3 जुलाई 1991। नॉर्थ ब्लाक में पीएम ऑफिस में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव अपनी कुर्सी पर बैठे थे। सामने बैठे थे नए नवेले वित्त मंत्री मनमोहन सिंह। दोनों के बीच शांत लेकिन बेहद गर्म चर्चा रही थी। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री राव को समझा रहे थे कि रुपये का डिवैल्युएशन करना देश के लिए बेहद जरूरी है। राव इस फैसले को रोकना चाह रहे थे। चर्चा खत्म होती है। मनमोहन दफ्तर से बाहर निकलते हैं। उनके हाथ में एक सफेद लिफाफा होता है। वो प्रधानमंत्री के निजी सचिव के दफ्तर की ओर मुड़ जाते हैं। उन्हें जाकर ये लिफाफा थमाते हैं और कहते हैं इसे प्रधानमंत्री के निजी कोष तक पहुंचा दिया जाए और चुपचाप वहां से निकल जाते हैं।
मनमोहन सिंह ने उस दिन जो काम किया था, वो काफी साहसिक काम था। उसे सार्वजनिक कर वो बड़ा पॉलिटिकल फायदा उठा सकते थे लेकिन कभी उन्होंने इस बारे में किसी से बात नहीं की। दशकों बाद उस वक्त पीएम के निजि सचिव रहे रामू दामोदरनन ने एक इंटरव्यू में इसका खुलासा किया। बताया कि आखिरकार उस दिन मनमोहन सिंह ने बंद लिफाफे में क्या दिया था।
21 जून 1991। देश में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह होता है। नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बनते हैं। और वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी मिलती है मनमोहन सिंह को। नई सरकार के पास सबसे बड़ा चैलेंज देश की अर्थव्यवस्था को संभालने का होता है। हालत इतनी खराब थी कि देश के पास सिर्फ 2 हफ्तों की खरीददारी के लिए डॉलर्स बचे थे। ऐसे में नए नवेले वित्त मंत्री एक बोल्ड फैसला लेते हैं। रुपए के डिवैल्युएशन का। डिवैल्यूएशन को हिंदी में कहते हैं अवमूल्यन। अगर आज 1 डॉलर की कीमत 85 रुपए है लेकिन अगर वो 90 रुपए हो जाए। तो इसे कहेंगे रुपए का डिवैल्युएशन। अभी ये इंटरनेशनल मार्केट से मैनेज होता है। पहले सरकार इसे खुद से मैनेज करती थी। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय संभालते ही जो सबसे पहला फैसला लिया। वो यही था।
मनमोहन सिंह ने ऐसा क्या किया था?
RBI ने 1 जुलाई को रुपए के दाम 7% गिरा दिए। दो दिन बार 3 जुलाई को 11%। लेकिन प्रधानमंत्री राव रुपए की वैल्यू दूसरी बार गिराने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने सुबह सुबह वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को फोन किया। कहा दूसरा डिवैल्यूएशन रोक दो। मनमोहन सिंह ने RBI के डिप्टी गर्वनर को फोन मिलाया। लेकिन डिप्टी गर्वनर ने बताया कि आधे घंटे पहले ही डिवैल्यूएशन किया जा चुका है। मनमोहन ने फोन कर राव को ये सूचना दी।
इसी बारे में बात करने मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे। दोनों के बीच चर्चा हुई। मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री को समझाया कि कैसे ये डिवैल्युएशन देश की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाएगा। बातचीत खत्म होती है और मनमोहन सिंह बाहर निकल कर रामू दामोदरनन को वह सफेद लिफाफा थमा जाते हैं।
लिफाफे में क्या था?
इस सफेद लिफाफे का कनेक्शन स्विटजरलैंड की राजधानी जिनेवा से था। साल 1987 से 1990 तक, तीन सालों के लिए मनमोहन सिंह ने जिनेवा में काम किया था। यहां वे इकोनॉमिक पॉलिसी बेस्ड एक थिंक टैंक, साउथ कमीशन के लिए काम करते था। वो वहां महासचिव के पद पर थे। जिसकी सैलरी उन्हें उनके विदेशी बैंक अकाउंट में दी जाती थी।
रामू दामोदरनन ने इकोनॉमिक्स टाइम्स को दिए इंटरव्यू में बताया था कि मनमोहन सिंह ने जिनेवा में तीन सालों तक अपनी सैलरी का बड़ा हिस्सा बचाया था। जो उस विदेशी बैंक अकाउंट में जमा था। जाहिर था ये विदेशी करेंसी थी। अब हुआ यूं कि जब बतौर वित्त मंत्री उन्होंने रूपये का डिवैल्यूएशन किया। उनके अकाउंट में जमा राशि का रूपये में मूल्य बढ़ गया। इस मामूली फायदे को भी उन्होंने अनैतिक समझा। इसलिए जितने रूपये बढ़े थे, उसका एक चेक काटा। और रामू दामोदरन को बंद लिफाफे में सौंप दिया। कहा कि इसे प्रधानमंत्री के दान कोष में जमा करा दें। रामू दामोदरन ने ये तो नहीं बताया कि वो चेक कितने रुपयों का था। लेकिन इतना जरूर बताया कि ये बहुत बड़ा अमाउंट था।
रामू दामोदरनन ने कहा कि हो सकता है बाद में उन्होंने इसकी जानकारी प्रधानमंत्री राव को दी होगी लेकिन कभी उन्होंने इसके बारे में सार्वजनिक तौर पर बात नहीं की। वो इसका किसी मीडिया से प्रचार कर अच्छा पॉलिटिकल माइलेज ले सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया।
अगस्त 2019 में आखिरी बार राज्यसभा के लिए जब उन्होंने नामांकन दाखिल किया था। तब उन्होंने अपनी कुल संपत्ति का ब्यौरा दिया था। बताया था कि उनके पास कुल मिलाकर 15 करोड़ 77 लाख की संपत्ति थी। जो बैंक अकाउंट में जमा पैसे, उनके घर की कीमत, उनके पास मौजूद गोल्ड की मिला जुला कर टोटल वैल्यू थी।