दिल्ली हाई कोर्ट ने 'पर्सनैलिटी राइट्स' को लेकर एक अहम फैसला दिया है। मामला ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव से जुड़ा था। इसे लेकर हाई कोर्ट ने एक 'जॉन डो ऑर्डर' पास किया है, जिसके बाद अब कोई भी प्लेटफॉर्म किसी भी मीडियम के जरिए उनकी आवाज, चेहरा, पहनावा या किसी भी तरीके से उनकी पहचान का बिना इजाजत का इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जरिए इस्तेमाल करने पर भी रोक है। 


जस्टिस सौरभ बनर्जी ने यह फैसला जग्गी वासुदेव की उस याचिका पर दिया है, जिसमें उन्होंने AI के जरिए उनकी आवाज और वीडियो में बदलाव करके उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर रोक लगाने की मांग की थी। 


जस्टिस बनर्जी ने कहा, 'समय बीतने के साथ जो कानून की स्थिति बनी है, वह दिखाती है कि एक व्यक्ति के अधिकारों को तेजी से विकसित हो रही तकनीक की इस दुनिया में महत्वहीन नहीं बनाया जा सकता है।'

 

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क्या है कोर्ट का पूरा फैसला?

हाई कोर्ट ने इसे लेकर 'जॉन डो ऑर्डर' पास किया है। यह एक कानूनी आदेश है, जो अज्ञात व्यक्तियों या संस्थाओं के खिलाफ जारी किया जाता है। इसे तब जारी किया जाता है, जब यह साफ तौर पर तय नहीं होता कि अपराधी कौन है?


कोर्ट ने माना कि सद्गुरु जग्गी वासुदेव के पर्सनैलिटी राइट्स काफी अनोखे हैं और विवादित सामग्री न केवल उनके पर्सनैलिटी राइट्स का उपयोग कर रही थी बल्कि उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर व्यावसायिक लाभ के लिए भी उनकी तस्वीरों, आवाज और वीडियो को एडिट करने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया था।


हाई कोर्ट ने कहा, 'अगर इन सबको इसी तरह जारी रहने दिया गया तो यह महामारी की तरह फैल जाएगा, जिसके व्यापक नतीजे होंगे। अगर इसे अभी नहीं रोका गया तो यग जंगल में आग की तरह फैल जाएगा और इसे बुझाने के लिए शायद ही कोई पानी बचेगा।'


जस्टिस बनर्जी ने कहा कि 'सद्गुरु की वैश्विक आध्यात्मिक गुरु के रूप में विशिष्ट स्थिति को देखते हुए उनकी छवि का गलत उपयोग न केवल उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि उनके अनुयायियों और आम जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचा सकता है।' इसके साथ ही कोर्ट ने उन यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया अकाउंट्स को निलंबित करने का आदेश भी दिया है, जो उनकी छवि का गलत उपयोग कर रहे हैं।

 

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AI के दौर में बढ़ रहा पर्सनैलिटी राइट्स का उल्लंघन!

आमतौर पर सेलेब्रिटीज और मशहूर हस्तियों के पर्सनैलिटी राइट्स होते हैं, ताकि कोई भी उनकी इजाजत के बगैर उनकी आवाज, चेहरे या पहचान का गलत इस्तेमाल न कर सके। आज की AI दुनिया में पर्सनैलिटी राइट्स के उल्लंघन के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछल साल डीपफेक वीडियो भी चर्चा में आए थे, जिनमें कई सेलेब्रिटीज की तस्वीरों की इस्तेमाल कर फर्जी वीडियो प्रसारित किए जा रहे थे।


पिछले साल मई में हॉलीवुड एक्ट्रेस स्कारलेट जॉनसन ने ChatGPT बनाने वाली OpenAI के खिलाफ एक लीगल केस दायर किया था। इसमें उन्होंने ChatGPT के नए AI मॉडल में आवाज इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। उनसे पहले मशहूर हस्तियों ने भी OpenAI पर उनके कॉपीराइट क्रिएटिव और पर्सनैलिटी राइट्स का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।

 

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पर्सनैलिटी राइट्स होता क्या है?

हर व्यक्ति की अपनी एक खास आवाज, पहचान, चेहरा और कुछ खास चीजें होती हैं। यह व्यक्ति की पहचान से जुड़े होत हैं. यह व्यक्ति की पर्सनैलिटी भी बताती है। इसे प्रोटेक्ट करने के लिए ही पर्सनैलिटी राइट्स होते हैं। कई मामलों में कुछ लोग और संस्थाएं बिना व्यक्ति की इजाजत के उनकी आवाज, चेहरे या पहचान से जुड़ी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, जिसे पर्सनैलिटी राइट्स का उल्लंघन माना जाता है।


2012 में अमिताभ बच्चन और जया बच्चन ने तनिष्क ज्वेलरी के लिए विज्ञापन किया था। इसके बाद रामकुमार ज्वेलर्स ने भी उनकी तस्वीरों का इस्तेमाल अपने विज्ञापन के लिए किया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे पर्सनैलिटी राइट्स का उल्लंघन माना था और कहा था कि कोई भी किसी की पहचान का व्यावसायिक उपयोग उनकी सहमति के बिना नहीं कर सकता। साल 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अमिताभ बच्चन की तस्वीर, नाम, आवाज और उनकी विशेषता बताने वाली किसी भी चीज के इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी थी।


अनिल कपूर ने भी दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने उनकी छवि, आवाज और लोकप्रिय डायलॉग जैसे 'झकास', 'लखन', 'मजनू भाई' और 'नायक' के अनधिकृत उपयोग को रोकने की मांग की थी। जैकी श्रॉफ ने भी पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी पर्सनैलिटी राइट्स को लेकर याचिका दायर की थी।

 

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कानून क्या है इसे लेकर?

भारत में पर्सनैलिटी राइट्स और उनके प्रोटेक्शन को लेकर कोई कानून नहीं है। हालांकि, इस तरह के मामलों को इंटेलैक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स और राइट टू प्राइवेसी से जोड़कर देखा जाता है।


राइट टू प्राइवेसी किसी व्यक्ति की निजता के अधिकारों की रक्षा करता है। जबकि, इंटेलैक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स में कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेंट और डिजाइन जैसे अधिकार शामिल हैं।


जैकी श्रॉफ मामले में फैसला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा था, 'व्यावसायिक मकसद के लिए व्यक्ति की विशेषताओं को अनधिकृत उपयोग न केवल इनके अधिकारों का उल्लंघन करता है बल्कि सालों से कड़ी मेहनत से बनाई गई ब्रांड इक्विटी को भी कमजोर करता है।'


2010 में सिंगर दलेर मेहंदी ने भी ऐसे ही एक मामले को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि कुछ गिफ्ट हाउसेस में ऐसी डॉल्स बेची जा रहीं हैं, जो उनकी नकल कर रहीं हैं और उनके गाने गा रहीं हैं। इस पर कोर्ट ने राहत देते हुए कहा था कि दलेर मेहंदी की पहचान के व्यावसायिक उपयोग का मकसद अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाना था।


जब भी पर्सनैलिटी राइट्स का मामला आता है, तो ज्यादातर मामलों में अदालतें 'जॉन डो ऑर्डर' जारी करती हैं, ताकि सभी को उस व्यक्ति की पर्सनैलिटी से जुड़ी चीजों को इस्तेमाल करने से रोका जा सके।