे-बड़े मकान, दुकान, अस्पताल, होटल और संस्थान हैं, जिनके तले लोग सुरक्षित महसूस करते हैं। सिर पर छत है, धूप और बारिश से बचे हुए लोग कहते हैं कि ये दुनिया इंसानों ने बनाई है। इसी इंसानों की बसाई दुनिया में कई बार ऐसी प्राकृतिक आपदा आती है, जिसके बाद यही मानवीय निर्माण खलने लगते हैं और मन से आह निकलती है कि काश, इंसान भी जानवरों की तरह खुले आसमान के नीचे रहते, प्रकृति की छाया में सांस लेते तो कम से कम जिंदा तो रहते। साल 2001, गुजरात के कच्छ का विनाशकारी भूकंप क्या ही कर लेता, अगर लोग आदिम होते, बहुमंजिला इमारतें न होतीं, घासफूस के घर होते या नहीं होते।
घटनाएं, काश कहने का मौका नहीं देतीं। ये तारीख याद कर लीजिए, बेहद कातिल तारीख है। 26 जनवरी 2001 को पूरा देश धूम-धाम से गणतंत्र दिवस मना रहा था। स्कूल से लेकर अस्पताल तक, देशभक्ति के गाने बज रहे थे। गणतंत्र का उत्सव मन रहा था लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि पूरे देश में मातम पसर गया। ऐसी त्रासदी देश ने कभी नहीं देखी थी। धरती कांप गई थी, लोगों के हलक सूख गया था और ऐसी तबाही मची थी, जिसके बारे में याद करके आज भी लोग कांप जाते हैं।
ऐसी मची तबाही, जमीन में दबते गए हजारों लोग
घड़ी की सुइयां, जैसे ही सुबह 8.45 पर पहुंची, अचानक धरती कांपने लगी। इमारतें डगमगाने लगीं। लोगों को कई सेकेंड्स तक यह समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है, अगले कुछ सेकेंड्स में वे लोग इमारतों से भागने की सोच पाते, इससे पहले ही वे तबाह कंक्रीट में दब चुके थे या मर चुके थे। गुजरात के कच्छ में आए भूकंप ने जो किया था, उससे उबरने में कई साल लग गए। शहर कब्रिस्तान में तब्दील हो गया था। उस दौर की पत्रिकाओं में छपी तस्वीरें ऐसी हैं, जिन्हें आप देख तक नहीं सकते हैं। कच्छ शहर में कई अस्पताल थे। इन्हीं अस्पतालों में से एक अस्पताल जीके जनरल अस्पताल भी था। यहां 200 से ज्यादा मरीज भर्ती थे, जिनका इलाज चल रहा था, तभी भूकंप आया और 200 से ज्यादा लोग दब कर मर गए।
कच्छ में कितने लोग मरे, इसके सरकारी आंकड़े भी इतने डरावने हैं, जिन्हें जानकर आप डर जाएंगे। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि भूकंप की वजह से करीब 13,805 लोग मारे गए थे। सबसे ज्यादा मौतें कच्छ में हुई थीं। हादसे में कुच 3,743 पुरुष, 5184 महिलाएं, 4878 बच्चे मारे गए थे। अहमदाबाद में 752, आणंद में 2, बनासकंठा में 32, भरूच में 9, भावनगर में 4, गांधीनगर में 8, कच्छ में 12,221, नवसारी में 17, पाटान में 38, पोरबंदर में 10, राजकोट में 429, सूरत में 46, सुरेंद्रनगर में 110 और वडोदरा में 1 मौत हुई थी।
कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि भूकंप में करीब 20,000 लोग मारे गए थे, वहीं 1,50,000 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। हजारों लोग ऐसे जो इस हादसे के बाद अपंग हो गए थे। हादसे में करीब 6,00,000 लोग बेघर हो गए थे। एक पूरा जिंदा शहर, कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया था। शहर की गलियां लाशों और घायलों से पट गई थीं। कई लोग जख्मी होकर दम तोड़ चुके थे, कई लोग जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे थे। 7।7 रिक्टल स्केल का यह भूकंप सब कुछ जमींदोज कर चुका था।
भूकंप से कितनी संपत्ति का नुकसान हुआ था?
कच्छ के भूकंप पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट की ओर से प्रकाशित किताब 'द कच्छ अर्थक्वेक 2001' में गुजरात हादसे से जुड़ी जानकारियां शेयर की गई हैं। यह संस्थान, गृहमंत्रालय के आधीन आता है। इस किताब को प्रमोद कुमार मिश्र ने लिखा है। यह हादसा इतना भयावह था कि वैश्विक संस्थाओं ने भारत से अनुरोध किया था कि उन्हें भी मदद करने की इजाजत दी जाए। सरकार ने मदद नहीं मांगी थी लेकिन वैश्विक अनुरोध के बाद भारत ने इजाजत दे दी थी। ऑफिस ऑफ द कॉर्डनेशन ऑफ ह्युमैनिटेरियन अफेयर्स (OCHA) के सदस्य 27 जनवरी 2001 को अपने दल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे। उनके साथ संयुक्त राष्ट्र की कई प्रतिनिधि पहुंचे।
किस इलाके में मची थी कितनी तबाही?
भुज और कच्छ में कई अंतराष्ट्रीय स्तर के एनजीओ भी पहुंचे। सरकार ने भी युद्धस्तर पर काम करना शुरू किया। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, यूक्रेन, तुर्की, स्विट्जरलैंड, पोलैंड, इटली, स्पेन, इजरायल, जर्मनी, फ्रांस, डेनमार्क और बुल्गेरिया जैसे देशों से बचावकर्मी आए और हिंदुस्तानी सरकार की मदद में उतर पड़े। भूकंप की वजह से कुल 7633 गांव प्रभावित हुए थे, वहीं 28,039,538 लोगों को विस्थान का दर्द झेलना पड़ा था। सरकार के सर्वे में यह बात सामने आई थी कि राजकोट के 62 गांव तबाह हुए थे, कच्छ के 335, सुरेंद्र नगर के 13, जामनगर के 26 गांव प्रभावित हुए थे। इन गांवों में 70 प्रतिशत तक तबाही मच गई थी।
हादसे में कुल कितना नुकसान हुआ है, इसकी पड़ताल एक संयुक्त आंकलन करने वाली टीम ने 23 फरवरी 2001 को एक आंकड़ा प्रकाशित किया। इसमें दावा किया गया कि 400000 घर ध्वस्त हुए, 800000 घर आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त हुए। एक आंकलन के मुताबिक घरों के विनाश होने की वजह से करीब 5,166 करोड़ का नुकासन हुआ था। गुजरात सरकार ने 10,000 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान जताया था।
एक हादसे ने सब बदलकर रख दिया
जो लोग बेघर हुए, उन्हें सामिजक तौर पर विस्थापित रहना पड़ा, मानसिक त्रासदी से गुजरना पड़ा। वजह वे आलिशान घरों में शान की जिंदगी जी रहे थे, अचानक बेघर हो गए थे। भूकंप के बाद इस इलाके का स्वास्थ्य विभाग बुरी तरह से प्रभावित हुआ था। भुज और गांधीधाम में करीब 21 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर तबाह हो गए थे। 48 प्राइमरी हेल्थ सेंटर और 227 सब सेंटर मिट गए थे। 800 आंगनबाड़ी, 96 आर्युवेदिक डिस्पेंसरी और ऐसे ही कई जरूरी परिसंपत्तियों को नुकसान पहुंचा था। करीब 279 करोड़ रुपये की संपत्तियों को नुकासन पहुंचा था। शिक्षा, स्वास्थ्य, डैम, सार्वजनिक इमारतों और पॉवर सेक्टर को भी बड़ा नुकसान पहुंचा था। ट्रांसपोर्ट इन्फ्रास्टक्चर भी ध्वस्त हो गया था। कई जगह हाइवे धंस गए थे, जमींदोज हो गए थे। सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे बन गए थे। जमीनें धंस गई थीं। टेलीकम्युनिकेशन सेंटर को भी नुकसान पहुंचा था। इसके अलावा भी कई सेक्टर को नुकसान पहुंचा था। गुजरात सरकार के आंकड़ों के मुताबिक राज्य को कुल 10,067 करोड़ रुपये की धनहानि हुई थी।