देश के तमाम हिस्सों में सुबह के समय कोहरे की चादर देखी जा रही है। मौसम विभाग ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश, बिहार तथा पंजाब समेत देश के कई इलाकों में सुबह के समय हल्के से घना कोहरा छाए रहने के आसार हैं। लेकिन तापमान में कोई बड़ा बदलाव नहीं हो रहा है। नवंबर के दूसरे सप्ताह में भी गर्मी का अहसास हो रहा है। इसका कारण यह है कि उत्तर और मध्य भारत में चक्रवाती प्रसार का असर नहीं हो रहा है। मौसम पैटर्न में असंतुलन के कारण पोस्ट मानसून बारिश भी प्रभावित हुई।
कोहरा एक दिखने वाला एरोसोल है जिसमें पृथ्वी की सतह पर या उसके आस-पास हवा में लटकी हुई छोटी-छोटी पानी की बूंदें या बर्फ के क्रिस्टल होते हैं। कोहरा तब बनता है जब हवा के तापमान और ओस बिंदु के बीच का अंतर 2.5 डिग्री सेल्सियस से कम होता है। जब जल वाष्प संघनित होती है तो यह हवा में अलग-अलग सांद्रता वाली छोटी बूंदों में बदल जाती है। जब नदी, तालाब जैसे जलस्रोतों के ऊपर सर्द हवा हल्की गर्म नमी वाली हवा से मिलती है, तब नमी वाली हवा ठंडी होने लगती है और आर्द्रता (ह्यूमिडिटी) 100% हो जाती है तब जाकर कोहरा बनता है।
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि कि चूंकि पश्चिमी विक्षोभ का असर इस बार कम है और आसमान में बरसाने वाले बादल नहीं हैं लिहाजा सूरज की किरणें ज्यादा तीव्रता के साथ धरती पर आ रही हैं और सुबह शाम कोहरा भी बन रहा है लेकिन दिन के वक्त वातावरण में गरम रेडिएशन हो रहा है। इस बार ठंड के सीजन में ऐसी स्थिति कुछ दिनों तक बरकरार रह सकती है। कोहरे के बावजूद वायुमंडल की निचले क्षेत्रों में छाया घना प्रदूषण भी ठंडी हवाओं को नीचे आने से रोक रहा है। इसी वजह से रात में भी तापमान मौसम के अनुरूप नहीं गिर रहा है और दिन भी कमोवेश गर्म हैं। ठंडी में गर्मी का एहसास सिर्फ दिल्ली एनसीआर में ही नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल समूचे उत्तर और मध्य भारत में भी हो रहा है। पश्चिम भारत आमतौर पर दिसंबर माह में ठंडा होना शुरू होता है, लेकिन इस बार वहां भी दिन और रात का तापमान सामान्य से अधिक है।
वॉकर सर्कुलेशन में गिरावट भी बनी कम बारिश की वजह
तीव्र पश्चिमी विक्षोभ की कमी की वजह से उत्तर भारतीय राज्यों में मानसून के बाद बारिश कम हुई है। इसके अलावा उत्तर और मध्य भारत में अतिरिक्त सिंचाई और बढ़ी हुई एयरोसोल सामग्री की वजह से वॉकर सर्कुलेशन में गिरावट आई है। मोटे तौर पर यह परिसंचरण निचले वायुमंडल में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हवा के प्रवाह का एक मॉडल है। इसके निचले क्षोभमंडल में पूर्वी हवाएं और ऊपरी क्षोभमंडल में पश्चिमी हवाएं शामिल हैं। जब इनका तालमेल बिगड़ जाता है तब मौसम चक्र में बदलाव देखने को मिलता है।वाकर सर्कुलेशन के उतार चढ़ाव से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चरम मौसम की स्थिति पैदा होती है। यह अल नीनो-दक्षिणी दोलन जलवायु प्रणाली का एक अहम हिस्सा है।
उत्तर और मध्य भारत में नहीं पड़ रहा चक्रवाती प्रसार का असर
बंगाल की खाड़ी को प्रत्येक वर्ष भौगोलिक, मौसम संबंधी और समुद्र संबंधी कारकों के संयोजन के कारण चक्रवातों का सामना करना पड़ता है। बंगाल की खाड़ी ऐसे क्षेत्र में स्थित है जो चक्रवात निर्माण के लिए अत्यधिक अनुकूल है। यह हिंद महासागर के उत्तरी भाग में है जो चक्रवाती गतिविधि के लिए एक प्रमुख क्षेत्र है। चक्रवातों के निर्माण के लिए गर्म समुद्री सतह का तापमान एक महत्वपूर्ण कारक है। बंगाल की खाड़ी में साल भर समुद्र की सतह का तापमान 26.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बना रहता है जो चक्रवातों को ईंधन देने के लिए आवश्यक गर्मी और नमी प्रदान करता है।
भूमध्य रेखा के पास का यह क्षेत्र इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस जोन (आईटीसीजेड) है। यहां उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध से आने वाली व्यापारिक हवाएं मिलती हैं और अक्सर बंगाल की खाड़ी के ऊपर चली जाती हैं। हवाओं का यह कन्वर्जेंस चक्रवाती प्रणालियों के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाता है। इस चक्रवाती गतिविधि में भारतीय मानसून की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) और उत्तर-पूर्वी मानसून (अक्टूबर से दिसंबर) के बीच संक्रमण चक्रवाती गतिविधि के तीव्र होने की अवधि होती है।
ये संक्रमण वायुमंडलीय अस्थिरता पैदा करते हैं जिससे चक्रवात उत्पन्न होते हैं, लेकिन पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय न होने के कारण इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण जरूरत से ज्यादा बढ़ता समुद्र का तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण बदलने वाला मौसम पैटर्न भी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि प्री-मानसून यानी अप्रैल से जून और पोस्ट मानसून अक्टूबर से दिसंबर के दौरान बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की आवृत्ति बहुत अधिक होती है। लेकिन अब ये मौसमी पैटर्न ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडलीय और समुद्री स्थितियों में बदलावों से प्रभावित होने लगे हैं। इसलिए मौसम चक्र में बदलाव आ रहा है।
अगले 5 दिनों में 2 से 5 डिग्री तक गिरेगा तापमान
मौसम विभाग ने अपने ताजा अपडेट में कहा है कि देश भर में न्यूनतम तापमान में कोई बड़ा बदलाव दर्ज नहीं हुआ है। जबकि जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान तथा गुजरात के उत्तरी हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से तीन से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक बना हुआ है। जबकि तटीय आंध्र प्रदेश और यनम, केरल व माहे, दक्षिण गुजरात में न्यूनतम तापमान दो से तीन डिग्री सेल्सियस अधिक तथा देश के शेष हिस्सों में यह सामान्य के करीब है। अगले पांच दिनों के दौरान पश्चिमी हिमालयी इलाकों में न्यूनतम तापमान में धीरे-धीरे दो से चार डिग्री सेल्सियस की गिरावट आ सकती है। आने वाले सप्ताह के दौरान देश के शेष हिस्सों में न्यूनतम तापमान में कोई बड़ा बदलाव होने के आसार नहीं हैं।
दिल्ली एनसीआर में मामूली गिरावट
देश की राजधानी दिल्ली तथा एनसीआर में पिछले 24 घंटों के दौरान यहां अधिकतम तापमान में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। दिल्ली में अधिकतम तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 15 से 19 डिग्री सेल्सियस के बीच है। जबकि दिल्ली के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान सामान्य से एक से दो डिग्री सेल्सियस अधिक और न्यूनतम तापमान सामान्य से चार से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया जा रहा है। सुबह के समय हवा की रफ्तार कम रहेगी जबकि दोपहर के समय आठ किमी प्रति घंटे तक बढ़ जाएगी। इसके बाद ठंड का एहसास कोई खास नहीं होगा।