गंगा को साफ करने के लिए सरकार ने करोड़ों का बजट आवंटित कर रही है, फिर भी देवनदी साफ होने के बजाय और ज्यादा प्रदूषित ही होती जा रही है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सबमिट किए गए एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से बिना ट्रीट किए गए यानी कि बिना शुद्ध की गई गंदगी को गंगा में बहाने की वजह से गंगा नदी अपने उद्गम स्थान पर काफी प्रदूषित होती जा रही है।
यह रिपोर्ट ट्रिब्यूनल द्वारा गंगा में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर सुनवाई के दौरान सबमिट की गई। एनजीटी ने इस संदर्भ में राज्य और इससे संबंधित अथॉरिटीज से एक रिपोर्ट मांगी थी। यह राज्य सरकार की एक रिपोर्ट पर आधारित थी, जिसमें गंगोत्री में एसटीपी से लिए गए पानी के नमूनों की, की गई जांच शामिल थी. इसमें फीकल कोलफॉर्म (एफसी) की मात्रा सुरक्षित आउटडोर स्नान के लिए स्वीकार्य सीमा से काफी अधिक पाई गई थी। अब इस मामले में 13 फरवरी को सुनवाई होगी।
इस मामले में पर्यावरणविद् एमसी मेहता द्वारा एक आवेदन किया गया था जो कि गंगा में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए किया गया था। एनजीटी हर उस राज्य में जहां से गंगा बहती है, वहां प्रदूषण को रोकने का काम करता है।
मामले में कहा गया था कि गंगोत्री में प्रतिदिन 1 मिलियन लीटर एसटीपी से लिए गए नमूनों में फीकल कोलीफॉर्म का स्तर चिंताजनक रूप से हाई था। उनका कहना था कि सैंपल में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा सुरक्षित आउटडोर स्नान के लिए अनुशंसित एफसी का स्तर 500/100 से अधिक था। उनके मुताबिक नमूने में एफसी की संभावित मात्रा 540/100 थी।
एसटीपी ठीक से नहीं कर रहे काम
सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड में कमीशन किए गए 53 एसटीपी में से सिर्फ 50 एसटीपी ही ऑपरेशनल है। इनमें से भी 48 एसटीपी एफसी स्तर, बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) को हटाने की क्षमता, और सीवेज यूटिलाइज़ेशन क्षमता से जुड़े मानकों को पूरा नहीं करते हैं। सीपीसीबी द्वारा पाए गए तथ्यों को राज्य की रिपोर्ट से तुलना करने पर एनजीटी ने कहा, 'राज्य सरकार द्वारा जो तथ्य बताए गए हैं वह संदेह पैदा करने वाले हैं।'
चीफ सेक्रेटरी को दिया निर्देश
एनजीटी ने उत्तराखंड के चीफ सेक्रेटरी को स्थिति पर संज्ञान लेने के साथ ही एक विस्तृत रिपोर्ट सबमिट करने का निर्देश दिया है। राज्य द्वारा सबमिट की गई रिपोर्ट में कमियों को इंगित करते हुए एनजीटी ने कहा, 'बहुत से एसटीपी या तो अपनी कुल क्षमता से कम प्रयोग किए जा रहे हैं और या तो ट्रीटमेंट के लिए उनकी क्षमता से ज्यादा सीवेज डाला जा रहा है, और बाढ़ के दौरान भी एसटीपी के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।'
एनजीटी ने कहा, 'गंगा और उसकी सहायक नदियों में बिना ट्रीटमेंट के 63 नाले-नालियों से पानी गिरता है। राज्य सरकार द्वारा सबमिट की जाने वाली अगली रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र होना चाहिए कि सरकार ने इस दिशा में क्या कदम उठाया है।'
केंद्र सरकार ने दिए थे करोड़ों रुपये
गंगा की सफाई के लिए साल 2014 में मोदी सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत 20 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इसके तहत गंगा को 2021 तक पहले की तरह निर्मल बनाना था। हालांकि, बाद में इसे और 5 सालों के लिए आगे बढ़ा दिया गया और इस लक्ष्य को 2026 तक पूरा करने का टारगेट रखा गया। तब से लगभग 13 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन गंगा जस की तस बनी हुई है।