दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी एक ही बार सरकार बना पाई है। इस पांच साल की सरकार में उसने तीन मुख्यमंत्री बनाए। इन तीन में से दूसरे सीएम साहिब सिंह वर्मा उन दिनों पद मुख्यमंत्री के पद पर थे। सुबह-सुबह मिली एक सूचना ने उन्हें और उनकी सरकार को सन्न कर दिया था। आज दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के लिए मशहूर वजीराबाद इलाके में यमुना नदी पर बने पुराने पुल पर एक हादसा हो गया था। मुख्यमंत्री समेत तमाम अधिकारियों को सूचना मिली कि एक स्कूल बस नदी में गिर गई। स्कूल बस में सैकड़ों बच्चे थे जिसके चलते सरकार के हाथ-पैर फूल गए। आनन-फानन में सरकारी महकमा वजीराबाद की ओर भागा और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ।
हालांकि, आग और पानी से कहां ही कोई बच पाया है। बस गिरनी के सूचना मिली तो यमुना किनारे की झोपड़ियों में रहने वाले लोग नदी में कूद पड़े। जान जोखिम में डालकर 10 से ज्यादा बच्चों को तुरंत बचा लिया गया। शाम तक जब रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म हुआ तो 30 बच्चों की मौत हो चुकी थी। इसी हादसे के बाद कई खामियां सामने आईं और फैसला हुआ कि इस पुल की जगह नया पुल बनाया जाएगा। अगले कुछ सालों में पुल को मंजूरी भी मिली लेकिन 'सिग्नेचर ब्रिज' के रूप में तैयार हुए इस पुल को बनाने में दो दशक से ज्यादा समय लग गया। आइए उस घटना के बारे में विस्तार से जानते हैं जिसके चलते इस सिग्नेचर ब्रिज की नींव पड़ी।
कैसे हुआ था हादसा?
कश्मीर गेट इलाके में मौजूद लुडलो कासल स्कूल की बस यमुनापार से स्कूल की ओर आ रही थी। 7 बजकर 15 मिनट के आसपास यह बस तेज रफ्तार में पुल के पास पहुंचती है। अचानक बस का संतुलन बिगड़ता है और पुल की जर्जर दीवारों को तोड़ते हुए यह बस नदी में जा गिरती है। लगभग 60 सीट क्षमता वाली इस बस में सौ से ज्यादा लोग सवार थे। चीफ पुकार मची तो आसपास रहने वाले लोग नदी की ओर दौड़े। कड़ाके की ठंड में बर्फ जैसे पानी में लोग कूद पड़े और बच्चों को खींचकर बाहर निकालने लगे। ठीक बगल में बने वजीराबाद बैराज के गेट खुले हुए थे तो कई बच्चे बह भी गए। वजह यह थी कि बैराज का गेट बंद करने में समय लगा।
तब जानकारी पहुंचने में भी समय लगता था। नतीजा यह हुआ कि दो हादसे के दो घंटे बाद भी सिर्फ 10 शव ही निकाले गए थे। ड्राइवर किरणपाल घायल था और उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। बस में सवार कुछ टीचर्स को तैरना आता था तो वे खुद ही तैरकर बाहर आ गए। उस वक्त नदी के पास में ही पीएसी का कैंप लगा था। पीएसी के जवानों ने भी रेस्क्यू ऑपरेशन में मदद की। कुछ समय के बाद पुलिस और नेवी के जवाब भी पहुंच गए। 6 नाव लेकर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा था। ऑक्सीजन सिलिंडर लिए गोताखोर नदी में उतरे हुए थे।
खुद सीएम साहिब सिंह वर्मा और पुलिस कमिश्नर टी आर कक्कड़ भी घटनास्थल पर पहुंचे। रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा लेने के बाद दोनों लोग अस्पताल में भर्ती घायलों से भी मिलने गए। मुख्यमंत्री ने जान गंवाने वाले लोगों के परिवार के लिए 1 लाख रुपये की सहायता राशि, गंभीर रूप से घायलों के लिए 10 हजार और मामूली रूप से घायलों के लिए 5 हजार के मुआवजे का ऐलान किया। स्कूल के प्रिंसिपल संतराम को सस्पेंड कर दिया गया क्योंकि बस में तय सीमा से ज्यादा बच्चों को भरा गया था। कई घंटों की मशक्कत के बाद 67 लोगों को जिंदा बचा लिया गया था। इसमें ज्यादातर बच्चे थे। 28 बच्चों समेत कुल 30 लोगों के शव बरामद किए गए। बच्चों के बैग में मिली किताबों पर लिखे नामों से उनकी पहचान की गई। हादसे से लगभग तीन घंटे के बाद बस को क्रेन की मदद से बाहर निकाला गया। रेस्क्यू ऑपरेशन थमा तो इस पुल की स्थिति पर चर्चा हुई।
सिग्नेचर ब्रिज बनने की कहानी
इस हादसे के तीन साल बाद यानी साल 2000 में फैसला हुआ कि एक नया पुल बनाया जाएगा। इस फैसले के 4 साल बाद दिल्ली सरकार ने ऐलान किया कि एक नया पुल बनाया जाएगा। यह भी फैसला किया गया कि इस पुल को 2010 में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले तैयार कर लिया जाएगा। हालांकि, ये बातें सिर्फ ख्वाब ही रह गईं क्योंकि इस पुल को दिल्ली सरकार की मंजूरी ही 2007 में मिल पाई। तब तय हुआ था कि 464 करोड़ रुपये खखर्च करके बनाया जाएगा।
2007 में यह राशि बढ़ाकर 1100 करोड़ कर दी गई। फिर 1518.37 करोड़ हुई। जो काम साल 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले पूरा हो जाना था, वह शुरू ही हुआ साल 2010 में। साल 2013 में नई डेडलाइन रखी गई कि 2016 तक यह पुल बना लिया जाएगा लेकिन पुल बनकर तैयार हुआ साल 2018 में। आखिर में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 4 नवंबर 2018 को इसका उद्घाटन किया और इस पुल को जनता के लिए खोल दिया गया।