यमुना के घाट, चांदनी रात, सफेद संगमरमर से तराशा गया एक विशाल महल, जिसकी खूबसूरती लफ्जों से जाहिर न हो पाए। उस इमारत का नाम ताजमहल है। कभी आपने सोचा है कि फिर कोई दूसरा ताजमहल क्यों नहीं बन पाया? नायाब चीजें, सिर्फ दुनिया में एक बार बनती हैं। दुनिया में एक पीसा की मीनार है, एक आइफिल टावर है, एक स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी है और एक ही ताजमहल भी है। ऐसी ऐसी कलाकृतियां हैं कि इनकी नकल तो खूब हुई लेकिन इनके आसपास भी कोई नहीं ठहर पाया।
मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था। एक और मुगल बादशाह ने सोचा कि क्यों न अपने दादा की तरह मैं भी अपनी बेगम की याद में कुछ ऐसा कर जाऊं से आने वाली पीढ़ियां याद रखें। उसने कोशिश तो की लेकिन ताजमहल नहीं बना पाया। इतिहासकारों ने उसके इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को 'ताजमहल की फूहड़ नकल' कहा। देश के लोग इस इमारत को बीवी का मकबरा के नाम से जानते हैं। शाहजहां के पोते शहजादे आजम शाह को न जाने क्या सूझी कि उसने अपनी मां दिलरास बेगम की याद में बीबी का मकबरा बनवा दिया। इस मकबरे का निर्माण साल 1651 से 1661 के बीच हुआ था।
बनवाना था ताजमहल, बन गई फूहड़ नकल
आजम शाह ने सोचा था कि अपने दादा की बनवाई इमारत ताजमहल को टक्कर देंगे लेकिन ये प्लान ही फ्लॉप हो गया। लोग इसे गरीबों का ताजमहल कहने लगे। यह तापमजल की बुरी नकल थी। शाही खजाने से इस इमारत के लिए भी आजम शाह ने खूब पैसे निकाले लेकिन इसकी कारीगरी वैसी नहीं हो पाई, जैसी ताजमहल की थी। इमारतें, गुंबद, मीनारें वैसी की बनाई गईं जैसी ताजमहल की थीं। सामने फव्वारा और नहर भी बनाने की कोशिश हुई लेकिन एक बुरी इमारत बन पड़ी।
दक्कन का ताजमहल
बीवी का मकबरा बना तो ठीक था लेकिन इसकी तुलना ताजमहल से भारी पड़ी। ताजमहल के पीछे यमुना थी, सुंदर नाजारा था, शाहजहां का विस्तारित राजकोष और दुनिया के नायाब कारीगर साथ थे। आजम के पास ऐसा कुछ नहीं था। ताजमहल सी मिलती जुलती संरचना होने की वजह से लोगों ने इसे दक्कन का ताजमहल कह दिया।
कैसा है बीबी का मकबरा?
बीबी के मकबरे का आकार 458 मीटर चौड़ा और 275 मीटर सीध में है।महल के चारों कोने पर मीनारे हैं, सामने एक नहर जैसी आकृति है, जो फव्वारे की शक्ल में है। आसपास पैदल चलने के लिए राह है। ये सड़कें पत्थरों से बनाई गई हैं। तीन तरफ से रास्ता, बीवी के मकबरे तक जाता है। यह दूर से ही नजर आता है। इमारत के बीचोबीच बीबी का मकबरा है।
कारीगरी के लिहाज से ये इमारत ठीक है लेकिन इसकी तुलना ताजमहल से लोग करने लगते हैं, तब से बेकार नजर आती है।
एक तरफ ताजमहल का हर हिस्सा, सफेद संगमरमर से बना है, वहीं दूसरी तरफ इस इमारत के गुंबद को छोड़कर बाकी सारे हिस्से, प्लास्टर से बनाए गए हैं, इनमें चमक तो है लेकिन वैसी खूबसूरती नहीं है। सदियों बाद अब ये धूमिल पड़ रहा है। बीबी का मकबरा बनाने के लिए शाही खजाने से करीब 700000 रुपये खर्च हुए थे। तब के लिहाज से भी ये लागत, ताजमहल की लागत से कई गुना कम था।
कला के प्रति उदासीन था औरंगजेब
औरंगजेब राज्य विस्तार और लड़ाइयों में ही लगा रहता था। कला और संस्कृति के प्रति उसका रुझान शून्य था। उसके राज्य में बनी इस इमारत पर उसका ध्यान जरा भी नहीं था। वह इस्लामिक गतिविधियों में व्यस्त रहता था। जब उसके बेटे ने मकबरा बनाने की इच्छा जाहिर की तो वह समर्थन में नहीं था। उसने राजस्थान से संगमरमर लाने पर ही रोक लगा दी थी।
आजम शाह ने ये ठान लिया था कि वह बनाकर ही रहेगा। बेटे की जिद के आगे औरंगजेब को हार जाना पड़ा।
जब हुई मकबरे को उखाड़ने की कोशिश, डर गया निजाम
ऐसी किवदंति है कि जब निजाम सिकंदर जहां ने औरंगाबाद और मराठा साम्राज्य पर अधिकार कर लिया, तब उसे अचानक बीबी का मकबरा बहुत पंसद आया। उसने सोचा कि वह इसे अपनी राजधानी हैदराबाद लेकर जाएगा। उसने इसे तोड़ने का आदेश भी दे दिया। जाने किसने उससे यह कह दिया कि अगर मकबरे को तोड़ा तो कुछ विनाशकारी होगा, वह डर गया। अपने पाप के प्रायश्चित के लिए उसने बीवी के मकबरे के पश्चिमी हिस्से में एक मस्जिद भी बनवा डाली। तब से लेकर अब तक बीबी का मकबरा वैसे ही खड़ा है। स्थानीय लोग इसे देखने जाते हैं।