बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग से यौन उत्पीड़न से जुड़े एक मामले में आरोपी को जमानत दे दी है। आरोपी साल से जेल में बंद था। जस्टिस मिलिंद जाधव की बेंच ने यह कहते हुए जमानत दी कि नाबालिग को पता था कि वह क्या कर रही है, इसके नतीजे क्या होंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि लड़की रोमांटिक रिश्ते में थे, दोनों के बीच सहमति से संबंध बने थे, उसने अपनी मर्जी से घर छोड़ा था और आरोपी के साथ गई थी। 

कोर्ट ने यह भी कहा कि लड़की ने खुद अपने परिवार से अपनी लोकेशन बताई थी, लड़की के परिवार ने कोई ऐक्शन नहीं लिया। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए जमानत दे दिया कि पॉक्सो से जुड़े मामलों में कानून सख्त हैं, फिर भी जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है। यह मामला 4 साल से लंबित है, ट्रायल भी नहीं शुरू हुआ है। 

जस्टिस मिलिंद जाधव ने इस केस पर फैसला सुनाते हुए कहा था, 'लड़की अपनी मर्जी से लड़के के साथ भागी थी, 10 महीने तक उसके साथ रही। यह दिखाता है कि 18 साल से कम उम्र होने के बाद भी अपने फैसले को लेकर स्पष्ट थी।' उनके इस बयान की आलोचना भी हो रही है। 

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सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अंजन दत्ता ने कहा, 'ऐसे फैसले, कोर्ट के विवेकाधिकार पर निर्भर करते हैं। अगर 15 साल से बड़ी उम्र की लड़की को पता है कि वह क्या कर रही है, उसकी उस रिश्ते में रहने की मंशा है, वह शारीरिक संबंध बना रही है, उसे पता है कि इसका परिणाम क्या होगा तो अदालतें ऐसे मामलों को उदार नजरिए से देखती हैं।'

कब-कब ऐसे मामलों में उदार हुई हैं अदालतें?

फरवरी 2025। दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो से जुड़े एक केस में कहा, 'प्यार, इंसान की मूल भावना है, किशोरों को भी रोमांटिक रिश्तों में रहने का हक है, इस पर जबरदस्ती नहीं की जा सकती है। कानून को रिश्तों की कद्र करनी चाहिए।' कोर्ट ने आरोपी को राहत दी थी। 

नवंबर 2025। कर्नाटक हाई कोर्ट
कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा था कि 16 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों के साथ सहमति से बने रिश्तों के कई मामले सामने आए हैं। ऐसे मामलों में POCSO एक्ट का कड़ाई से लागू करना सामाजिक वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं हो सकता। कोर्ट ने विधि आयोग से सहमति की उम्र पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया था। कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था।

फरवरी 2021। बॉम्बे हाई कोर्ट  
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों के बीच सहमति से बने यौन संबंध POCSO एक्ट के तहत 'ग्रे एरिया' हैं। कानून नाबालिग की सहमति को मान्य नहीं मानता। पीड़िता के बयान से मुकरने और FSL रिपोर्ट की गौर मौजूदगी की वजह से जमानत मिल गई थी।  

कोलकाता हाई कोर्ट ने भी एक केस में सुझाव दिया था कि 16 वर्ष से अधिक उम्र के किशोरों के बीच सहमति से बने यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने पर विचार किया जाए। 

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क्यों अदालतें सुनाती हैं ऐसे फैसले?
एडवोकेट अंजन दत्ता ने कहा, 'भारत में बाल विवाह अपराध भले हो लेकिन अप्रचलित नहीं है। अगर नाबालिग लड़की है, 15 से कम उम्र है कुछ तल्खी के बाद रिश्ते टूट जाएं तो भी अदालतें इसे रेप नहीं मानती हैं। प्रेम संबंधों से जुड़े मामलों में भी कोर्ट इसी सिद्धांत पर कई बार फैसले सुनाते हैं। भारत में वैसे भी 'एज ऑफ कंसेंट' पर नई बहस छिड़ी है।'

एज ऑफ कंसेंट क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अंजन दत्ता ने कहा, 'भारतीय कानूनों में 'एज ऑफ कंसेंट' की उम्र 18 साल है। इससे कम उम्र में अगर सहमति से भी सेक्सुअल रिलेशन बनें तो उसकी सहमति को सहमति नहीं मानी जाती है। आमतौर पर जो मामले अदालतों तक पहुंचते हैं, उनमें जरा सा भी विवाद अगर नाबालिग और संबंध बनाने वाले व्यक्ति में हुआ तो उसके जेल जाना तय माना जाता है। हमने कई मामलों में ऐसा देखा है। अगर नाबालिग ही कोर्ट से शिकायत कर दे तो आरोपी का फंसना तय है। लेकिन उन मामलों में जब सहमति से संबंध बनते हैं, तब अदालतें इसे रेप के दायरे से बाहर रखती हैं।'

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भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 में रेप की परिभाषा दी गई है। इसी अधिनियम की धारा 63 के क्लॉज VI के मुताबिक, 'चाहे उसकी सहमति से या असहमति से, अगर 18 साल से कम उसकी उम्र है तो इसे रेप कहा जाएगा।' 



पॉक्सो एक्ट की धारा 2 (D) बताती है कोई भी व्यक्ति, जिसकी उम्र 18 साल से कम है, उसके बच्चा माना जाएगा। मतलब उस पर पॉक्सो एक्ट के तहत केस चलेगा। कोई भी शख्स अगर 16 साल की कम उम्र की नाबालिग के साथ यौन अपराध करता है तो उसके कम से कम 20 साल की सजा हो सकती है। सहमति के मामलों में लेकिन अक्सर, कोर्ट के उदार रवैयों के मामले से आरोपी बच जाते हैं। 

सामान्य नियम में नहीं आते ऐसे फैसले