जलवायु परिवर्तन की वजह से तेजी से मौसम बदल रहा है। इन घटनाओं में में आ रहे तेजी से बदलाव के बीच वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भारत में भीषण गर्मी लंबे समय तक जारी रहेगी और देश के बड़े क्षेत्रों को प्रभावित करेगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (आईआईटी) के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र के प्रमुख कृष्ण अच्युत राव ने कहा कि जलवायु मॉडल दर्शाते हैं कि भारत में भीषण गर्मी या हीट वेव का क्षेत्र और समयसीमा बढ़ेगी।

 

मौसम विभाग के मुताबिक, हीट वेव एक ऐसी अवधि है जिसमें किसी क्षेत्र में सामान्य रूप से अपेक्षित तापमान की तुलना में असामान्य रूप से गर्मी पड़ती है। इसलिए, जिस तापमान पर हीट वेव घोषित की जाती है, वह उस क्षेत्र के तापमान जलवायु विज्ञान (ऐतिहासिक तापमान) के आधार पर जगह-जगह अलग-अलग होती है। 

 

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देश में लंबे समय तक रहेगी लू 

 

शोध संगठन ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ द्वारा आयोजित ‘इंडिया हीट’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए राव ने कहा, 'इसका मतलब है कि उत्तरी मैदानी इलाकों और दक्षिणी प्रायद्वीप के कई राज्यों में लू की स्थिति लंबे समय तक और बड़े क्षेत्रों में रहेगी।' उन्होंने कहा, 'जो एक हफ्ते तक चलने वाली घटना हो सकती है, वह डेढ़ महीने या दो महीने तक चलने वाली घटना में बदल सकती है। हमारा भविष्य बहुत अंधकारमय दिख रहा है।'

 

मानसून के महीनों में लू चल सकती है

 

वैज्ञानिक ने कहा कि मॉडल यह भी सुझाव देते हैं कि मानसून के महीनों में लू चल सकती है जो ज्यादा खतरनाक हो सकती है। राव ने कहा, 'यह विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह गर्म और आर्द्र होगा और तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होगा।' जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट और हाल के वैज्ञानिक पत्रों में दक्षिण एशिया में मानसून के महीनों के दौरान भी कई बार भीषण गर्मी के प्रकोप की चेतावनी दी गई है।

 

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‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी)’ के वरिष्ठ ‘क्रायोस्फीयर’ विशेषज्ञ फारूक आजम ने कहा कि बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे भारत की नदियों में पानी में कमी हो रही है। आजम ने कहा कि देश कृषि और बिजली उत्पादन के लिए ग्लेशियरों के पानी पर बहुत ज्यादा निर्भर है।

 

तेजी से पिघलने रहे हैं ग्लेशियर

 

उन्होंने कहा कि फिलहाल तापमान में बढ़ोतरी की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघलने रहे हैं लेकिन एक सीमा है जिसके बाद ग्लेशियरों से नदियों में कम पानी आएगाऔर उसे ‘पीक वॉटर’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि कुछ मॉडल अनुमान लगाते हैं कि सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में 2050 के आसपास ‘पीक वॉटर’ हो सकता है, जबकि कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि ब्रह्मपुत्र में यह स्थिति पहले ही आ चुकी है। आज़म ने चेतावनी दी कि इसका मतलब होगा 2050 तक अधिक बाढ़ आएंगी और उसके बाद पानी की कमी होगी।