भारत और पाकिस्तान के बीच स्थितियां तनावपूर्ण हैं। सीमा पर सायरन, ड्रोन अटैक और पाकिस्तान में तबाही की तस्वीरें छाई हुई हैं। इनसे निपटने के लिए सरकार कई दौर की बैठकें कर रही है। इन बैठकों में जिस एक नाम की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह नाम अजीत डोभाल है। वह प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर रक्षा मंत्रालय तक हर बैठक में नजर आ रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर पर हुई हर अहम बैठक में रणनीतिकार की तरह नजर आ रहे हैं। देश के लोग उन्हें 'जेम्स बॉन्ड' बुलाते हैं। वह दशकों से भारत सरकार को 'दुश्मन का हाल' बता रहे हैं।  

अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। यहां तक पहुंचने से पहले उन्होंने 3 दशक खुफिया विभाग में गुजारे, पाकिस्तान तक में जासूस बनकर 7 साल काट लिए। उन्हें भारत का 'जेम्स बॉन्ड' भी लोग बुलाते हैं। देश में सरकार चाहे इंदिरा गांधी की रही हो या नरेंद्र मोदी की, अजीत डोभाल के काम हमेशा सुर्खियों में रहे हैं।

सरकार कोई भी, दुश्मन का हाल बताते हैं डोभाल
अजीत डोभाल के काम भी कुछ ऐसे ही रहे हैं। 4 दशक से वह खुफिया विभाग की जरूरत बने हैं। वह केरल के 1968 बैच के अधिकारी हैं। अजीत डोभाल, अपनी नियुक्ति के 4 साल बाद ही इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) से जुड़े, साल 2005 में डायरेक्टर पद से रिटायर हुए, हर सरकार में सरकार की जरूरत बने रहे। उनकी मदद इंदिरा, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक ने ली है। वजह उनका तजुर्बा है, जिसकी जरूरत देश को बार-बार पड़ती है। नरेंद्र मोदी सरकार में साल 2014 से लेकर अब तक, जब-जब दुश्मनों को घर में घुस के मारने की नौबत आई, अजीत डोभाल भी उस रणनीति को तैयार करने वालों में शामिल रहे। आखिर कैसे उन्होंने इंटेलिजेंस की दुनिया में कदम रखा, आइए जानते हैं। 

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IPS थे, काम जासूसों वाला ही किया

अजीत डोभाल वैसे तो साल 1968 बैच के IPS अधिकारी हैं लेकिन सेना की वर्दी इन्हें ज्यादा दिन रास नहीं आई। वह साल 1972 में इंटेलिजेंस ब्यूरे से जुड़े और वहीं के होकर रह गए। साल 1970 में पूर्वोत्तर में उग्रवाद अपने चरम पर था। मिजोरम नेशनल फ्रंट (MNF) में बढ़ता उग्रवाद सेना के लिए मुसीबत बन गया था। अजीत डोभाल ने उग्रवाद खत्म करने में निर्णायक अधिकारी साबित हुए। इंदिरा सरकार ने इस मिशन पर भेजा। अजीत डोभाल ने MNF के कमांडरों का विश्वास जीतकर शांति वार्ता की नींव रखी। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अजीत डोभाल। (Photo Credit: PTI)

पाकिस्तान में भी रहे, निकालकर लाए पाकिस्तान के गहरे राज
अजीत डोभाल 1970 के दशक में ही पाकिस्तान भी गए। दावा किया जाता है कि वह पाकिस्तान में 7 साल रहकर आए। उन्होंने खुद को मुस्लिम शख्स के तौर पर पेश किया, खुफिया जानकारियां जुटाईं। पाकिस्तान से कई गोपनीय सूचनाएं लेकर वह देश लौटे। वह रॉ एजेंट की तरह काम करते थे। इंटेलिजेंस ब्यूरो को इस दौरान उन्होंने कई अहम सुराग और जानकारियां दीं। वह लाहौर में रहे और वहीं से पाकिस्तान की खबर भारत को देते रहे।

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ऑपरेशन ब्लू स्टार में भी अहम रोल
पंजाब में 80 के दशक में उग्रवाद अने चरम पर था। जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर आतंकियों ने कब्जा जमा लिया था। उन्हें हटाने के लिए अजीत डोभाल पाकिस्तानी जासूस बने। वह स्वर्ण मंदिर के बाहर रिक्शा ड्राइवर बनकर स्वर्ण मंदिर के अंदर गए और आतंकियों के बारे में सेना को एक-एक बात बताई। जानकारी सटीक रही और ऑपरेशन में भारतीय सेना को कामयाबी हासिल हुई।

ऑपरेशन ब्लैक थंडर में भी अहम रोल
1988 की एक तस्वीर अजीत डोभाल और राजीव गांधी के साथ अक्सर वायरल होती है। अजीत डोभाल राजीव गांधी और तत्कालीन IB निदेशक एमके नारायणन के साथ चर्चा करते नजर आते हैं। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि यह ऑपरेशन ब्लैक थंडर की तस्वीर है। कहते हैं कि इस दौरान वह सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं।

राजीव गांधी और अजीत डोभाल।

कांधार विमान अपहरण और अजीत डोभाल
दिसंबर 1999 अटल बिहारी प्रधानमंत्री थे। इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC-814 को आतंकियों ने हाइजैक कर लिया था। विमान को अफगानिस्तान के कंधार में आतंकी ले गए। उन्होंने मांग की थी कि कुछ आतंकियों को भारत रिहा करे। अजीत डोभाल उन अधिकारियों में शामिल थे, जिन्हें बातचीत के लिए सरकार ने चुना था। संकट को और गहराने से रोकने में अजीत डोभाल ने अहम भूमिका निभाई थी।

कश्मीर और आतंकवाद
वाजपेयी सरकार के दौरान भी जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था। अजीत डोभाल ने खुफिया ब्यूरो सीनियर अधिकारी हो चुके थे। आतंकियों के खिलाफ उन्होंने रणनीति तैयार की, कुछ अरसे तक शांति रही। उन्होंने खुफिया नेटवर्क को बेहतर बनाया, आतंकियों तक धन मुहैया कराने वाले नेटवर्क का खात्मा किया। ISI की कई चालें नाकाम की। साल 1999 में करगिल जंग हुई, जिसके बाद खुफिया तंत्र को और बेहतर किया गया।  



मोदी सरकार के कैसे संकट मोचक बने अजीत डोभाल?
नरेंद्र मोदी सरकार, अपने पूर्ववर्ती सरकारों से अलग, आतंकियों के खिलाफ रणनीति अपनाई। शांति वार्ताओं के साथ-साथ 'घर में घुसकर' मारने वाली तकनीक 'सर्जिकल स्ट्राइक' पर सरकार ने ध्यान दिया। 26 मई 2014 को जब शिवशंकर मेनन रिटायर हुए, तब नरेंद्र मोदी सरकार ने अजीत डोभाल को चुना। 30 मई 2014 से अब तक, वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर बने हुए हैं। जब-जब देश पर आतंकी हमले हुए, आतंकियों के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए अजीत डोभाल ने अहम भूमिका निभाई। 

कश्मीर में अजीत डोभाल। (Photo Credit: PTI)

2014 से अब तक, कब-कब डोभाल दिखाया दम

म्यांमार सर्जिकल स्ट्राइक

म्यांमार अटैक: मणिपुर में 4 जून 2015 को सेना के काफिले पर उग्रवादी समूहों के हमले में 18 सैनिक शहीद हुए। अजीत डोभाल ने 2015 म्यांमार सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बनाई। म्यांमार की सीमा में घुसकर विद्रोही मारे गए।

उरी अटैक: 18 सितंबर 2016 को आतंकियों ने सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर ही हमला कर दिया। 18 सैनिक शहीद हो गए। 28 से 29 सितंबर 2016 के बीच प्लानिंग तैयार हुई। सेना के जवान 3 किलोमीटर अंदर तक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुसे, आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। 

पुलवामा अटैक: 14 फरवरी 2019 को सीआरपीएफ काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ। 40 जवान शहीद हो गए। 26 फरवरी को भारत ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक किया। आतंकी ठिकानों पर हमला बोला गया। 

पहलगाम हमला: 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में आतंकियों ने 26 पर्यटकों की हत्या कर दी। 7 मई की रात 1.04 मिनट को भारतीय सेना ने महज 25 मिनट में 9 आतंकी ठिकानों को पाकिस्तान में तबाह कर दिया। हाफिज सईद का कुनबा मारा गया। यह आतंकियों के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई थी। अजीत डोभाल फिर चर्चा में बने हैं। 

ऑपरेशन सिंदूर पर अहम बैठक। (Photo Credit: PTI)