दिल्ली में यमुना नदी का बहुत छोटा हिस्सा है, इसके बाद नदी में सबसे ज्यादा प्रदूषण यही शहर डालता है। तमाम प्रोजेक्ट चल रहे हैं ताकि यमुना को साफ किया जा सके लेकिन हर साल यमुना नदी में झाग ही तैरती दिखती है। कई इलाके ऐसे भी हैं जहां यमुना के किनारे खड़े होने पर भी तेज दुर्गंध आती है। हकीकत यह है कि दर्जनों नाले नदी में गिरते हैं। नियमों के मुताबिक, इन नालों का पानी साफ करके ही नदी में डाला जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए कई सारे प्लांट भी हैं लेकिन न तो प्लांट अपना पूरा काम कर पा रहे हैं और न ही यमुना में गिरने वाले ये नाले साफ हो रहे हैं। ये नाले यमुना में बहुत सारा पानी हर दिन गिराते हैं जिसके चलते यमुना नदी दिल्ली की सीमा पार करते-करते प्रदूषण मापने के हर पैमाने पर फेल हो जाती है। दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी (DPCC) की हालिया रिपोर्ट दिखाती है कि 17 नाले ज्यादातर पैमानों पर खरे नहीं उतरते और यमुना नदी को प्रदूषित करते हैं।
DPCC हर महीने यमुना नदी में प्रदूषण की स्थिति, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, ग्राउंड वाटर और नालों के प्रदूषण की स्थिति जारी करता है। दिसंबर महीने की जो रिपोर्ट सामने आई है वह दिखाती है कि नालों में प्रदूषण का स्तर कितना ज्यादा है। नालों के प्रदूषण की स्थिति मापने के लिए टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (TSS), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD) और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) को मापा जाता है। DPCC के मुताबिक, 17 में से सिर्फ एक नाला ऐसा है जो TSS के मानक पर खरा उतरता है।
क्या है TSS, BOD और COD?
TSS का मतलब है पानी में घुली हुई गंदगी। BOD का मतलब ऑक्सीजन की वह मात्रा जो ऑर्गनिक चीजों को पानी में गला सकती है। वहीं, COD पानी की उस क्षमता को दिखाता है कि वह कितनी ऑक्सीजन लेकर किसी ऑर्गैनिक चीज को खत्म करने के लिए काम कर सकता है। यानी पानी साफ रहे इसके लिए इन तीनों का अपने मानकों का पालन करना जरूरी है। हालांकि, नाले और नदी के लिए इन तीनों के मानक अलग-अलग होते हैं।
नाले के लिए TSS अधिकतम 100 तक हो सकता है जबकि नदी के लिए 5 से 10 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। दिल्ली में यमुना नदी या मुख्य नालों में गिरने वाले अन्य नालों में से सिर्फ सरिता विहार ब्रिज के पास गिरने वाला नाला ही ऐसा है जिसका TSS 92 है। नजफगढ़ नाले का TSS 104, शाहदरा ड्रेन का 164, जैतपुर ड्रेन का 148 और कैलाश नगर ड्रेन का 140 है।
BOD, COD का बुरा हाल
नालों के लिए COD का स्तर 250 और BOD का स्तर 30 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। इन दोनों का ही स्तर ज्यादा होने का मतलब है कि पानी बेहद प्रदूषित है। दिल्ली में यमुना में गिरने वाले 17 नालों में से एक भी नाला ऐसा नहीं है जिसका BOD 30 से कम हो। शाहदरा ड्रेन का BOD 120, नजफगढ़ ड्रेन का 78, जैतपुर ड्रेन का 103 तो बारापुला ड्रेन का 90 है।
COD के मामले में स्थिति थोड़ी बेहतर है। 17 में से सिर्फ 4 नाले ही ऐसे हैं जिनमें COD का स्तर 250 मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे ज्यादा है। प्रदूषण का यह स्तर दिखाता है कि आखिर दिल्ली में प्रवेश करने से पहले और निकलने के बाद यमुना में प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा क्यों बढ़ जाता है।
यमुना की स्थिति क्या है?
यमुना का प्रदूषण मापने के लिए BOD और COD के अलावा घुली हुई ऑक्सीजन (DO) और फीकल कॉलीफोर्म को भी मापा जाता है। नदी में BOD का स्तर 3 मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे कम, DO का स्तर 5 मिलीग्राम या उससे ज्यादा और फीकल कॉलीफॉर्म का स्तर मानक तौर पर 500 या अधिकतम 2500 होना चाहिए।
DPCC की दिसंबर की रिपोर्ट के मुताबिक, यमुना नदी दिल्ली में पल्ला से प्रवेश करती है तो उसमें DO की मात्रा 6.1 थी। वजीराबाद में 5.3 हुई और आगे की सभी जगहों की मात्रा खत्म हो गई। यानी पानी में ऑक्सीन की मात्रा शून्य है। इसी तरह BOD 3 से ज्यादा होना नहीं चाहिए लेकिन पल्ला में ही इसका स्तर 4 था। असगरपुर में शाहदरा ड्रेन के यमुना में गिरने के बाद BOD का स्तर 70 तक पहुंच जाता है जो कि बेहद खतरनाक है।
फीकल कॉलीफॉर्म ऐसे बैक्टीरिया की मात्रा दिखाता है तो इंसान या जानवर के मल में पाए जाते हैं। पल्ला में इसकी मात्रा 1200 थी, वजीराबाद में 3300 और आईएसटी ब्रिज के पास बढ़कर 6.4 लाख हो गई। फीकल कॉलीफॉर्म की यही मात्रा असगरपुर में 84 लाख को पार कर जाती है जो दिखाता है कि यमुना में प्रदूषण का स्तर कितना ज्यादा है।
पल्ला से लेकर असगरपुर तक के बीच यमुना में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जाता है और इसी के बीच ये 17 नाले भी गिरते हैं जो दिखाते हैं कि यमुना में प्रदूषण की वजह यही नाले ही हैं। अगर इन नालों में बहने वाले पानी को ही थोड़ा और साफ किया जा सके तो शायद यमुना का पानी और साफ हो सकता है।